प्लाज्मा तरंगे- भारतीय वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता मिली है. उन्होंने अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में प्लाज्मा तंरग मिली है. ये विशेष प्लाज्मा तरंग पृथ्वी के विकिरण बेल्ट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इस अनोखी तरंग का विश्लेषण लो अर्थ ऑर्बिट में भारत की संपत्तियों की सुरक्षा में मददगार साबित हो सकती है.
अंटार्किटिक स्टेशन में जिस तरंग को खोजा गया है वो इलेक्ट्रोमैग्नेटिक आयन साइक्लोट्रॉन तरंगे हैं, इन तरंगों की गति प्रकाश की गति के बराबर होती है. ये तरंगे तब बनती हैं जब ये मैग्नेटोस्फीयर में कम ऊर्जा वाले आयन( Ions) विद्युत चुम्बकीय क्षेत्रों के साथ संपर्क करते हैं.
प्लाज्मा तरंगे कैसे हो सकती हैं मददगार?
मैग्नेटोस्फीयर में जो ईएमआईसी (EMIC) तरंगें पाई जाती हैं वो इलेक्ट्रॉनों को बहुत अधिक ऊर्जा में गतिमान करती हैं. ये तरंगे विकिरण बेल्ट में कणों को बिखरने, तेज करने और वायुमंडल में अवक्षेपित (precipitate) करने की मुख्य वजह बन सकती हैं, जिससे विकिरण बेल्ट के वितरण और तीव्रता में बदलाव हो सकता है.
रिसचर्स ने कहा कि प्लाज्मा तंरगों का अध्ययन हमें उन क्षेत्रों के बारे में जानकारी देता है, जो हमारे लिए दुर्गम होने के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों में द्रव्यमान और ऊर्जा का परिवहन करते हैं. ये हमें ये जानकारी देते हैं कि वे आवेक्षित कणों के साथ कैसे परस्पर क्रिया करते हैं और पृथ्वी के मैग्नेटोस्फीयर के समग्र गतिशीलता को कंट्रोल करते हैं. पृथ्वी के निकट वातावरण में उपग्रहों और अन्य अंतरिक्ष यान पर अंतरिक्ष मौसम के प्रभावों की भविष्यवाणी के लिए इन तंरगों का व्यवहार समझना जरूरी है.
2011 से 2017 के बीच इकठ्ठा किया डेटा
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोमैग्नेटिज्म (IIG) के वैज्ञानिकों ने भारतीय अंटार्कटिक स्टेशन मैत्री में स्थापित किए गए इंडक्शन कॉइल मैग्नेटोमीटर के डेटा का अध्ययन किया. ये डेटा साल 2011 से 2017 के बीच का है. ये विश्लेषण इसलिए किया गया ताकि EMIC तरंगों के जमीनी अवलोकन के पहलुओं को सामने लाया जा सके. स्टडी में वैज्ञानिकों की टीम ने अंतरिक्ष में तरंगों की उत्पत्ति का स्थान पाया.
इसके साथ ही उन्होंने ये भी सुझाव दिया कि निम्न-आवृत्ति तरंगें उच्च-आवृत्ति तरंगों को संशोधित करती हैं. ये स्टडी जेजीआर स्पेस फिजिक्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. इसमें दिखाया गया है कि इस तरह की तरंगों की घटनाओं का शार्ट पीरियड मॉड्यूलेशन सामान्य बात है और ईएमआईसी तरंग आवृत्ति (वेव फ्रीक्वेंसी) पर निर्भर होती है.
विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि इस तरह का अध्ययन EMIC तंरग मॉड्यूलेशन की हमारी समझ में सुधार करने के लिए महत्वपूर्ण है. इससे ये जानकारी भी मिलेगी कि ये तरंगे ऊर्जावान कणों के परस्पर कैसा व्यवहार करते हैं, जो उपग्रहों और उनके संचार को प्रभावित करते हैं.