Petrol-Diesel Prices: सरकार ने तेल उत्पादक, रिफाइनरी कंपनियों को बड़ी राहत दी है। उसने डीजल और एविएशन फ्यूल पर लगने वाले विंडफॉल टैक्स में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती कर दी है। इसी तरह पेट्रोल (गैसोलाइन) के निर्यात पर लगने वाले 6 रुपये प्रति लीटर सेस को खत्म कर दिया है।
- देश में कच्चे तेल का उत्पादन करने वाली कंपनियों को भी सरकार ने राहत दी है।
- इसके तहत प्रति टन 23,250 रुपये लगने वाले टैक्स को घटाकर 17000 रुपये प्रति टन कर दिया है।
- जून के महीने में मध्य प्रदेश,राजस्थान ,कर्नाटक, गुजरात, जम्मू-कश्मीर सहित देश कई इलाको में पेट्रोल-पंप पर लंबी-लंबी लाइनें और कई आउटलेट्स पर ‘पेट्रोल नहीं है’ के बोर्ड लग गए थे।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों को देखते हुए सरकार ने बड़ा फैसला किया है। उसने डीजल और एविएशन फ्यूल पर लगने वाले विंडफॉल टैक्स यानी (स्पेशल एडिशन एक्साइज ड्यूटी) में 2 रुपये प्रति लीटर की कटौती कर दी है। कंपनियां अभी 6 रुपये प्रति लीटर के अनुसार टैक्स दे रहीं थीं। इसी तरह पेट्रोल (गैसोलाइन) के निर्यात पर लगने वाले 6 रुपये प्रति लीटर सेस को खत्म कर दिया है। इस फैसले से तेल उत्पादक कंपनियों से लेकर रिफाइनरी कंपनियों को फायदा मिलेगा। जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज, ओएनजीसी और ऑयल इंडिया जैसी कंपनियों को फायदा मिलेगा।
घरेलू कंपनियों को भी फायदा
निर्यात के अलावा देश में कच्चे तेल का उत्पादन करने वाली कंपनियों को भी सरकार ने राहत दी है। इसके तहत प्रति टन 23,250 रुपये लगने वाले टैक्स को घटाकर 17000 रुपये प्रति टन कर दिया है। नए बदलाव 20 जुलाई से लागू होंगे। इसके पहले सरकार ने एक जुलाई को तेल उत्पादक और रिफाइनरी कंपनियों पर विंड फॉल टैक्स लगा दिया था। सरकार ऐसा कर पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात पर रोक लगाना चाहती थी। क्योंकि कई कंपनियां ज्यादा कमाई के चक्कर में पेट्रोलियम उत्पादों को निर्यात कर रही थी। जिसकी वजह से घरेलू बाजार में किल्लत शुरू हो गई थी।
कंपनियां क्या कर ही थी खेल
जून के महीने में मध्य प्रदेश , राजस्थान ,कर्नाटक, गुजरात, जम्मू-कश्मीर सहित देश कई इलाको में पेट्रोल-पंप पर लंबी-लंबी लाइनें और कई आउटलेट्स पर ‘पेट्रोल नहीं है’ के बोर्ड लग गए थे। और इसकी वजह यह थी कि जबकि भारत रूस से इस समय 25-30 फीसदी कम दर पर पेट्रोल-डीजल खरीद रहा है। जिसके हिसाब से 90-95 डॉलर प्रति बैरल के बीच खरीद की कीमत आ गई । इसे देखते हुए कंपनियां ज्यादा कमाई के चक्कर में घरेलू बाजार में पेट्रोल-डीजल नहीं बेचकर, ज्यादा कमाई के लिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेचने लगी। जिसका खामियाजा देश में पेट्रोल-डीजल की किल्लत के रूप में उठाना पड़ रहा था। इसी वजह से सरकार ने विंडफॉल टैक्स और सेस लगाने का फैसला किया था।