Union Budget 2023: हीरे यानी डायमंड अब लैब में ही बनें इस पर काम शुरू हो चुका है. कई देश आगे निकल चुके हैं. भारत अभी हीरे का आयात करता है और इसी वजह से डायमंड खरीद पाना हर किसी के बस की बात नहीं. आज बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने कहा कि भारत में लैब ग्रोन डायमंड (प्रयोगशाला में निर्मित हीरे) के लिए रिसर्च एंड डेवलपमेंट का काम शुरू होगा. भारत अपना लैब ग्रोन डायमंड बनाएगा और ये काम IIT करेगा. इससे आयात पर निर्भरता कम होगी और रोजगार में मदद मिलेगी.
क्या होता है लैब ग्रोन डायमंड?
ये डायमंड लैब में बनता है. लंबे समय से खदानों के जरिए हीरों को निकाला जाता है. लेकिन अब ये लैब के अंदर ही बन रहे हैं. रासायनिक रूप से हीरे शुद्ध कार्बन के बने होते हैं. हीरे को खदान से निकालने में काफी मेहनत, वक्त की बर्बादी और पानी लगता है. जहां पर हीरों का खनन किया जाता है वहां पर हजारों पेड़ों को काट दिया जाता है. खदानों में मजदूरों की हालत बुरी होती है और हीरा मिल ही जाए इसकी कोई गारंटी नहीं. ऐसे में प्रयोगशाला में बने हीरे गेमचेंजर साबित हो सकते हैं.
भारत भी बनेगा हब
लैब ग्रोन डायमंड का मार्केट तेजी से बढ़ रहा है. भारत में भी ये काम चल रहा है. भारत में सबसे पहले 2004 में लेबग्रोन डायमंड बनाया गया था और इसका श्रेय भथवारी टेक्नोलॉजी को जाता है. ये एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसके जरिए प्रयोगशाला में हीरे बनाए जाते हैं. भारत इस क्षेत्र में पीछे नहीं रहना चाहता इसलिए वित्त मंत्री ने बजट में इसका रिसर्च सेंटर खोलने की बात कही है. इससे न सिर्फ रोजगार मिलेंगे, बल्कि हीरों का जो आयात भारत को करना होता है उसमें काफी कमी आएगी.
कितना बड़ा बाजार?
एलाइड मार्केट रिसर्च की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि साल 2021 से 2030 तक लैब ग्रोन डायमंड का बाजार हर साल करीब साने से 9 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ेगा. प्रयोगशाला में विकसित हीरे के बाजार साल 2030 तक $49.9 बिलियन डॉलर यानी (4 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचने का अनुमान है.
कैसे बनता है हीरा?
पृथ्वी के गर्भ में जब तापमान काफी गर्म होता है, उस वक्त कार्बन के एटम आपस में जुड़ने लगते हैं और हीरा तैयार होने लगता है. ठीक इसी तरह लैब में भी कार्बन के एटम (अणुओं) को बहुत ज्यादा दबाव और तापमान पर ठूंस-ठूंसकर इकट्ठा किया जाता है तो हीरा बनता है. कोयले की तरह इंसान और जानवरों के टिशू को भी हीरे में बदला जा सकता है. प्रयोगशाला में हाइड्रोकार्बन गैस के मिश्रण को 800 डिग्री सेल्सियस पर गर्म करते हैं. इस कारण कार्बन के एटम टूटने लगते हैं और परत दर परत हीरे के आकार की खोल में जमा होने लगती है और यही फिर एक क्रिस्टल के रूप में बदल जाते हैं. इस तरह लैब ग्रोन डायमंड का जन्म होता है.