अंतरिक्ष में कोई सैटेलाइट किस धातु का होना चाहिए. इसी सवाल का जवाब हमें यह जानने में भी मदद कर सकता है कि किसी स्पेस स्टेशन को बनाने के लिए कौन सी धातु सबसे उपयुक्त होगी. अभी तक देशों की बात की जाए तो अमेरिका, रूस (सोवियत संघ) काफी पहले ही अपने खुद के स्पेस स्टेशन बना चुके हैं. हाल ही में चीन ने अपना खुद का स्पेस स्टेशन शुरू कर दिया है. लेकिन स्पेस स्टेशन की सबसे शानदार मिसाल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन है. और इसकी संरचना का अध्ययन हमें यह पता लगाने में मदद कर सकता है कि कोई स्पेस स्टेशन किस तरह की धातु से बनना चाहिए और धातु के चयन में किन बातों का ध्यान रखना चाहिए.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन
25 साल पहले इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पर कई देशों के सहयोग से काम शुरू हुआ था. 2 नवंबर को इसे अंतरिक्ष में पहुंचने के 23 साल पूरे हो गए हैं. इसने साल 2000 से ही काम करना शुरू दिया था लेकिन इसने पूरी तरह से काम करना 2009 में शुरू किया था. यह अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा, रूसी स्पेस एजेंसी रोसकोसमोस, जापानी स्पेस स्पेस एजेंसी जाक्सा, कनाडा की स्पेस एजेंसी सीएसए और यूरोपीय स्पेस एजेंसी ईसा के सहयोग से एक बहुत ही बड़ी परियोजना है.
एक बड़ा आदर्श क्यों
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन आदर्श इसलिए है कि वह बहुत ही बड़ा है और उम्मीद के कहीं ज्यादा समय तक सफलतापूर्वक अब भी अंतरिक्ष में सुचारू रूप से काम कर रहा है. लेकिन आखिर इतना विशाल स्पेस स्टेशन किस या किन-किन धातुओं से बना है. और इसके लिए धातुओं को कैसे चुना गया. इन सवालों के जवाब इसकी निर्माण प्रक्रिया में छिपे हैं.
अलग हिस्सों की अलग जिम्मेदारी
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन कई हिस्सों में बना है और इसके रखरखाव की जिम्मेदारी भी बंटी हुई है. इसी तरह से इसके हिस्सों के निर्माण की जिम्मेदारी भी पांच स्पेस एजेंसी, नासा , रोसकोसमोस, ईसा, जाक्सा और सीएसए के बीच में बांटी गई थी. वहीं एजेंसियों ने भी अपने पुराने अनुभवों को साझा किया जिससे वे स्टेशन के लिए सही पदार्थों का चयन कर सकें.
एक खास तरह का प्रयोग
स्टेशन के हिस्सों के निर्माण के पदार्थों के लिए मटेरियल्स इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन एक्सपेरिमेंट, एमआईएसएसई का बहुत महत्व है. इन प्रयोगों के जरिए लंबे समय तक अंतरिक्ष के कठोर वातावरण में पदार्थों के रहने के प्रभावों को अध्ययन करने की योजना था. इसके जरिए भविष्य के अभियानों के लिए धातु और पदार्थों के चयन की प्रक्रिया निर्धारित करने में भी मदद मिली है.
सभी पदार्थ नहीं हैं अनुकूल
इन्हीं एमआईएसएसई के जरिए कई पदार्थ पृथ्वी निचली कक्षा के लिए बिलकुल ही अनुचित पाए गए क्योंकि वहां मौजूद आणविक ऑक्सीजन कई पदार्थों से बहुततेजी से प्रतिक्रिया कर उन्हें खराब कर देती है. इसी प्रकार से पता चला कि पदार्थ का पराबैंगनी विकिरण रोधी होना बहुत जरूरी है क्योंकि यहां पर पराबैंगनी किरणों को कुछ भी नहीं रोकता है. वहीं निर्वात भी कई पादार्थों को अनुपयुक्त कर देता है. इसके अलावा उल्का पिंड और इंसाने के बनाए सैटेलाइट के अवशेष भी नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं जो स्पेस स्टेशन के पदार्थ को हानि पहुंचा सकते हैं.
कई तरह के पदार्थों की परख
एमआईएसएसई परियोजना में करीप 1508 नमूनों का परीक्षण किया है. इनमें स्विच, सेंसर, आईने, आदि से लेकर पॉलिमर, परतें, मिश्रित पदार्थ तक शामिल थे. इसके अलावा बीज, स्पोर और कई बैक्टीरिया जैसे कई जैविक पदार्थ भी परखे गए. जबकि हर पदार्थ को पहले प्रयोगशाला में भी परखा गया था. पदार्थों के परीक्षण की प्रक्रिया अब भी जारी है. लेकिन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन के हिस्से के पदार्थ हमें बातते हैं कि स्पेस स्टेशन किस तरह के पदार्थों से बनना चाहिए.
इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में सबसे प्रमुख धातु एल्यूमीनियम और स्टील का उपयोग किया गया है. एल्यूमीनियम हलकी होती है इसलिए अच्छी होती है, लेकिन कई उपकरणों में मजबूती की अधिक जरूरत होती है इस लिहाज से स्टील का उपयोग किया गया है. इनके अलावा केवलार (ऊष्मा प्रतिरोधी सिंथेटिक फाइबर) और सिरेमिक का भी खासा उपयोग हुआ है. इनके अलावा टाइटेनियम, कॉपर, के साथ कई मिश्रधातु और पॉलीमर का भी उपयोग किया गया है. लेकिन इन पदार्थों के बेहतर स्वरूपों का नए स्पेस स्टेशन में उपयोग किया जा सकता है.