क्यों भगवान शिव को प्रिय है सावन का महीना और क्या है इसका धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व?

श्रावण मास परम साधना का पर्व है। समस्त पृथ्वीवासियों को तृप्ति देने वाला श्रावण जैसा कोई दूसरा मास नहीं है। भारतीय मनीषियों ने सनातनीय द्वादश मासों के क्रम में पांचवें मास को श्रावण मास कहा है। यह श्रवण नक्षत्र से बना है। महर्षि पाणिनि कहते हैं कि पूर्णिमा में होने वाले नक्षत्रों के आधार पर ही चांद्रादि मास होते हैं-सास्मिन् पौर्णमासी, अतएव जिस महीने में श्रवण नक्षत्र में पूर्णिमा होती है, उसे ही श्रावण मास कहते हैं। ज्योतिषशास्त्र श्रवण नक्षत्र का स्वामी भगवान विष्णु को मानता है। कुछ विद्वानों के मत से सृष्टि का प्रारंभ जल से हुआ है और सावन मास जल की प्रधानता लिए हुए है। आकाश से बरसता हुआ जल अमृतसदृश ही होता है।

श्रावण मास के प्रत्येक मंगलवार को कुमारी कन्याओं व सौभाग्यवती महिलाओं के लिए मंगला गौरी व्रत का विधान धर्मशास्त्रों में बताया गया है। श्रावण मास की कृष्णपक्ष द्वितीया को अशून्य शयनव्रत करने का विधान शास्त्रों में है। कहा गया है कि इस व्रत से वैधव्य व विधुर दोष दूर होते हैं। पति-पत्नी का साथ बना रहता है। यह अशून्य शयन व्रत लक्ष्मी सहित भगवान विष्णु को विशिष्ट शय्या पर पधारकर अनेक उपचारों द्वारा पूजन किया जाता है। इससे यह भी सिद्ध है कि यह मास हरिहरात्मक मास है, जिसमें एक साथ भगवान शिव एवं विष्णु की पूजा का विधान है।

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