Friday, November 22, 2024
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कब और कैसे किया जाता है जनेऊ संस्कार?

नई दिल्ली- सनातन धर्म में ‘जनेऊ संस्कार’ बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। यह युवा लड़कों को यज्ञोपवीत संस्कार में दीक्षित करने का प्रतीक है। वहीं यह 16 संस्कारों में से भी एक है, जिसे लोग उपनयन संस्कार या फिर जनेऊ संस्कार के नाम से जानते हैं।इस दसवें संस्कार के दौरान, बच्चे के शरीर पर एक पवित्र धागा बांधा जाता है, जो उनके किशोरावस्था में प्रवेश का प्रतीक है।

जनेऊ संस्कार कब और कैसे किया जाता है?

जनेऊ संस्कार 8 से 16 वर्ष के बीच होता है। हालांकि कुछ लोग इसे अपनी शादी से पहले भी करवाते हैं। इसको लेकर लोगों की अलग-अलग मान्यताएं हैं, लेकिन आमतौर पर यह किशोरावस्था में पहुंचने से पहले किया जाता है। यह किसी जानकार पुरोहित द्वारा किया जाता है। जनेऊ बाएं कंधे पर और दाहिनी बांह के नीचे धारण किया जाता है।

उपनयन संस्कार का महत्व

सनातन धर्म में जनेऊ का खास महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि इसे धारण करने से बच्चे को जीवन भर ज्ञान प्राप्त करने और नैतिक मूल्यों को बनाए रखने की शक्ति मिलती है। उपनयन संस्कार को लेकर यह भी कहा जाता है कि इसे पहनने और इसके नियम का पालन करने से बच्चों में अनुशासन पैदा होता है, क्योंकि उन्हें इससे जुड़े कुछ पवित्र नियमों का पालन करना सिखाया जाता है।

जनेऊ धारण करने के फायदे

सनातन धर्म के अनुसार, उपनयन नकारात्मक ऊर्जाओं और विचारों से रक्षा का एक प्रत्यक्ष कवच है। इसमें उपस्थि तीन धागे मां सरस्वती, मां पार्वती और मां लक्ष्मी का प्रतीक हैं। ऐसा कहा जाता है कि ‘जनेऊधारी’ किसी भी प्रकार की अशुद्धियों से सुरक्षित रहते हैं।इस पवित्र धागे के जरिए जनेऊ पहनने वाले व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। साथ ही इससे शिक्षा और आध्यात्मिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने में भी मदद मिलती है।

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