Indian Railways के पटरियों के नीचे कंक्रीट से बनी प्लेट होती हैं, जिन्हें स्लीपर कहा जाता है। इन स्लीपरों के नीचे पत्थर यानि गिट्टी होती है, इन्हे गिट्टी या बलास्ट कहते हैं। इसके नीचे दो अलग-अलग परतों में मिट्टी होती है। इन सबके नीचे सामान्य जमीन है।Indian Railways की पटरियां सामान्य जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर हैं। पटरी के नीचे कंक्रीट से बने स्लीपर होते हैं, फिर उसके नीचे पत्थर और मिट्टी। इन सभी कारणों से पटरियां सामान्य जमीन से थोड़ा ऊपर होती है।
Indian Railways के पटरियों पर पत्थरों का काम
एक ट्रेन का वजन लगभग 10 लाख किलो होता है। केवल पटरी ही इस वजन को नहीं संभाल सकती। इतनी भारी ट्रेन के वजन को संभालने में लोहे की बनी पटरियों के साथ-साथ कंक्रीट से बने स्लीपर और पत्थर भी मदद करते हैं। जिसमें सबसे ज्यादा वजन इन्हीं पत्थरों पर होता है। पत्थरों के कारण ही कंक्रीट के स्लीपर अपनी जगह से हिलते नहीं हैं।
गिट्टी है खास
पटरी पर इस्तेमाल की जाने वाली गिट्टी एक खास तरह की होती है। अगर इन गिट्टी की जगह गोल पत्थरों का इस्तेमाल किया जाए तो ये एक-दूसरे से टकराने लगेंगे और पटरी अपनी जगह से हट जाएगी। गिट्टी नुकीली होने के कारण ये एक दूसरे पर मजबूत पकड़ बनाए रखते हैं। ट्रेन जब भी पटरियों से गुजरती है तो ये पत्थर आसानी से ट्रेन का भार संभाल लेते हैं।
पेड़ नहीं उगने देते
पटरियों पर यदि गिट्टी न डाली जाए तो पटरियों पर घास और पौधे उग जाएंगे। इससे ट्रेन को पटरी पर चलने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। इस वजह से भी पटरियों पर पत्थर डालें जाते हैं।
बारिश के समय बड़े काम आते हैं।
पटरियों पर गिट्टी डालने का एक मकसद यह भी है कि पटरियों में जलजमाव की समस्या न हो. बारिश का पानी जब ट्रैक पर गिरता है तो गिट्टी से होते हुए जमीन में चला जाता है। इससे पटरियों के बीच जलजमाव की समस्या नहीं होती है। इसके अलावा ट्रैक में रखे पत्थर भी पानी के साथ नहीं बहेंगे।
पटरियों को फैलने से बचाएं
जब ट्रेन पटरियों पर तेज गति से चलती है, तो कंपन उत्पन्न होता है। इससे पटरियों के फैलने की संभावना रहती है। कंपन को कम करने और पटरियों को फैलने से रोकने के लिए पटरियों पर पत्थर बिछाए जाते हैं।