नई दिल्ली- भारतीय रेलवे को देश की लाइफ लाइन कहा जाता है. हर दिन करोड़ों यात्री इससे सफर करते हैं. भारतीय रेलवे कई तरह की ट्रेनें चलाती हैं. इनमें पैसेंजर, सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनें शामिल हैं. इन्हीं ट्रेनों की सुरक्षित एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने की जिम्मेदारी रेलवे के स्टाफ और पुलिस बल के साथ-साथ पटरियों की भी होती है. पटरियों को इस लिहाज से डिजाइन किया जाता है कि वह ट्रेन का पैसेंजर्स सहित भार वहन कर सकें.
इन्हीं 2 समानांतर पटरियों के बीच कई बार आपने V आकार (V-Shape Tracks) की भी पटरी देखी होगी. क्या आप जानते हैं कि ये क्यों लगाई जाती हैं? अगर नहीं तो हम बताते हैं. ये वी आकार की पटरियां केवल शो के तौर पर नहीं लगाई जातीं. ये ट्रेन को दुर्घटना से बचाने में बड़ा योगदान देती हैं. इन्हें गार्ड रेल भी कहा जाता है. ये 2 मुख्य पटरियों को मजबूती देने का काम करती हैं. इन्हें प्रमुखता तीन स्थानों पर लगाया जाता है.
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कहां-कहां होता है इस्तेमाल
इन पटरियों को तीव्र मोड, लेवल क्रॉसिंग और पुल पर लगाया जाता है. इन तीनों ही मौकों पर V शेप की पटरियां मुख्य पटरियों को मजबूती प्रदान करती हैं. तीव्र मोड़ और लेवल क्रॉसिंग (जहां पटरियां सड़क के बीच से निकल रही हों) पर ये पटरियां ट्रेन को मुख्य ट्रैक्स से फिसलने नहीं देती हैं. ट्रेन के पहिये इन 2 पटरियों के बीच जकड़ जाते हैं और डीरेल नहीं होते हैं. पुल पर बनी पटरियों को उतना सपोर्ट नहीं मिल पा रहा होता है जितना जमीन पर बनी पटरियों को मिलता है. इसलिए ट्रेन के वजन से उनके मुड़ने की आशंका रहती है. वी शेप की पटरी लग जाने से सपोर्ट दोगुना हो जाता है और पटरियां मुड़ती नहीं हैं.
इन बातों का रखा जाता है ध्यान
पटरियां बनाते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखा जाता है. कोई भी पटरी 40 किलोग्राम प्रति मीटर से कम वजनी नहीं होती है. साथ ही मुख्य पटरी और गार्ड रेल के बीच की दूरी भी तय होती है. यह कम-से-कम 140 मिमी होनी ही चाहिए. गौरतलब है कि जिन मोड़ पर दुर्घटना की आशंका ज्यादा होती है वहां डबल गार्ड रेल लगाई जाती है.