भारत पर हवाई हमला करने वाले वेपन की निगरानी, उसको नष्ट करने के लिए कमांड और फिर हवाई हथियार का इस्तेमाल करना होता है। इसके लिए एक बड़ा इंटीग्रेटेड नेटवर्क है, जिसे भारत का इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (IACCS) कहा जाता है।भस्कर
इस नेटवर्क के कई हिस्से हैं, जैसे- रडार, दुश्मन के हथियारों के सिग्नल पकड़ने वाली इंटेलिजेंस डिवाइस, इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर, दुश्मन के रेडियो सिग्नल जाम करने वाले जैमर, हाई एनर्जी लेजर सिस्टम, ग्राउंड कंट्रोल स्टेशन और कई तरह के एयर डिफेंस सिस्टम
1. खतरे को पहचानना: भारत के पास सेना और सिविल यूज के कई रडार हैं। सबसे पहला काम इन्हीं रडार का होता है। इनसे निकलने वाली रेडियो वेव्स हवाई खतरे, ड्रोन या मिसाइल से टकराने के बाद वापस रडार को इसकी डिटेल्स देती हैं इसी तरह इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर भी ड्रोन या मिसाइल जैसे ऑब्जेक्ट को ट्रैक करके उसकी स्पीड, उसका ट्रैक और दूसरे फीचर्स को डिटेक्ट करता है। कई बार सिग्नल इंटेलिजेंस डिवाइस और जैमर ड्रोन के सिग्नल रोककर उसका कमांड और कंट्रोल खत्म कर देते हैं।
2. हमले का हथियार तय करना: दुश्मन के हवाई हथियार की पूरी पहचान होने के बाद जिस इलाके में वह हथियार टारगेट किया गया है, उस इलाके की सेना की कमान तय करती है कि खतरा कितना बड़ा है और उसके खिलाफ कौन सा हथियार इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
3. हवाई खतरे को नष्ट करना: किसी भी हवाई खतरे के बारे में सबसे जरूरी दो बातें हैं- खतरा कितनी दूर है और कितनी ऊंचाई पर है। एयर डिफेंस का एक ही टारगेट होता है- किसी भी आसमानी खतरे को ज्यादा से ज्यादा दूरी और जमीन से ज्यादा से ज्यादा ऊंचाई पर ही खत्म कर देना।
ज्यादा दूरी और ऊंचाई से आने वाली खतरनाक बैलिस्टिक मिसाइल्स को इंटरसेप्टर मिसाइल लॉन्च करके उड़ा दिया जाता है। अक्सर ये विस्फोट इतनी ऊंचाई पर होता है कि जमीन पर आने से पहले ही गोला-बारूद भाप बन जाता है।
अगर दुश्मन की मिसाइल या ड्रोन बेहद नजदीक या जमीन से कम ऊंचाई तक आ गए हैं तो फिर शॉर्ट रेंज एंटी मिसाइल सिस्टम, रॉकेट, गन फायर या टैंक में लगी हुई गन खतरे को नष्ट करती है।
सिर्फ इस बात का ध्यान यह रखना होता है कि हथियार अपने टारगेट पर हिट न कर पाए। इस पूरी आसमानी लड़ाई के लिए भारत के पास 4 लेयर में काम करने वाले हथियार हैं- लॉन्ग रेंज इंटरसेप्शन, इंटरमीडिएट रेंज इंटरसेप्शन, शॉर्ट रेंज इंटरसेप्शन और पॉइंट डिफेंस सिस्टम। इन सभी को विस्तार से समझते हैं-
सबसे बाहरी लेयर: लॉन्ग रेंज इंटरसेप्शन
यह भारत के एयर डिफेंस की सबसे बाहरी लेयर है। इसके लिए भारत ने DRDO की मदद से ‘बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम’ बनाया है। ये लेयर हजारों किमी दूर से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइल्स से निपटती है।
इसके लिए सोर्डफिश लॉन्ग रेंज ट्रैकिंग रडार दुश्मन की मिसाइल को बहुत पहले ही डिटेक्ट कर लेते हैं। इसके बाद कमांड सेंटर मिसाइल की लोकेशन और रास्ते को ट्रैक करता है। दरअसल, बैलिस्टिक मिसाइल दो तरह से अपने टारगेट तक पहुंचती हैं।
पहला तरीका है- पृथ्वी के वायुमंडल से बाहर चले जाना और वापस आकर टारगेट हिट करना और दूसरा है- पृथ्वी के वायुमंडल में ट्रैवल करते हुए ही अपने टारगेट तक पहुंचना। इसी बेसिस पर भारत ने न्यूक्लियर अटैक में सक्षम बैलिस्टिक मिसाइल्स को खत्म करने के लिए दो हथियार काम करते हैं-
- पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD): इसे ‘प्रद्युम्न मिसाइल इन्सेप्टर’ भी कहा जाता है। असल में ये 6 हजार किमी प्रति घंटा से ज्यादा की स्पीड से हमला करने वाली एक एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल है। ये एक्सो-एटमॉस्फियरिक यानी पृथ्वी के वायुमंडल के बाहर से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइल्स को टारगेट करती है। प्रद्युम्न मिसाइल 5 हजार किलोमीटर दूर से आ रही बैलिस्टिक मिसाइल्स को 200 से 2000 किमी दूर और हवा में 50 से 80 किमी की ऊंचाई पर खत्म कर सकती है।
- एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD): इसे ‘अश्विन मिसाइल इंटरसेप्टर’ भी कहते हैं। 5500 किमी प्रति घंटा की स्पीड से हमला करने वाली ये एंटी-बैलिस्टिक मिसाइल, एंडो-एटमॉस्फियरिक यानी पृथ्वी के वायुमंडल के अंदर ही ट्रैवल करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल्स को रोकती है। यह 150 से 200 किमी दूर तक और 15 से 30 किमी की ऊंचाई पर मिसाइल्स को नष्ट कर सकती है।
दूसरी लेयर: इंटरमीडिएट रेंज इंटरसेप्शन
ये भारत के एयर डिफेंस सिस्टम की दूसरी लेयर है। इसकी रेंज 70 से 400 किमी तक है। इस रेंज में आने वाले ड्रोन, जेट्स और किसी भी और टारगेट को खत्म किया जा सकता है। इस लेयर के तहत दो तरह के हथियार काम करते हैं-
- S-400 ट्रायम्फ: ये रूस से लिया गया एयर डिफेंस सिस्टम है। इसमें 92N6E इलेक्ट्रॉनिकली स्टीयर्ड फेज्ड ऐरो रडार लगा हुआ है जो करीब 600 किलोमीटर की दूरी के टारगेट्स को डिटेक्ट कर सकता है। इससे एक साथ कुल 160 ऑब्जेक्ट्स को ट्रैक किया जा सकता है। यह 400 किमी की दूरी और 30 किमी की ऊंचाई तक के टारगेट पर अटैक कर सकता है। भारत के पास अभी रूस से मिले तीन S-400 ट्रायम्फ सिस्टम हैं। 2 नए सिस्टम अगले साल आ जाएंगे।
- बराक-8: बराक-8 मिड रेंज सर्फेस टु एयर मिसाइल है जिसे इजराइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (IAI) और भारत के DRDO ने मिलकर बनाया है। इसे सेकेंड लेयर के एयर डिफेंस में S-400 का पूरक माना जाता है, क्योंकि S-400 हर जगह हर समय तैनात नहीं किया जा सकता, ऐसे में बराक-8 मिसाइल काम आती है। इसे खास तौर पर भारतीय नेवी के जहाजों पर तैनात किया गया है। जहां से ये 100 किमी से आधा किमी दूरी और 16 किमी ऊंचाई तक के टारगेट को नष्ट कर सकती है। करीब 2500 किमी प्रति घंटा की स्पीड से हमला करने वाली ये मिसाइल अपने साथ 70 किलो विस्फोटक ले जा सकती है।
तीसरी लेयर: शॉर्ट रेंज इंटरसेप्शन
ये भारत के एयर डिफेंस की तीसरी लेयर है। इसके तहत 15 से 70 किमी दूर के टारगेट्स को तबाह किया जा सकता है। इसके तहत कम ऊंचाई पर उड़ने वाले जेट्स और ड्रोन्स को निशाना बनाया जा सकता है। इसके तहत 3 प्रमुख हथियार हैं-
- आकाश मिसाइल सिस्टम: DRDO की बनाई गई आकाश मिसाइल 30 से 45 किमी दूर और आसमान में 18 किमी ऊंचाई तक के टारगेट को खत्म कर सकती है। इसमें राजेंद्र 3D फेज एरे रडार लगा होता है। इसके चलते आकाश 64 टारगेट्स को एक साथ ट्रैक कर सकता है और एक समय में 12 मिसाइल लॉन्च कर सकता है।
- स्पाइडर: SPYDER इजराइल का शॉर्ट एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइल सिस्टम है। इसमें 20 किमी रेंज तक हमला करने वाली पाइथन-5 और 50 किमी रेंज वाली डर्बी जैसी मिसाइल्स का इस्तेमाल करके 15 से 35 किमी दूर तक के टारगेट्स को हिट किया जा सकता है।
- QRSAM: क्विक रिएक्शन सर्फेस टु एयर मिसाइल सिस्टम को DRDO ने बनाया है। ये 3 से 30 किमी रेंज और 30 मीटर से 6 किमी ऊंचाई तक के टारगेट्स को खत्म कर सकता है। मोबाइल व्हीकल लॉन्चर से हमले करने वाले इस सिस्टम को बहुत कम समय में एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है।
चौथी लेयर: पॉइंट डिफेंस सिस्टम
ये भारतीय एयर डिफेंस की सबसे आखिरी लेयर है। जो महज कुछ किमी के नजदीक के खतरों को टारगेट कर सकती है। ये तब काम करती हैं जब टारगेट बहुत नजदीक आ जाता है।
इसके तहत चार प्रमुख हथियार आते हैं-
- SRSAM: शॉर्ट रेंज सर्फेस टु एयर मिसाइल। ये 25 किमी के अंदर की रेंज में काम करती हैं।
- L-70 गन: ये एंटी-एयरक्राफ्ट गन है जो 5 से 7 किमी की रेंज में काम करती है। 8 मई की शाम पाकिस्तान के भेजे ड्रोन को इसी गन से उड़ाया गया। ZSU-23 शिल्का: ये सोवियत संघ के समय की पुरानी गन है जो ड्रोन और बेहद कम ऊंचाई पर उड़ने वाले लो-फ्लाइंग टारगेट्स को खत्म कर सकती है।
- MANPADS: इसके तहत इग्ला-S जैसी गन्स हैं, जिन्हें सेना के जवान अपने कंधे पर रखकर फायर कर सकते हैं।
इसके अलावा भारत के पास सोवियत के समय के कुछ हथियार जैसे- एस-125 पेचोरा एयर डिफेंस सिस्टम, 2K 12 कब, 9K33 ओसा-एके, 9K35 स्ट्रेला-10 वगैरह भी हैं, जो नजदीकी टारगेट पर सटीक हमला कर सकते हैं।