अकोला में हुई बाघ की मृत्यु क्या कर रहा था प्रशासन, अकोला वन विभाग के कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल

 

अकोला : बार्शिटाकली के सोनखास शिवर में मंगलवार सुबह एक शेर मृतअवस्था मे मिला.विशेष रूप से ग्रामीणों ने इस क्षेत्र में बाघों होने की आशंका व्यक्त की थी। उसी क्षेत्र में बाघ मृत पाया गया l जिससे इस क्षेत्र मे हलचल मच गयी.

अकोला तालुका के पाथुर नंदापुर इलाके और बार्शीटाकली तालुका के पिंजर पुलिस थाने की सीमा के भीतर अकोला वन क्षेत्र के सोनखास इलाके में बाघ मृत पाया गया। सूचना मिलते ही वन विभाग के कर्मचारी व पिंजर पुलिस मौके पर पहुंच गई। डॉक्टरों की एक टीम भी मौके पर पहुंच गई है और बाघ के शव का पोस्टमार्टम किया जा रहा है. वन विभाग के अधिकारियों ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद ही बाघ की मौत के कारणों का पता चल सकेगा।

परन्तु अकोला का वन विभाग और यहाँ के DFO और RFO को इसकी जानकारी क्यों नही थी की इस परिसर में वाघ है,साथ ही अकोला जिले का वन विभाग अपने काम चोर रवैये के कारण पुरे जिले में प्रख्यात है, यहाँ नागरिको के काम कभी नही होते उन्हें केवल चक्कर ही मारना पड़ता है, परन्तु इस वाघ की मृत्यु होने से इस विभाग के कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे है और इस घटना की जानकरी पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे को भी दिए जाने की जानकरी सामने आई है.

अकोला अधिकारियो के उदासीन रवैया और रिश्वत की प्रवृत्ति ने संरक्षण के नाम पर बाघों तक पहुंचने वाले लाभ को बीच में ही निगल दिया है

भारत में भारतीय वन्य जीवन बोर्ड द्वारा 1972 में शेर के स्थान पर बाघ को भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में अपनाया गया था। देश के बड़े हिस्सों में इसकी मौजूदगी के कारण ही इसे भारत के राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया था। इसके बाद सरकार ने बाघों की कम होती संख्या को देखते हुए 1973 में ‘बाघ बचाओ परियोजना’ शुरू की थी। जिसके तहत चुने हुए बाघ आरक्षित क्षेत्रों को विशिष्ट दर्जा दिया गया और वहां विशेष संरक्षण के लिए प्रयास किए गए।

इसी परियोजना को अब ‘नेशनल टाइगर अथॉरिटी’ बना दिया गया है। और अकोला भी अमरावती वाघ प्रकल्प में आता है . बाघ को बचाने के लिए सरकार ने योजना व नीतियां बनाने में कोई कसर नहीं रखी है, लेकिन इतने इंतजाम के बाद भी बाघों की संख्या निरंतर कम क्यों होती जा रही हैं? यह बड़ा सवाल है। सच तो यह है कि अकोला जिला वन विभाग और जिला प्रशासन का उदासीन रवैया और रिश्वत की प्रवृत्ति ने संरक्षण के नाम पर बाघों तक पहुंचने वाले लाभ को बीच में ही निगल दिया है। इस कारण बाघ संरक्षण के सरकारी इंतजाम ‘सफेद हाथी साबित हो रहे हैं। सरकार ने वन्य जीव संरक्षण के नाम पर कई बड़े कानून बना रखे हैं। वन्य जीव संरक्षण कानून के तहत राष्ट्रीय पशु बाघ को मारने पर सात साल की सजा प्रावधान है। लेकिन लचर स्थिति के कारण विरले लोगों को ही सजा हो पाती हैं।

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