स्पेसक्राफ्ट को लैंड कराने से पहले गोल-गोल क्यों घुमाया जाता है? जाने क्या कहता हैं विज्ञान?

विज्ञानं -ज्ञान: भारत ने 14 जुलाई को चंद्रयान-3 को चांद की ओर रवाना कर दिया. यह 40 से 42 दिनों में चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंड करेगा. उससे पहले यह धरती के 5 ओर फिर चंद्रमा के 8 चक्कर लगाएगा. अब सवाल यह है कि आखिर स्पेसक्राफ्ट को लैंड कराने से पहले गोल-गोल क्यों घुमाया जाता है? क्या इसे सीधे चांद पर नहीं भेजा जा सकता है?

लंबा समय क्यों लेते हैं इसरो के प्रोजेक्ट?

चंद्रमा धरती से 3.83 लाख किलोमीटर दूर है. वास्तव में यह दूरी 4 से सात दिनों में पूरी की जा सकती है, क्योंकि नासा अपने यानों को चंद्रमा पर इसी समयांतराल के भीतर पहुंचा देता है. इसरो ऐसा क्यों नहीं करता? क्यों इसरो के प्रोजेक्ट लंबा समय लेते हैं? क्या इसके पीछे कोई विशेष कारण है? दरअसल, इसके पीछे दो कारण हैं. पहला कारण है कि दूसरे ग्रह में आंतरिक्ष यान को सीधे भेजने की प्रक्रिया महंगी होती है.

सीधे चांद पर जाने में क्या दिक्कत है?

यह गलत नहीं है कि ISRO अपने यानों को सीधे चंद्रमा तक नहीं भेज सकता. इसरो के पास नासा की तरह बड़े और प्रभावशाली रॉकेट नहीं हैं, जो चंद्रयान को सीधे चंद्रमा के गोलाकार आवरण में प्रवेश करा सकें. ऐसे रॉकेटों को बनाने के लिए हजारों करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे.नासा की तुलना में इसरो के परियोजनाएं सस्ती होती हैं.

4 दिनों में चांद पर पहुंचा जा सकता है

वर्ष 2010 में चीन का चांगई-2 और उसके बाद चांगई-3 भी 4 दिनों में चंद्रमा पर पहुंच गया था. वहीं, सोवियत संघ का पहला मून मिशन लूना-1 महज 36 घंटों में ही चांद की कक्षा में प्रवेश कर चुका था. इसी तरह अमेरिका के अपोलो-11 मिशन के दौरान, कोलंबिया चार दिनों में पहुंच गया था. फिर इसरो का चंद्रयान इसमें इतना समय क्यों ले रहा है?

कम होती है इसरो के मिशन की लागत

चीन, अमेरिका और सोवियत संघ के रॉकेट लॉन्चिंग की कीमत 550 से 1000 करोड़ रुपये के बीच होती है. वहीं, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र (ISRO) के रॉकेट लॉन्चिंग की कीमत 150 से 450 करोड़ रुपये तक रहती है. स्पेसक्राफ्ट में ईंधन सीमित मात्रा में ही होता है. इसलिए उसे सीधे किसी अन्य ग्रह पर भेजने से बचा जाता है, क्योंकि इसके कारण सारा ईंधन समाप्त हो जाएगा. इसलिए, उसे कम ईंधन का उपयोग करके धरती की गति और गुरुत्वाकर्षण की मदद से आगे भेजा जाता है.

 

इससे समझा जा सकता है

इसे आप इस प्रकार समझ सकते हैं, जब आप एक चलती हुई बस या धीमी गति वाली ट्रेन से उतरते हैं, तो आप उसकी गति के समान गति से नीचे उतरते हैं. ऐसा करने से आपके गिरने का खतरा भी 50% कम हो जाता है. इसी तरह, यदि रॉकेट को सीधे अंतरिक्ष की ओर भेजेंगे, तो उसे धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति अधिक तेजी से आकर्षित करेगी.

इसलिए लग रहें हैं 40-42 दिन

रॉकेट को धरती की गति के साथ तालमेल बिठाकर उसके चारों तरफ चक्कर लगाने से ग्रेविटी पुल (Gravity Pull) कम होता है. इस प्रकार, रॉकेट या अंतरिक्ष यान को धरती पर गिरने का खतरा कम हो जाता है. धरती अपनी धुरी के चारों तरफ लगभग 1600 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से घूमती है. इसका रॉकेट या अंतरिक्ष यान को लाभ मिलता है, जो धरती के चारों तरफ घूमते हुए बार-बार ऑर्बिट मैन्युवरिंग करता है. अर्थात्, यह अपनी कक्षा बदलता है. कक्षाओं को बदलने में समय लगता है. इसलिए, चंद्रयान-3 को भी अपनी मंजिल तक पहुंचने में 42 दिन लग रहे है.

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