ज्ञान/विज्ञानं– कई देशों में गाडियां दाईं लेन में चलती हैं, लेकिन भारत की बात करें तो यहां गाड़ियां सड़क पर बाईं और चलती हैं. इसी वजह से पब्लिक व्हीकल, जैसे बस में सवारियों के उतरने और चढ़ने के लिए दरवाजा भी बाई ओर होता है. अगर आपने गौर किया हो तो हवाई जहाज में भी यात्रियों को हमेशा बाईं ओर से ही चढ़ाया जाता है. अब सवाल यह बनता है कि प्लेन के लिए तो ऐसा कोई नियम भी नहीं होता कि उसे बाईं लेन में चलना है, तो फिर उसमें यात्रियों को हमेशा बाईं ओर से ही क्यों चढ़ाया जाता है?
कभी-कभी दाईं ओर से भी होती है बोर्डिंग
ऐसा भी नहीं है कि हवाई जहाज में हर बार ही यात्रियों को बाईं ओर से ही चढ़ाया जाता है. कई बार कुछ एयरलाइंस इस काम के लिए दाईं ओर के दरवाजे का इस्तेमाल भी कर लेती हैं, लेकिन आमतौर पर ऐसा कम ही होता है. दरअसल, हवाई जहाज में यात्रियों की बोर्डिंग बाईं ओर से कराने के कुछ अहम वजन होती हैं, जिनमें से सबसे मुख्य ग्राउंड क्रू के काम और उसकी रफ्तार से जुड़ी हुई है.
क्या है वजह?
प्लेन में ईंधन भरने और यात्रियों का सामान चढ़ाने का काम भी दायीं ओर से किया जाता है. ऐसी में इन कामों में कोई रुकावट न हो, इसके लिए यात्रियों को चढ़ाने का काम बाईं ओर से किया जाता है. इससे फायदा ये होता है कि सभी काम तेजी से और बिना रुकावट के हो जाते हैं, जिस वजह से फ्लाइट में देरी भी नहीं होती हैं. इसके अलावा, बाईं ओर से बोर्डिंग के लिए पारंपरिक कारण भी जिम्मेदार हैं. यह परंपरा समुद्री प्रथाओं से आई बताई जाती है.
समुद्री जहाजों से चली आ रही ये परंपरा
समुद्री जहाज में बायीं ओर को बंदरगाह के तौर पर और दाहिनी ओर को ‘स्टारबोर्ड’ के तौर पर जाना जाता है. ज्यादातर लोगों के सीधे हाथ से काम करने के कारण इसे ‘स्टीयरबोर्ड’ नाम भी दिया गया. उसमें चप्पू और स्टीयरिंग को दाईं ओर रखा गया, वहीं चढ़ना और उतरना बायीं ओर, यानी बंदरगाह की ओर से किया गया. यही परंपरा एविएशन सेक्टर में भी लागू हुई. इसीलिए आज भी हवाई यात्री बायीं ओर से ही विमान में चढ़ते हैं.
आगे से क्यों होती है बोर्डिंग?
इसकी एक वजह पायलट के लिए सहूलियत से भी जुड़ी है. कॉकपिट में पायलट बायीं सीट पर बैठता है. पहले समय में हवाई जहाज एयरपोर्ट पर यात्रियों को लेने या छोड़ने के लिए टर्मिनल के करीब आ जाते थे. ऐसे में बोर्डिंग बाईं ओर से होने के कारण पायलट के लिए टर्मिनल बिल्डिंग से विंगटिप क्लीयरेंस का अनुमान लगाना आसान हो जाता था. इसके अलावा, आगे से बोर्डिंग कराना भी समय की बचत से जुड़ी है.