विमल जैन – नागपुर / अकोला- बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि प्रस्तावित (नवगठित) प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों से नेट वर्थ प्रमाणपत्र (Net Worth Certificate) की मांग करना कानूनन गलत है, क्योंकि ऐसी कंपनियों का कोई पूर्व वित्तीय रिकॉर्ड नहीं होता।
यह फैसला गणेश ओमप्रकाश अग्रवाल और उनकी नवस्थापित कंपनी की याचिका पर सुनाया गया, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने महाराष्ट्र औद्योगिक विकास निगम (MIDC) द्वारा 18 फरवरी 2025 को उनकी बोली खारिज करने के निर्णय को चुनौती दी थी।
मामला क्या था?
MIDC ने एक औद्योगिक भूखंड की बिक्री के लिए टेंडर जारी किया था। याचिकाकर्ताओं ने भूखंड क्रमांक SZ-10 के लिए बोली लगाई थी। हालांकि याचिकाकर्ता कंपनी का रजिस्ट्रेशन हाल ही में 22 जनवरी 2025 को ही हुआ था, इस कारण उन्होंने कंपनी के बजाय प्रवर्तक का नेट वर्थ सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया। किन्तु MIDC ने यह कहते हुए तकनीकी बोली खारिज कर दी कि प्रमाणपत्र कंपनी का नहीं है।
कोर्ट का तर्क
न्यायमूर्ति अनिल एस. किलोर और न्यायमूर्ति वृषाली वी. जोशी की खंडपीठ ने इस पर स्पष्ट टिप्पणी करते हुए कहा:
“यह विधि का स्थापित सिद्धांत है कि किसी पक्ष को ऐसा कार्य करने को नहीं कहा जा सकता जो स्वाभाविक रूप से असंभव हो।”कोर्ट ने कहा कि जब कंपनी अभी प्रस्तावित या नवगठित है, तो उससे किसी प्रकार का नेट वर्थ सर्टिफिकेट मांगा ही नहीं जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
कोर्ट ने अपने निर्णय में सुप्रीम कोर्ट के Mahendra Singh Gill बनाम मुख्य चुनाव आयुक्त (1978) और Coal India बनाम Ananta Saha (2011) जैसे मामलों का भी उल्लेख किया। कोर्ट ने दोहराया कि यदि कोई प्रशासनिक कार्यवाही शुरू से ही अवैध है, तो उसके आधार पर आगे की कोई कार्रवाई विधिसंगत नहीं मानी जा सकती।
MIDC को पुनर्विचार का निर्देश
कोर्ट ने न केवल 18 फरवरी 2025 की अस्वीकृति सूचना को रद्द किया, बल्कि MIDC को यह भी निर्देश दिया कि टेंडर रद्द करने के अपने निर्णय पर दोबारा विचार करे, विशेष रूप से टेंडर की धारा 4(क) के संदर्भ में।
इस निर्णय का व्यापक प्रभाव
यह निर्णय उन नवगठित स्टार्टअप्स और निजी कंपनियों के लिए एक बड़ी राहत लेकर आया है जो बिना पर्याप्त वित्तीय इतिहास के भी टेंडर प्रक्रिया में भाग लेना चाहती हैं। इस फैसले से यह स्पष्ट संकेत गया है कि कानून समान अवसर और व्यावहारिक अपेक्षाओं के सिद्धांतों पर आधारित है, और किसी संस्था को उसके विकास के शुरुआती चरण में ही बाहर करना उचित नहीं है।
प्रतिक्रिया..
“हमने संगठन के माध्यम से नेट वर्थ प्रमाणपत्र से संबंधित विषय पर कई बार MIDC के मुख्यालय में चर्चा की, लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ अधिकारियों को मनमाने निर्णय लेने की आदत सी हो गई है। किसी भी निर्णय का मूल्यांकन इस आधार पर होना चाहिए कि उससे उद्योग क्षेत्र को लाभ होगा या नुकसान।
बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिया गया यह निर्णय सराहनीय है और न्यायसंगत दिशा में एक अहम कदम है। इससे उन उद्यमियों को भी सीधा लाभ मिलेगा, जिनके भूखंड केवल नेट वर्थ प्रमाणपत्र के अभाव में MIDC द्वारा रद्द कर दिए गए थे। यह फैसला पूरे औद्योगिक समुदाय के लिए एक सकारात्मक संकेत है।”
— सुरेश काबरा
अध्यक्ष, एम.आई.डी.सी. प्लॉट ओनर्स असोसिएशन