शस्त्र पूजा: आज पूरा देश बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व दशहरा को मना रहा है। ये पर्व अधर्म पर धर्म , गलत पर सही की और असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है। आज बहुत जगहों पर शस्त्र पूजा की जाती है। अब सवाल ये उठता है कि आखिर इस पूजा का क्या मतलब है? तो इसका बहुत व्यापक अर्थ है, जिसे हर किसी को जानना बहुत जरूरी है। आपको बता दें कि शस्त्र पूजा मुख्य रूप से राजपूत परिवार, पुलिस और सेना करती है।
दरअसल पौराणिक कथाओं में वर्णन है कि जब असुर महिषासुर का उत्पात काफी मच गया था। जल-थल और नभ तीनों जगहों पर उसने आतंक फैला रखा था और देवताओं का जीना मुश्किल कर दिया था, तब सभी देवताओं ने आदिशक्ति स्वरूपा देवी दुर्गा की अराधना की थी। देवताओं की अराधना से जब देवी प्रकट हुई थीं तो देवताओं ने उनसे महिषासुर को मारने का निवेदन किया था, तब देवी ने उन्हें हां बोला था।
महिषासुर का वध
उस वक्त सभी देवताओं ने कुछ शस्त्रों की पूजा करके मां को दिए थे, जिससे मां ने महिषासुर का वध किया था। तब से ही शस्त्रों की पूजा होने लगी, जो हमें उस लड़ाई की याद दिलाती है और ये संदेश देती है कि बुराई चाहे जितनी ताकतवर क्यों ना हो एक दिन अच्छाई उसका अंत कर ही देती है।
शस्त्र पूजा के शुभ मुहूर्त
- दशमी तिथी कल दोपहर 2.20 से शुरू हुई है जो कि आज केवल 12 बजे तक ही है।
- शस्त्र पूजा का शुभ मुहूर्त (पहला)-सुबह 10.41 से दोपहर 2.09 तक
- शस्त्र पूजा का शुभ मुहूर्त (दूसरी)-दोपहर 02.07 से दोपहर 2.54 तक
कैसे करें शस्त्र पूजा
- सबसे पहले आप स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनें।
- फिर शस्त्रों को साफ करके एक स्थान पर रखें।
- फिर उन पर कुमकुम, हल्दी और फूलों का टीका करें।
- मां दुर्गा और मां काली का ध्यान करें।
- आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यार्थसिद्धये॥ मंत्र का जाप करे।
- फिर शस्त्रों पर गंगाजल छिड़कें और आरती करें।