मुंबई– भारतीय इतिहास में कई ऐसी गौरवगाथाएं हैं, जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी नहीं होती। उन कथाओं को सिनेमा पर्दे पर दर्शाने में फिल्ममेकर खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। इनमें “मिशन रानीगंज: द ग्रेट भारत रेस्क्यू” मानवीय भावनाओं और भारतीय इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की बुद्धिमत्ता, दृढ़ संकल्प और वीरता का प्रतीक है।
साल 1991 में जसवंत सिंह गिल को इसी जाबांजी के लिए राष्ट्रपति की ओर से सर्वोत्तम जीवन रक्षा पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। इस अभियान के बाद उन्हें ‘कैप्सूल गिल’ के नाम से भी पुकारा जाने लगा था। इसी घटनाक्रम पर टीनू सुरेश देसाई ने ‘मिशन रानीगंज’ बनाई है। जसवंत गिल का साल 2019 में निधन हो गया था। फिल्म में कोयला खदान इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की भूमिका अभिनेता अक्षय कुमार ने निभाई है।
रानीगंज खदान केस पर आधारित है कहानी
साल 1989 में पश्चिम बंगाल के रानीगंज में महाबीर कोयला खदान में 65 मजदूर फंस गए थे। गिल ने उस बचाव अभियान का नेतृत्व किया था, जबकि वह उस खदान में काम भी नहीं करते थे। यह मामला 13 नवंबर, 1989 का है। गलत जगह विस्फोट होने की वजह से खदान में पानी भरना शुरू हो गया था।मजदूरों का कुछ पता नहीं चल रहा था। स्थानीय लोगों में काफी आक्रोश था। तब गिल ने मजदूरों की जान बचाने के लिए ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जिसे पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया थाl खदान में पानी के बहाव की गति को देखते हुए अंदर जाना संभव नहीं था।
ऐसे में गिल ने स्थिति का जायजा लेकर एक नया बोर ड्रिल करने का सुझाव दिया। साथ ही स्टील का एक कैप्सूल बनाने का प्रस्ताव दिया जिसे खदान में भेज कर वहां फंसे लोगों को एक-एक करके बाहर निकाला जा सके। तीन दिन तक चले बचाव अभियान के दौरान गिल सभी मजदूरों को जीवित निकालने में कामयाब रहे।
कैसा है फिल्म का स्क्रीनप्ले?
फिल्म की शुरुआत शरद केलकर की आवाज में कोयला खदानों का इतिहास बताने के साथ होती है। ओपनिंग शॉट में ही जसवंत गिल की दिलेरी का परिचय दे दिया जाता है। फिर एक गाने के बाद कोयला खदान में कार्यरत मजदूरों की जिंदगानी की छोटी सी झलक मिलने के बाद कहानी कोयला खदान की ओर केंद्रित होती है। टीनू सुरेश ने तकनीक रूप से जटिल इस फिल्म को काफी सरल तरीके से बताने का प्रयास किया है।
खदानों में फंसे मजदूरों की मनोदशा का उन्होंने संजीदा चित्रण किया है। वह कैप्सूल तैयार करने की झलक देते हैं, लेकिन उसकी गहराई में नहीं जाते। वह मजदूरों के खदान में फंसने से लेकर बाहर निकलने तक तनाव का माहौल बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।
तकनीकी स्तर पर फिल्म थोड़ी कमजोर है। कोयला खदान का सेट स्पेशल इफेक्ट्स पर आश्रित है। यह स्क्रीन पर साफ नजर आता है। मध्यांतर से पहले फिल्म बहुत तीव्र गति से आगे बढ़ती है। ऐसा लगता है कि सभी कोयला खदान की कार्यप्रणाली से वाकिफ है। मजदूरों के कोयला खदान में फंसने की खबर के बाद जब गिल घटनास्थल पर पहुंचते हैं और बचाव अभियान की कमान संभालते हैं।उस दौरान उन्हें लालफीताशाही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वह उस माहौल में भी उससे निपटते हुए अपने अभियान से डिगते नहीं। इन प्रसंगों को टीनू ने खूबसूरती से गूंथा है। मजबूरी में किए वादे अक्सर झूठे साबित होते हैं जैसे कुछ संवाद दमदार हैं।
कैसा है अक्षय कुमार और अन्य कलाकारों का अभिनय?
मिशन रानीगंज का भार पूरी तरह उनके कंधों पर है। असल जिंदगी में कोरोना काल के दौरान मदद के लिए हाथ बढ़ाने वाले अक्षय पर्दे पर उस तरह की भूमिका में जंचते हैं। उन्होंने गिल के दृढ़ निश्चय, आत्मीयता, हंसमुख स्वभाव और काम के प्रति समर्पण को पूरी शिद्दत से आत्मसात किया है। पति-पत्नी का एकदूसरे के काम की इज्जत करना और उसमें दखलंदाजी न करने के प्रसंग प्रेरित करते हैं। फिल्म में कुमुद मिश्रा, पवन मल्होत्रा, वरुण बडोला, दिब्येंदु भट्टाचार्य , राजेश शर्मा , वीरेंद्र सक्सेना, अनंत महादेवन, जमील खान, सुधीर पांडे जैसे मंझे कलाकार हैं। सभी अपनी भूमिका साथ न्याय करते हैं।
चंद दृश्यों के बावजूद वह अपनी दमदार मौजूदगी दर्ज कराते हैं। दबंग खदान मजदूर की भूमिका में रवि किशन ध्यान खींचते हैं। फिल्म केसरी के बाद एक बार फिर परिणीति इस फिल्म में अक्षय कुमार के साथ नजर आई हैं। उनके हिस्से में नाच गाने के साथ चंद भावनात्मक दृश्य हैं। उसमें वह जंची हैं।यह फिल्म प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए हौसला रखने की कहानी है। देश के गुमनाम हीरो की यह कहानी मजदूरों को बचाने की प्रक्रिया दिखाते हुए दर्शकों को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहती है।