एक तिथि में दो पर्व:कार्तिक एकादशी पर ब्रह्म मुहूर्त में जागते हैं भगवान विष्णु और गोधुलि वेला में होता है तुलसी विवाह

देवउठनी एकादशी: चार मास के शयन के बाद योग निद्रा जागेंगे भगवान विष्णु, शुरू  होंगे मांगलिक कार्य | लोकराग

4 नवंबर को यानि की आज देव प्रबोधिनी एकादशी है। पद्म और विष्णु पुराण के मुताबिक इस तिथि पर भगवान विष्णु चार महीने की योग निद्रा से जागते हैं। इसी दिन भगवान विष्णु का शालग्राम के रूप में तुलसी के साथ विवाह करवाने की भी परंपरा है।

सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नहाने के बाद शंख और घंटानाद सहित मंत्र बोलते हुए भगवान विष्णु को जगाया जाता है। फिर उनकी पूजा होती है। शाम को घरों और मंदिरों में दीये जलाए जाते हैं और गोधुलि वेला यानी सूर्यास्त के वक्त भगवान शालग्राम और तुलसी का विवाह करवाया जाता है।

शिव पुराण: चार महीने योग निद्रा से जागते हैं भगवान विष्णु

शिव पुराण के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए। उन्होंने सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप दिया। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब शिवजी सहित सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और वापस सृष्टि का कार्यभार उन्हें सौंप दिया।

वामन पुराण: 4 महीने पाताल में रहने के बाद क्षीर सागर लौटते हैं भगवान

वामन पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। उन्होंनें विशाल रूप लेकर दो पग में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पैर बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा। पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए। भगवान ने खुश होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा।
बलि ने कहा आप मेरे महल में निवास करें। भगवान ने चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं। फिर कार्तिक महीने की इस एकादशी पर अपने लोक लक्ष्मीजी के साथ रहते हैं।

शिव पुराण: वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु बने पत्थर के शालग्राम

इस साल देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। इस दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक अपनी भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

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