रिसर्च पेपर की अनिवार्यता खत्म, UGC ने PhD के नियम बदले

दिल्ली- PhD कर रहे या करने की प्लानिंग कर रहे कैंडिडेट्स के लिए बड़ी राहत की खबर है. विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने पीएचडी के नियम में बड़ा बदलाव किया है. ये पीएचडी रिसर्च पेपर्स के संबंध में है. बदले गए नियम की जानकारी देते हुए UGC की वेबसाइट ugc.ac.in पर नोटिफिकेशन भी जारी कर दिया गया है. इसके अनुसार अब पीएचडी थीसिस सबमिशन से पहले जर्नल्स में Research Paper पब्लिश कराने की अनिवार्यता खत्म कर दी गई है.

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अब तक के UGC PhD Rules के अनुसार एमफिल स्कॉलर्स के लिए कम से कम एक रिसर्च पेपर कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत करना जरूरी हुआ करता था. वहीं पीएचडी स्कॉलर्स के लिए उनके PhD Thesis Submission से पहले कम से कम दो शोधपत्र कॉन्फ्रेंस या सेमिनार में प्रजेंट करना और कम से कम एक रिसर्च पेपर किसी रेफर्ड जर्नल में प्रकाशित कराना अनिवार्य होता था.

UGC ने क्यों बदला रिसर्च पेपर का नियम?

यूजीसी के अध्यक्ष एम जगदीश कुमार का कहना है कि पीएचडी गाइडालइंस में ये बदलाव करके हमने इस बात पर मुहर लगाने की कोशिश की है कि ‘One Size Fits All’ का अप्रोच जरूरी नहीं है. हर सब्जेक्ट/ संकाय में को एक नजर से देखना और उनके लिए एक समान अप्रोच रखना खत्म करने की जरूरत है. कंप्यूटर साइंस में पीएचडी कर रहे कई स्कॉलर अपने रिसर्च पेपर बजाय Journals में पब्लिश करने के, कॉन्फ्रेंस में प्रजेंट करना पसंद करते हैं.

हालांकि मीडिया से बात करते हुए यूजीसी चेयरपर्सन M Jagdesh Kumar ने कहा कि अनिवार्यता खत्म करने का मतलब ये नहीं कि कि पीएचडी स्कॉलर Peer Reviewed Journals में रिसर्च पेपर पब्लिश कराना ही छोड़ दें. भले ही पेपर पब्लिकेशन अब अनिवार्य नहीं है, लेकिन अगर हम उच्च गुणवत्ता वाले शोध पर फोकस करेंगे, तो अच्छे जर्नल्स भी प्रकाशित हो सकेंगे.

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उन्होंने कहा कि जब आप अपनी डॉक्टोरल डिग्री के बाद करियर में आगे बढ़ेंगे या किसी जॉब के लिए अप्लाई करेंगे तो जर्नल्स में छपे रिसर्च पेपर्स आपकी प्रोफाइल में वैल्यू जोड़ने का काम करेंगे.

यूजीसी ने चार सदस्यों की एक कमेटी बनाई थी, जिसके अध्यक्ष IISc Bengaluru के पूर्व निदेशक पी बलराम थे. इस कमेटी ने जर्नल्स में रिसर्च पेपर पब्लिश करना या कॉन्फ्रेंस में प्रजेंट करना अनिवार्य नहीं होना चाहिए. इसे किसी भी तरह से एकेडमिक क्रेडिट के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए.

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