आपने धूप और बारिश साथ-साथ होते देखकर कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? या कभी ये सोचा है कि बिजली कड़कने के बाद हमेशा बादल क्यों गरजते हैं? ऐसे बहुत सारे सवाल हैं जो मानसून यानी बारिश के मौसम में हमारे दिमाग में कौंधते हैं।
भारत में मानसून कहां से आता है?
मानसून कहां से आता है, ये जानने से पहले जानते हैं कि मानसून का मतलब क्या होता है। दरअसल, मानसून एक अरबी शब्द है, जिसका मतलब ऋतु या सीजन है। जून महीने के आस-पास सूर्य की किरणें पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध यानी पृथ्वी के ऊपरी हिस्से पर पड़ती हैं। इस वजह से धरती पर तेज धूप पड़ती है, लेकिन समुद्र ठंडा रहता है।जिससे धरती काफी गर्म हो जाती है। यहां एक बात समझना जरूरी है कि जहां हवा ठंडी होगी, वहां प्रेशर ज्यादा होगा। ऐसे में समुद्र के ठंडा होने की वजह से ज्यादा प्रेशर वाले समुद्र से कम प्रेशर वाली धरती की ओर हवा बहती है। हवा अपने साथ नमी भरे बादल लेकर चलती है, जो धरती पर पहाड़ों और पेड़ों से टकराकर बारिश कराती है।
भारत में मानसून दो दिशाओं से प्रवेश करता है। अरब सागर से आने वाली मानसूनी हवाएं सबसे पहले बारिश लेकर केरल पहुंचती है। वहीं, बंगाल की तरफ से मानसून की दूसरी धारा प्रवेश करती है, जो नॉर्थ-ईस्ट से होते हुए गुजर जाती है।
बिजली चमकती क्यों है? बिजली चमकने के बाद आवाज क्यों सुनाई देती है?
बारिश तेज होने पर बिजली गिरना स्वाभाविक है। दरअसल, 2 बादलों के समूह के आपस में टकराने से बिजली चमकती है।सामान्य भाषा में कहें तो बादलों के 2 समूह जब आपस में टकराते हैं तो बिजली चमकती है। इसके पीछे का साइंस ये है कि जब हवा और बारिश की बूंदों के बीच घर्षण होता है तो इससे बारिश की बूंदें आवेशित होती हैं यानी चार्ज हो जाती हैं। फिर जब पॉजिटिव चार्ज वाले बादल के समूह निगेटिव चार्ज वाले बादल के टुकड़े से टकराते हैं तो बिजली पैदा होती है और इससे तेज रोशनी चमकती है।बादलों के टकराने से पैदा हुई बिजली जब वायुमंडल में मूवमेंट करती है तो इससे हवा में गर्मी पैदा होती है।
कुछ खास इलाकों में ज्यादा बिजली क्यों गिरती है?
NASA के आधिकारिक डेटा के मुताबिक पूर्वी भारत की ब्रह्मपुत्र घाटी में औसतन अप्रैल से मई के बीच हर महीने में दुनिया में सबसे ज्यादा बिजली गिरती है। इसके अलावा वार्षिक लाइटनिंग रिपोर्ट 2021-2022 के अनुसार आकाशीय बिजली गिरने के मामले में MP और महाराष्ट्र टॉप राज्य हैं। हालांकि बिहार और UP जैसे राज्यों ने मध्य प्रदेश से आधे स्ट्राइक के साथ दोगुना नुकसान उठाया है।
क्या कभी आपने सोचा है आखिर ऐसा क्यों होता है?कई बार आसमान से बिजली गिरने की तेज आवाज के कारण इंसान के शरीर, दिल और दिमाग को नुकसान हो सकता है।इस सवाल का जवाब मौसम वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह ने हमें बताया। उन्होंने कहा कि किसी खास जगह के वायुमंडल में हवा और बादल की वजह से अस्थिरता होती है तो इन इलाकों में ज्यादा बिजली गिरने का डर बना रहता है। इसकी 2 वजहें हैं…
- कितनी ऊंचाई पर बादल बन रहा है।
- मल्टीलेयर क्लाउड बनने की वजह से। इसमें एक के ऊपर एक बादल के लेयर बने होते हैं। बादलों के इन लेयर के आपस में टकराने से इस क्षेत्र में ज्यादा बिजली गिरने की आशंका होती है।
मौसम वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह ने हमें बताया कि मल्टीलेयर क्लाउड ऐसी जगह बनते हैं जहां जमीन में नमी कम होती है। इसी वजह से किसी क्षेत्र या राज्य में ज्यादा बिजली गिरने की घटना होती है।
बारिश की बूंदें गोल और आकार में छोटी-बड़ी क्यों होती हैं?
बारिश होने पर उसकी बूंदें जमीन पर गोल आकार में गिरती हैं। माना जाता है कि हवा में मौजूद पानी की बूंदें बड़ी और भारी हो जाती हैं और गुरुत्वाकर्षण की वजह से यह नीचे गिरती हैं।रिश की बूंदों के गोल होने के पीछे साइंस की 2 वजहें हैं-
- सरफेस टेंशन जिसे हिंदी में पृष्ठ तनाव कहते हैं। ये शब्द विज्ञान के हैं, जिसका मतलब आप नीचे की लाइन में समझेंगे।
- गुरुत्वाकर्षण सरफेस टेंशन यानी पृष्ठ तनाव द्रव पदार्थ का वो गुण है, जिसकी वजह से ये फैलती या सिकुड़ती है। जब हवा में मौजूद पानी की बूंदें बड़ी और भारी हो जाती है तो गुरुत्वाकर्षण की वजह से यह नीचे गिरती है। इस दौरान विज्ञान के इन्हीं दो वजहों से बूंदें गोल आकार में गिरती है। वायुमंडल में वाष्प की मात्रा, ताप और दाब की वजह से बारिश की बूंदों के आकार में अंतर होता है।
एसिड रेन या अम्लीय वर्षा क्या होती है?
