मुंबई- क्रिप्टोकरेंसी फाइनेंशियल स्टेबिलिटी और मॉनेटरी स्टेबिलिटी के लिए बहुत बड़ा जोखिम है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास ने शुक्रवार को पीटरसन इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकोनॉमिक्स में आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही। उन्होंने कहा – मैं वास्तव में इस राय का हूं कि यह ऐसी चीज है जिसे फाइनेंशियल सिस्टम पर हावी होने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। यह बैंकिंग प्रणाली के लिए भी जोखिम पैदा करता है। यह ऐसी स्थिति भी पैदा कर सकता है जहां केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति से नियंत्रण खो सकता है।
यदि केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति से नियंत्रण खो दे तो बैंकिंग सिस्टम में उपलब्ध लिक्किडिटी की जांच कैसे करेगा। संकट के समय में मुद्रा आपूर्ति को कम करके या मुद्रा आपूर्ति खोकर केंद्रीय बैंक महंगाई को कैसे नियंत्रित कर सकता है? इसलिए हम क्रिप्टो को एक बड़े जोखिम के रूप में देखते हैं।
दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के लिए क्रिप्टोकरेंसी चिंता का विषय
शक्तिकांत दास ने कहा कि क्रिप्टोकरेंसी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय समझ होनी चाहिए, क्योंकि लेन-देन क्रॉस-कंट्री है। इससे जुड़े बड़े जोखिमों के बारे में पूरी तरह से सचेत रहना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। फाइनेंशियल स्टेबिलिटी के संरक्षक के रूप में यह दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय है। सरकारें भी क्रिप्टोकरेंसी में संभावित जोखिमों के बारे में तेजी से जागरूक हो रही हैं।
भारत क्रिप्टोकरेंसी के बारे में सवाल उठाने वाला पहला देश
दास ने कहा कि भारत क्रिप्टोकरेंसी के बारे में सवाल उठाने वाला पहला देश था। भारत की अध्यक्षता में G-20 में क्रिप्टो इकोसिस्टम से निपटने के तरीके के बारे में अंतरराष्ट्रीय समझ विकसित करने पर सहमति बनी थी। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कुछ प्रगति हुई है।
सिस्टम को बायपास करने के लिए क्रिप्टोकरेंसी की उत्पत्ति हुई
RBI गवर्नर ने कहा कि सबसे पहले हमें क्रिप्टोकरेंसी की उत्पत्ति को समझना होगा। इसकी उत्पत्ति सिस्टम को बायपास करने के लिए हुई थी। क्रिप्टोकरेंसी में पैसे के सभी गुण होते हैं। मूल प्रश्न यह है कि क्या हम अधिकारी के रूप में, सरकारें निजी तौर पर जारी की गई क्रिप्टोकरेंसी के साथ सहज हैं।
क्रिप्टोकरेंसी का इतिहास
- 1983 में सबसे पहले अमेरिकन क्रिप्टोग्राफर डेविड चाम ने ई-कैश (ecash) नाम से क्रिप्टोग्राफिक इलेक्ट्रॉनिक मनी बनाई थी।
- 1995 में डिजिकैश के जरिए इसे लागू किया गया।
- इस पहली क्रिप्टोग्राफिक इलेक्ट्रॉनिक मनी को किसी बैंक से नोटों के रूप में विड्रॉल करने के लिए एक सॉफ्टवेयर की आवश्यकता थी।
- यह सॉफ्टवेयर पूरी तरह से एनक्रिप्टेड था। सॉफ्टवेयर के जरिए क्रिप्टोग्राफिक इलेक्ट्रॉनिक मनी प्राप्त करने वाले को एन्क्रिप्टेड-की यानी खास प्रकार की चाभी दी जाती थी।
- इस सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से पैसा जारी करने वाला बैंक, सरकार या अन्य थर्ड पार्टी ट्रांजैक्शन को ट्रैक नहीं कर पाते थे।
- 1996 में अमेरिका की नेशनल सिक्युरिटी एजेंसी ने क्रिप्टोकरेंसी सिस्टम के बारे में बताने वाला एक पेपर पब्लिश किया।
- 2009 में सातोशी नाकामोतो नाम के वर्चुअल निर्माता ने बिटकॉइन नाम की क्रिप्टोकरेंसी बनाई। इसके बाद ही क्रिप्टोकरेंसी को दुनियाभर में लोकप्रियता मिली।