हरि-हर पूजा पर्व– रविवार, 29 जुलाई को अधिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी और त्रयोदशी, दोनों तिथियां रहेंगी। जिससे हरि-हर पूजा यानी एक ही दिन में भगवान विष्णु और शिवजी की विशेष पूजा करने का शुभ संयोग बन रहा है। अभी चातुर्मास के बिच सावन के महीने में अधिक मास चल रहा है। इस शुभ संयोग में भगवान विष्णु और शिवजी की विशेष पूजा और व्रत करने का विधान ग्रंथों में बताया गया है।
पद्म, शिव और स्कंद पुराण का कहना है कि चातुर्मास में आने वाले अधिक मास की द्वादशी तिथि पर भगवान विष्णु की विशेष पूजा और व्रत करना चाहिए। जिससे सौभाग्य और समृद्धि बढ़ती है। वहीं, सावन महीने की त्रयोदशी तिथि यानी प्रदोष का व्रत करने से हर तरह के दोष और महापाप भी खत्म हो जाते हैं। इन दो तिथियों के संयोग के चलते तांबे के लोट में पानी भरकर उसमें कच्चा दूध मिलाएं। गंगाजल की कुछ बूंदे और काले तिल डालकर पीपल के पेड़ में चढ़ाएं। ऐसा करने से भगवान विष्णु और शिवजी को जल चढ़ाने जितना पुण्य मिलता है और पितरों को भी तृप्ति मिलती है। सुबह 11 बजे के पहले पीपल में जल चढ़ाना चाहिए।
पूजन और व्रत विधि
- इस दिन सुबह जल्दी नहाकर दिनभर व्रत रखने का संकल्प लें।
- दिनभर बिना कुछ खाए मन में भगवान के नाम का जप करें।
- रात में कमल के फूलों से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
- इसके बाद भगवान शंकर की भी पूजा करें।
पूजा के मंत्र
ऊँ शिवकेशवाय नम:
ऊँ हरिहर नमाम्यहं
सावन महीने के अधिक मास में जरुरतमंद लोगों को खाना, कपड़, छाता, जूते-चप्पल और जरुरत की चीजें दान करने का विधान है। तिथियों के इस शुभ संयोग में किए दान का पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। रात भर पूजा करने के बाद दूसरे दिन फिर शिवजी का पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए। इसके बाद खुद भोजन करना चाहिए। अधिक मास की द्वादशी और प्रदोष तिथि का ये व्रत शैवों और वैष्णवों की पारस्परिक एकता एकता का प्रतीक है।