बद्रीनाथ- देश के और उत्तराखंड के चारधाम में से एक बदरीनाथ धाम में आज 13 जुलाई को नए रावल की नियुक्ति हो चुकी है। बदरीनाथ की पूजा करने वाले मुख्य पुजारी को रावल कहते हैं। मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश और बदरीनाथ जी की मूर्ति को स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ रावल को ही है।
चारधाम पुरोहित महापंचायत के महासचिव डॉ बृजेश सती के मुताबिक, बदरीनाथ मंदिर रावल द्वारा भगवान की पूजा करने की परंपरा 1776 से शुरू हुई है। तब से अब तक 20 रावल हुए हैं। अभी ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी मंदिर के रावल थे। ये 2014 से बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी हैं। अब ईश्वरी प्रसाद पारिवारिक और स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते बदरीनाथ मंदिर के रावल का पद छोड़ रहे हैं। इनके बाद मौजूदा नायब रावल अमरनाथ नंबूदरी मंदिर के नए रावल बने। रावल पद पर अमरनाथ नंबूदरी का तिलपात्र (नियुक्त) किया गया।
तिलपात्र कैसे होता है?
- नए रावल का मुंडन किया जाता हैं, लेकिन शिखा रहती हैं। यज्ञोपवित बदली जाती हैं। इसके बाद पंचोपचार स्नान कराया जाता हैं। फिर वे अपने आवास के कुंड में स्नान करते हैं।
- घर में स्नान के बाद बदरीनाथ की पंच धाराएं कूर्म धारा, प्रहलाद धारा, इंद्र धारा, उर्वशी और भृगु धारा में पंच स्नान करते हैं
- पंच स्नान करके नए रावल बदरीनाथ मंदिर पहुचते हैं।
- मंदिर के धर्माधिकारी और वेदपाठी ब्राह्मण मंत्र जप करते हुए तिलपात्र की परंपराएं पूरी की जाती हैं।
- मंदिर में हवन होता हैं। ये पूरी प्रक्रियाएं 13 जुलाई को होती हैं।
- अगले दिन की सुबह वर्तमान रावल ईश्वरी प्रसाद नंबूदरी के साथ नए रावल मंदिर जाते हैं। मंदिर में भगवान का महाअभिषेक करते हैं। पुराने रावल नए रावल को भगवान की पूजा पद्धति की जानकारी देंगे। इस तरह अमरनाथ नंबूदरी का बदरीनाथ जी के रावल बन गए।
कब से शुरू हुई बदरीनाथ में रावल की परंपरा?
- मंदिर में मुख्य पुजारी को रावल की उपाधि देने की परंपरा टिहरी नरेश ने 1776 में शुरू की थी। तब टिहरी नरेश प्रदीप शाह थे। प्रदीप शाह बदरीपुरी के प्रवास पर थे। उस समय उन्हें पता चला कि बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी जो ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य हुआ करते थे, वे ब्रह्मलीन हो गए हैं। इसके बाद टिहरी नरेश ने मंदिर में पूजा करने के लिए गोपाल नंबूदरी को मंदिर का पहला रावल नियुक्त किया।
- पहले टिहरी नरेश ही नायब और रावल की नियुक्त करते थे, लेकिन अब बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति इनकी नियुक्ति करती है।
कैसी होती है बद्रीनाथ के रावल की दिनचर्या?
- बदरीनाथ मंदिर के रावल कपाट खुलने से कपाट बंद होने तक निरंतर 6 महीनों तक बदरीनाथ धाम में ही रहते हैं और भगवान की नियमित पूजा-अर्चना करते हैं।
- पूरे 6 माह तक रावल अलकनंदा नदी पार नहीं करते हैं और नारायण पर्वत पर ही निवास करते हैं।
- बामन द्वादशी पर पहली बार बदरीनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी अपने आवास से बाहर निकल कर माता मूर्ति मंदिर जाते हैं।
बदरीनाथ के रावल से जुड़ी विशेष बातें
- मंदिर का रावल नैष्ठिक ब्रह्मचारी होता है। केरल राज्य के कालडी गांव के नंबूदरी ब्राह्मण ही रावल पद पर नियुक्त किए जाते हैं। पूर्व में रावल पद पर नियुक्ति का अधिकार टिहरी नरेश के पास था, लेकिन अब बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पास ये अधिकार है।
- नायब रावल ही रावल पद पर नियुक्त होता है। हालांकि पूर्व में जब टिहरी नरेश द्वारा रावल का तिलपात्र किया जाता था।
- आदिगुरु शंकराचार्य 11वर्ष की अवस्था में बदरीनाथ धाम पहुंचे थे। यहां उन्होंने अपने तपोवल की ऊर्जा से नारद कुंड में पड़ी भगवान बदरी विशाल की प्रतिमा को निकाल कर मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित किया था। मंदिर में नियमित पूजा अर्चना और इसका कुशल प्रबंधन हो, इसके लिए उन्होंने अपने शिष्य टोटकाचार्य को ज्योतिर्मठ मठ का शंकराचार्य नियुक्त किया था।
- ज्योतिर्मठ के प्रथम आचार्य टोटकाचार्य से आचार्य परंपरा शुरू हुई। यहां 42वें आचार्य रामकृष्ण तीर्थ स्वामी तक आचार्य परंपरा चलती रही। 1776 में पीठ के आचार्य रामकृष्ण तीर्थ ब्रह्मलीन हो गए, इनके बाद टिहरी राजा ने यहां रावल नियुक्त करने की परंपरा शुरू की। उस समय आचार्य रामकृष्ण के सेवक गोपाल नंबूदरी को बदरीनाथ मंदिर का पहला रावल नियुक्त किया गया था।
- पिछले 248 वर्षों से मंदिर के मुख्य पुजारी के रूप में दक्षिण भारत के केरल राज्य के नंबूदरी ब्राह्मण ही पूजा करते हैं। रावल संस्कृत भाषा के अच्छे जानकार होते हैं।
- रावल आदि गुरु शंकराचार्य के ही वंशज माने जाते हैं। बदरीनाथ मंदिर में पूजा अर्चना शंकराचार्य परंपरा के अनुसार की जाती है।