दिप सर,होम स्कूल अकोला।
बच्चों से संबंधित प्रमुख दो समस्याएं रहती है, उसमें से पहली समस्या वे बार-बार बीमार पड़ते हैं, और वे हर वर्ष पढ़ाई में 20 से 30% पीछे रहते हैं। ऐसा 90% छात्रों के साथ होता है । बच्चे बार-बार बीमार ना पड़े इसलिए आप नेचुरल इम्यूनिटी याने रोग प्रतिकार शक्ति कैसे बड़े इस पर ज्यादा जोर दें । इस विषय पर हम अगले आर्टिकल में बात करेंगे।
आज का हमारा मुख्य विषय है जो छात्र प्रतिवर्ष पढ़ाई में 20 से 30% पीछे रहता है उसका समाधान कैसे करें।
देखिए शायद आपको यह पढ़कर बुरा लगेगा पर ज्यादा तर पेरेंट्स भेड़ चाल चल रहे हैं। उन्हें यह समझता नहीं कि हमारे बच्चे के लिए क्या जरूरी है वे सब देखा देखी कर रहे हैं। बराबरी करने की कोशिश कर रहे हैं।पर अभिभावक जो छात्र की क्षमता नहीं है उससे कई गुना बच्चों से अपेक्षा रखते है।बच्चों का स्कूल में अच्छी तरह से परफॉर्मेंस करने के लिए उनका बेस पक्का होना जरूरी है ।और लगभग हर छात्र की कक्षा में उपस्थिति 95% से ज्यादा होनी चाहिए।अब देखिए होता क्या है स्कूलों में बच्चों को एक या दो बार एक संकल्पना सिखाई जाती है । अगर बच्चे छोटे हैं तो उन्हें पहाड़े चार छे दिन सिखाए जाते हैं। पढ़ना लिखना 10-15 दिन सिखाया जाता है , फिर अभिभावकों से कहते हैं कि आप घर पर करवा लीजिए हम आगे का सिखा रहे हैं । हमें परीक्षा के लिए हमारा यह पोर्शन पूर्ण करना है।
इस चक्कर में जो चीजें बच्चों को नहीं समझी वह वहीं पर छूट जाती है । और अभिभावकों को एक तसल्ली दी जाती है , जो कि झूठी रहती है कि आगे चलकर बच्चा कर लेगा। पर ऐसा होता नहीं। जो उसी समय नहीं हो रहा वह आगे चलकर कैसे होगा ?अभी आपको मैं एक उदाहरण देता हूं ज्यों चीजें आपको सातवीं , आठवीं और नौवीं कक्षा में कठिन थी वे शायद आज भी आपको कठिन होगी, जैसे अलजेब्रा, साइंस के रिएक्शन, पीरियोडिक टेबल, एलसीएम, एचसीएफ और अंग्रेजी का ग्रामर आदि। तो आप इस बात पर गहराई में जाकर सोचिए जो चीज बचपन में पक्की हो गई वे चीजें जिंदगी भर याद रहती है और जो चीज बचपन में कच्ची रह गई ज्यादातर लोगों की जिंदगी भर कच्ची ही रहती है। इसीलिए बहुत सारे अभिभावक ग्रेजुएट होने के बावजूद भी अपने बच्चों को घर पर नहीं पड़ा पाते।
इसलिए हमें एक अभिभावक के नाते इस बात का बहुत ज्यादा ध्यान रखना है कि बच्चों की पढ़ाई ज्यादा नहीं हुई तो चलेगा पर जितनी हो चुकी है शत-प्रतिशत परिपूर्ण हो, जो भी संकल्पना बच्चे सीख रहे है वह संकल्पन उसे संपूर्ण तरीके से पूर्ण तरीके से समझ चुकी हो।अब आपको यह तो पता ही होगा समझ कर करना और रट रट करना इस में क्या अंतर है।
बच्चों की पढ़ाई की गति धीमी ही रखिए और जब तक बच्चे एक चीज को कम से कम 100 बार ना समझ कर करें तब तक उन सारी चीजों का उन सारी शैक्षणिक संकल्पओंका का सराव करते रहिए। क्या आप आपके बच्चों को होशियार बनाना चाहते हो?आप जिस स्कूल को ढूंढ रहे थे वह स्कूल आपको मिल गई।छात्रों को होशियार बनाने की गारंटी लेने वाला स्कूल।
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होम स्कूल।
शारदा समाज, मराठा नगर, रामदास पेठ, क्रीड़ा संकुल के पास, अकोला।
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