हिन्दी भाषा का विकास 10वीं सदी के आसपास अपभ्रंश भाषा से शुरू हुआ था. स्थानीय बोलियों का ज्यादा प्रभाव रहते हुए धीरे धीरे इसने स्वतंत्र अस्तित्व कायम किया और 15वीं सदी के तक इसमें साहित् सृजन भी होनेलगा था. भक्तिकाल के कवियों हिन्दी को स्वर्णिम युग दिया और फिर स्वतंत्रता आंदोलन ने इसे लोगों की व्यापक भाषा का दर्जा दिलवाने में मदद की.
भारत में हिन्दी जन जन की भाषा है. इसकी बहुत सारी बोलियां और स्वरूप हैं और इसमें कई विविधताएं भी है जो क्षेत्रीय प्रभाव की वजह से आती हैं. हिन्दी को इंडोयूरोपीय भाषा परिवार की इंडोईरानी शाखा के इंडो आर्यन समूह की भाषा माना जाता है. यह भारत के बहुत सारे क्षेत्रों में आधिकारिक भाषा के तौर पर उपयोग में लाई जाती है. यहां करीब 42.5 करोड़ लोग हिन्दी समझते हैं, जबकि 12 करोड़ लोगों से ज्यादा के लिए यह दूसरी भाषा है. भारत के अलावा दक्षिण अफ्रीका, मॉरिशस, बांग्लादेश, यमन, यूगांडा आदि कई देशों में हिंदी भाषा बोलने वाले लोग पाए जाते हैं. 14 सितंबर को हिन्दी दिवस मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन इसे राजभाषा का दर्जा दिया गया था. हिन्दी भाषा का इतिहास भी अपने आप में कम रोचक नहीं है.
पहले संस्कृत ही थी देश की भाषा
भारत के इतिहास में भाषा के विकास की बात की जाए तो सबसे प्राचीन भाषा संस्कृत है, जिसे आर्य भाषा या देवताओं की भाषा कहा जाता था. 1500 ईसा पूर्व से 1000 ईसापूर्व यह भाषा एक रूप में ही प्रचलित रही इसके बाद यह वैदिक और लौकिकभाषा में विभक्त हुई. लेकिन 500 ईसा पूर्व से पहली शताब्दी तक पाली प्रमुख भाषा रही जिसमें बौध ग्रंथों की रचनाएं हुई.
अपभ्रंश से हुआ था हिंदी का विकास
उस युग में पालि के बाद प्राकृत भाषा का विकास हुआ जो 500 ईस्वी तक कायम रही. इस भाषा में जैन साहित्य लिखा गया है. लेकिन यह लोक भाषा के रूप में ज्यादा पनपी. इस दौरान क्षेत्रीय बोलीयां बहुत ज्यादा संख्या में थीं. इसके बाद अपभ्रंश भाषा का विकास हुआ जो 500 ईस्वी से 1000 ईस्वी तक रही. इसी से सरल और देशी के भाषा के शब्दों को अवहट्ट कहा गया और उसी से हिन्दी भाषा का उद्गम माना जाता है.
हिन्दी का आदिकाल
हिन्दी भाषा की लिपी देवनागरी लिपी थी जो बाएं से दाईं ओर लिखी जाती है. लेकिन कई दशकों तक हिन्दी एक संगठित भाषा के रूप में विकसित नहीं हो सकी इसके स्थानीय स्वरूपों का बोलबाला लंबे समय तक रहा. 10वीं से 15वीं सदी तक के समय को हिन्दी का आदिकाल कहा जाता है जिसमें धीर धीरे यह अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त होते हुए स्वतंत्र होती गई और 15वीं सदी तक इसमें साहित्य लिखा जाने लगा. उस दौर में दोहा., चौपाई आदि छंदों की रचनाएं होती थी. इसमें कबीर, चंदवरदाई, विद्यापति, गोरखनाथ आदि प्रमुख रचनाकार थे.
विदेशी भाषाओं में हिन्दी भाषा पर फारसी का ज्यादा प्रभाव पड़ा.
हिन्दी का मध्यकाल
15वीं से 19वीं सदी तक का समय हिन्दी भाषा का मध्यकाल कहा जाता है. इस दौरान मुगलों के कारण फारसी, तुर्की, अरबी, पुर्तगाली, स्पेनी, फ्रांसीसी,अंग्रेजी आदि भाषाओं के शब्द इसमें शामिल होने लगे क्योंकि पश्चिमी एशिया और यूरोप से व्यापार की वजह लोगों में ज्यादा संपर्क होने लगे थे. यह दौर हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम युग माना जाता है. इसी अवधि में रीतिकालीन रचनाएं भी की गई थीं.
भक्ति आंदोलन का योगदान
मध्यकाल में सूरदास, तुलसीदास, मीराबाई, मलिक मोहम्मद जयासी आदि भक्ति आंदोलन के कवियों ने हिन्दी को नई ऊंचाइयां दीं. इस दौरान उत्तर भारत में ब्रजऔर अवधी का बोलबाला रहा. इसके साथ ही बघेली, भोजपुरी, बुंदेली, छत्तीसगढ़ी, गढवाली, हरवाणी, कन्नौजी, कुमायूंनी, मागई, मारवाड़ी जैसी बोलियां भी अपने अपने क्षेत्र में हिन्दी की ही बोली मानी जाती रहीं.