आज से पितृ पक्ष शुरू हो रहे हैं और 5 दिन का पंचक काल भी शुरू हो चुका है. ऐसे में अगले 15 दिनों के दौरान शुभ काम समेत कुछ अन्य काम करने से बचना चाहिए.
श्राद्ध पितृ पक्ष नियम: श्राद्ध या पितृ पक्ष के दौरान शुभ काम करने की मनाही की गई है. आज 10 सितंबर से पितृ पक्ष या श्राद्ध पक्ष शुरू हो रहे हैं. जबकि इससे पहले 8 और 9 सितंबर 2022 की मध्यरात्रि से पंचक प्रारंभ हो चुके हैं. हिंदू धर्म और ज्योतिष पितृ पक्ष और पंचकों के दौरान कोई भी शुभ काम करने की मनाही की गई है. श्राद्ध के 15 दिन और पंचकों के 5 दिनों के दौरान किए गए शुभ काम भी अशुभ फल देते हैं. लिहाजा इस दौरान कुछ खास काम करने से बचें.
न करें शुभ काम
अगले 15 दिनों तक कोई भी शुभ कार्य जैसे- गृह प्रवेश, घर-गाड़ी-गहने खरीदना, मुंडन, शादी-विवाह, नए काम की शुरुआत आदि न करें. दरअसल, पंचकों में किए गए शुभ काम अशुभ फल देते हैं. यहां तक कि मृत्यु के लिए भी पंचकों को अशुभ माना गया है क्योंकि रावण का वध भी पंचकों में ही हुआ था. इसलिए पंचकों में मृत्यु होने पर अंतिम संस्कार के दौरान विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं. वहीं पितृ पक्ष या श्राद्ध का समय पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने का होता है और यह जताने का होता है कि हम उनके बिना दुखी हैं. लिहाजा इस दौरान जश्न मनाना उचित नहीं है. इससे पितृ नाराज हो जाते हैं. लिहाजा 25 सितंबर तक कुछ काम न करें.
पितृपक्ष यानी श्राद्ध आज से शुरू हो रहे हैं. श्राद्ध पक्ष का समापन 25 सितंबर 2022 को किया जाएगा. हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर वर्ष भाद्रपद की पूर्णिमा तिथि और आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक पितृपक्ष रहता है. इसमें कौवे का खास महत्व होता है. शास्त्रों में कौवे को यमराज का प्रतीक माना गया है. कौवे को निवाला देने के बाद पितृ संतुष्ट होते हैं. पितृपक्ष के इन 15 दिनों में पितरों की पूजा, तर्पण और पिंडदान किया जाता है. हालांकि इस बार श्राद्ध 16 दिन का है.
क्या है मान्यता
पितृपक्ष यानी श्राद्ध का हिंदू धर्म में विशेष महत्व होता है. पितृपक्ष में पूर्वजों को श्रद्धापूर्वक याद करके उनका श्राद्ध कर्म किया जाता है. श्राद्ध पितरों की मुक्ति के साथ-साथ उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है.ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है और हर प्रकार की बाधाओं से मुक्ति मिलती है. पितृपक्ष में श्रद्धा पूर्वक अपने पूर्वजों को जल देने का विधान है.
क्यों जरूरी है श्राद्ध:
किसी के मरने के बाद एक वर्ष का कार्यकाल प्रतीक्षा काल माना जाता है. बरसी तक श्राद्ध कर्म नहीं होते हैं. उसके बाद श्राद्ध कर्म करके हम अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धावनत होते हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष में हमारे पितृ घर के द्वार पर आते हैं. श्राद्ध कर्म तीन पीढ़ियों का होता है. इसमें मातृकुल और पितृकुल (नाना और दादा) दोनों शामिल होते हैं. तीन पीढ़ियों से अधिक का श्राद्ध कर्म नहीं होता है. तर्पण, दान, भोजन, भावांजलि, तिलांजलि के रूप में श्राद्ध करने की प्रथा है. पितरों के नाम से भोजन निकालने से पहले गाय, कौआ, कुत्ते का अंश निकाला जाता है.
सूर्य निकलने के बाद होता है तर्पण
सूर्य अच्छी तरह चढ़ जाता है, तब श्राद्ध और तर्पण करना चाहिए. सुबह 11.30 से 12.30 तक का समय आदर्श समय माना गया है. तर्पण और श्राद्ध सूर्य ढलने के बाद नहीं होता.
पितृ दोष क्यों लगता है ?
1.किसी इंसान के मरने के बाद अगर विधि विधान से अंतिम संस्कार न किया जाए तो पितृ दोष लगता है.
2.अकाल मृत्यु हो जाने पर परिवार के लोगों को कई पीढ़ियों तक पितृ दोष दंश का सामना करना पड़ता है.अकाल मृत्यु होने पर पितर शांति पूजा करना जरूरी माना जाता है.
3. माता पिता का अनादर, मृत्यु के बाद परिजनों का पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध न करने पर पूरे परिवार पर पितृ दोष लगता है. पितरों का अपमान करना, किसी असहाय की हत्या, पीपल, नीम और बरगद के पेड़ कटवाना, जाने-अनजाने नाग की हत्या करना या करवाना पितृ दोष का कारण बनते हैं.
पितृ पक्ष में श्राद्ध 2022 की तिथियां
10 सितंबर पूर्णिमा का श्राद्ध
11 सितंबर प्रतिपदा का श्राद्ध
12 सितंबर द्वितीया का श्राद्ध
12 सितंबर तृतीया का श्राद्ध
13 सितंबर चतुर्थी का श्राद्ध
14 सितंबर पंचमी का श्राद्ध
15 सितंबर षष्ठी का श्राद्ध
16 सितंबर सप्तमी का श्राद्ध
18 सितंबर अष्टमी का श्राद्ध
19 सितंबर नवमी श्राद्ध
20 सितंबर दशमी का श्राद्ध
21 सितंबर एकादशी का श्राद्ध
22 सितंबर द्वादशी/संन्यासियों का श्राद्ध
23 सितंबर त्रयोदशी का श्राद्ध
24 सितंबर चतुर्दशी का श्राद्ध
25 सितंबर अमावस्या का श्राद्ध