दुनिया में पॉल्यूशन बढ़ रहा है। हर साल 430 मिलियन टन से ज्यादा प्लास्टिक प्रोड्यूस होता है। इसमें से दो तिहाई प्लास्टिक के प्रोडक्ट जल्दी खराब हो जाते हैं, जैसे- पॉलिथिन बैग। इस प्लास्टिक पॉल्यूशन की वजह माइक्रोप्लास्टिक है, जो इंसान और पृथ्वी दोनों की सेहत के लिए खतरनाक हैं। प्लास्टिक के छोटे पार्टिकल्स रोजमर्रा के जीवन में इस्तेमाल होने वाली चीजों- कपड़े, सिगरेट, कॉस्मेटिक्स आदि में मौजूद हैं। यूनाइटेड नेशन्स इंवायरमेंट प्रोग्राम (UNEP) के मुताबिक, इन चीजों के लगातार इस्तेमाल से पर्यावरण में प्लास्टिक का ढेर बढ़ता जा रहा है।
माइक्रोप्लास्टिक खतरा कैसे पैदा कर रहा..
माइक्रोप्लास्टिक का व्यास (डायमीटर) पांच मिलीमीटर तक हो सकता है। ये प्लास्टिक प्रोड्यूस करने वाली फैक्टरी में हुए लीकेज या पाइप्स की साफ-सफाई के कारण समुद्र में बह जाता है। इसे सीधे फूड चेन पर असर होता है। जब पक्षी, मछलियां या समुद्री जीव इसे निगल लेते हैं तो ये माइक्रोप्लास्टिक दोनों- टॉक्सिक और मैकेनिकल इफेक्ट दिखाना शुरू कर देता हैं।
इसके कारण इन जीवों को कम भूख लगती है। उनके व्यवहार में परिवर्तन और जेनिटिक म्यूटेशन (DNA में बदलाव) भी होने लगता है। कई बार तो सांस लेने में दिक्कत भी आने लगती है। इंसान भी सी-फूड खाते हैं। इसके चलते ये माइक्रोप्लासिटक इंसानी शरीर में भी आ जाते हैं। सांस लेते समय, पानी पीते वक्त या कई बार हमारी स्किन भी इन माक्रोप्लास्टिक को एब्जॉर्ब कर लेती है। ये अलग-अलग इंसानी अंगों, यहां तक कि नवजात बच्चों के प्लेसेंटा (नाल) में भी पाए गए हैं।
महिलाओं के लिए ज्यादा खतरनाक
UNEP 2021 की रिपोर्ट- फ्रॉम पॉल्यूशन टु सॉल्यूशन में कहा गया कि माइक्रोप्लास्टिक में मौजूद कैमिकल्स से लोगों की, खासतौर पर महिलाओं की, हेल्थ पर बुरा असर पड़ता है। इससे ह्यूमन जेनेटिक्स, रेस्पिरेटरी रेट, मानसिक विकास पर सीधा असर होता है।
UNEP की मरीन एंड फ्रेशवॉटर ब्रांच की हेड लेटिसिया कार्वाल्हो का कहना है कि माइक्रोप्लास्टिक और इसके केमिकल्स की वजह से समुद्री जीवों के साथ इंसानों को होने वाला खतरा अभी शुरू ही हुआ है। इसे फैलने से रोका जा सकता है। इस दिशा में काम किया जाना चाहिए। इससे इंसानों और जीवों की हेल्थ लंबे समय तक ठीक रहेगी। साथ ही ईकोसिस्टम भी सही रहेगा।
समुद्र के किनारे सिगरेट का कचरा सबसे ज्यादा
माइक्रोप्लास्टिक्स का एक नाम सेल्युलोज एसीटेट फाइबर भी है। इनमें ज्यादातर सिगरेट फिल्टर शामिल हैं। हर साल दुनिया में स्मोकिंग करने वाले 100 करोड़ लोग 6 लाख करोड़ सिगरेट पीते हैं। इसलिए ये फाइबर दुनिया के हर कोने में फैले हैं। समुद्र के किनारे सिगरेट का कचरा सबसे ज्यादा मात्रा में बिखरा रहता है। इसके चलते मरीन इकोसिस्टम माइक्रोप्लास्टिक लीकेज के लिए काफी संवेदनशील हो गया है।
समुद्र में जमा हुआ 9% माइक्रोप्लास्टिक कपड़ों से निकला
पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक के कपड़ों में भी प्लास्टिक होता है। क्लोदिंग-टेक्सटाइल मार्केट में इन कपड़ों का हिस्सा 60% है। कपड़ों के मामले में माइक्रोप्लास्टिक्स को माइक्रोफाइबर भी कहा जाता है। बार-बार पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक के कपड़ों को पहनने या धोने पर ये माइक्रोफाइबर निकलने लगते हैं
UNEP 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक, समुद्र में जमा होने वाले माइक्रोप्लास्टिक का 9% हिस्सा क्लोदिंग और टेक्सटाइल से ही आया था। इसे रोकने के लिए एक्सपर्ट्स का कहना है कि पॉलिस्टर, नायलॉन, एक्रिलिक के कपड़ों को कम धोया जाना चाहिए। नैचुरल मटेरियल से बने कपड़े ज्यादा खरीदने से भी फर्क पड़ सकता है।
कॉस्मेटिक्स में मिलाने अलग से माइक्रोप्लास्टिक तैयार किया जाता है
साबुन, टूथपेस्ट, डियोड्रेंट, आदि को टेक्सचर देने के लिए इमनें माइक्रोप्लास्टिक मिलाया जाता है। इसके लिए खास तौर पर माइक्रोप्लास्टिक तैयार किया जाता है।इन प्रोडक्ट के उपयोग से प्लास्टिक के छोटे पार्टिकल सीधे हमारी स्किन में चले जाते हैं। लिपस्टिक और लिपबाम में भी माइक्रोप्लास्टिक होता है, जो इस्तेमाल किए जाने पर सीधे हमारे पेट में जाता है। माइक्रोप्लास्टिक की कुछ मात्रा स्किन के ऊपर भी रह जाती है। ये नहाते समय बह जाती है और आखिरकार समुद्र में पहुंच जाती है।
ग्लोबल केमिकल्स आउटलुक 2 रिपोर्ट में कहा गया कि कॉस्मेटिक्स के एक्सफोलिएटिंग एजेंट्स में 10% से ज्यादा माइक्रोबीड्स होते हैं। इससे बचने के लिए कम से कम कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा कम से कम पैकेजिंग वाले प्रोडक्ट्स खरीदे जाने चाहिए।