एसिड रेन को हिंदी में अम्लीय वर्षा कहते हैं। जब बारिश की बूंदों के साथ एसिडिक या अम्लीय पानी धरती पर गिरता है तो एसिडिक रेन कहलाता है।
दरअसल, होता ये है कि वायु प्रदूषण की वजह से हवा में नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक एसिड मौजूद होते हैं। जब ये बारिश की बूंदों के साथ घुलकर जमीन पर गिरते हैं, तो इससे पानी अम्लीय हो जाता है। इस अम्लीय पानी से फसल, मिट्टी और इमारतों को नुकसान होता है। यही वजह है कि बारिश के पानी को सीधे पीने से मना किया जाता है, क्योंकि उसमें कई सारे केमिकल मिले होते हैं।
कई बार धूप और बारिश साथ-साथ क्यों होती है?
मौसम वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह का मानना है कि कई बार ज्यादा ऊंचाई पर बादल अनियमित होते हैं। बादल एक साथ ना होने के कारण ये इधर-उधर फैले हुए होते हैं। बादलों के बीच का गैप सूरज की किरणों के धरती तक पहुंचने का कारण बनता है। इस वक्त सूर्य की किरणें हमारे ठीक ऊपर ना होकर थोड़ी तिरछी होती हैं।ऐसे में करीब 15 करोड़ किलोमीटर दूर से आने वाली सूर्य की किरणों को धरती से 10-12 किलोमीटर ऊपर बादल नहीं रोक पाते हैं। यही वजह है कि कई बार एक ही समय पर बारिश और धूप एक साथ खिली रहती है।
रेनबो क्या होता है और कैसे बनता है?
कई बार आसमान में एक 7 रंगों वाली सुंदर धनुष की आकृति देखने को मिलती है। इसे इंद्र धनुष या रेनबो कहा जाता है। हम अक्सर बारिश के दिनों में ही इस इंद्र धनुष देखते हैं। ये सातो रंग एक वृत्ताकार छल्ले के आकार में होता है। लेकिन हम धरती के जिस हिस्से में होते हैं, वहां से पृथ्वी के ऊपर का सिर्फ आधा हिस्सा ही दिखाई दे रहा होता है। इसलिए ये अर्ध चंद्राकार दिखता है। फ्लाइट से या फिर सेटेलाइट इमेज में पूरे रेनबो को देखा जा सकता है।
दरअसल, बरसात के दिनों में पानी की बूंदों से टकराकर सूर्य की किरणें 7 रंगों में विभाजित होती हैं यही रेनबो है। ऐसा इसलिए क्योंकि आप जो सफेद प्रकाश की किरण देखते हैं वह सात रंगों से मिलकर बना होता है। ऐसे में जब सूर्य की किरणें पानी के करोड़ों छोटे बूदों से टकराती है तो अपने मूल सात रंगों में बंट जाती है। इस साइंटिफिक प्रोसेस को डिस्पर्शन ऑफ लाइट या प्रकाश की किरणों का बंटना कहते हैं।
छोटे इलाके में कहीं बारिश हो रही होती हैं और कहीं नहीं, आखिर क्यों?
कई बार हम देखते हैं कि 5 किलोमीटर के क्षेत्र में ही कहीं सूखा तो कहीं बारिश हो रही होती है। आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्यों होता है? इस बारे में मानसून वैज्ञानिक वेदप्रकाश सिंह ने बताया कि कई बार वायुमंडल के बादलों में एक समानता नहीं होती है। 5 किलोमीटर की दूरी में ही कहीं कम तो कहीं ज्यादा बादल किस एक दायरे में जमा हो जाते हैं।
ये एक खास क्षेत्र तक के दायरे में ही अपना मानसूनी सिस्टम बनाते हैं। कई जगह के बादलों में ज्यादा पानी होता है तो वहीं कई जगह बादलों में पानी की मात्रा काम होती है। जहां के बादल में ज्यादा नमी या पानी होती है, वहां तेज बारिश होती है। जबकि कम नमी या पानी वाले जगह पर कम बारिश होती है।
बादल क्या होते हैं और क्या बादल वाकई फटते हैं?
बादल आकाश में तैरते हुए दिखाई देने वाले पानी के कण या बर्फ होते हैं। जब भाप या वाष्प बनकर पानी के काफी छोटे-छोटे कण वायुमंडल के ऊपरी सतह पर पहुंचकर ठंडी हवाओं के साथ मिलते हैं तो ये बादल कहलाते हैं। ये तो हुई बात बादल की। अब आगे जानते हैं आखिर बादल फटना क्या होता है…
जब किसी छोटे से इलाके में बहुत कम समय में बहुत ज्यादा बारिश होती है तो आमतौर पर इसे हम बादल फटना कहते हैं। इसमें बादल फटने जैसा कुछ नहीं होता। हां, ऐसी बारिश इतनी तेज होती है जैसे ज्यादा पानी से भरी हुई एक बहुत बड़ी पॉलीथीन आसमान में फट गई हो। इसलिए इसे हिंदी में बादल फटना और अंग्रेजी में Cloudburst के नाम से पुकारा जाता है।मौसम विभाग के मुताबिक जब अचानक 20 से 30 वर्ग किलोमीटर के इलाके में एक घंटे या उससे कम समय में 100mm या उससे ज्यादा बारिश हो जाए तो इसे बादल फटना कहते हैं।