चीनी, पानी और जीवाणुओं को मिलाकर बन रहा दूध,70 लाख करोड़ रुपए का है वर्ल्ड डेयरी मार्केट

जरुरत की जानकारी– दूध और दूध से जुड़े उत्पादकों में पिछले कुछ सालों में बहुत सारे विकल्प आ गए हैं। इसके बावजूद भी पौधों से बनाए गए ये उत्पाद डेयरी की बिल्कुल बराबरी नहीं कर सकते है। गुड फूड इंस्टीट्यूट (जीएफआई) की रिपोर्ट के अनुसात, सोयाबीन, बादाम और ओट्स जैसी चीजों से बने पौधों पर आधारित दूध के पेय अमेरिका के बाजार में कुल दूध की बिक्री का 15% और पश्चिमी यूरोप में 11% हिस्सा बनते हैं।

70 लाख करोड़ रुपए के वैश्विक डेयरी बाजार का हिस्सा बनने की उम्मीद के साथ अब कुछ कंपनियां गाय या पौधों के बिना नए तरीके से दूध बना रही है। सिंथेटिक डेयरी की ये कंपनियां जैव-रासायनिक क्रिया से दूध बना रही है। एक विशेष टैंक में चीनी और पानी के बीच कुछ जीवाणुओं को रखा जाता है।

लैक्टोस को बहार निकाला जा रहा

ये जीवाणु कुछ समय बाद नियंत्रित वातावरण में चीनी को दूध के प्रोटीन में बदल देते हैं। इस तरह के दूध के फायदे भी है। लैक्टोस, जिससे कुछ लोगों को एलर्जी और हार्मोन, जो कुछ वयस्क रोगों से जुड़े हुए हैं, को इस तरीके से दूध से बाहर निकाला जा सकता है।

खाद्य सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन के बारे में बढ़ती चिंताओं के इस समय में यह उपयोगी है। इसमें कम पानी का उपयोग होता है। पारंपरिक डेयरी उत्पादन की तुलना इसके लिए कम ऊर्जा और जगह की जरूरत है। ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होता है, जो इस क्षेत्र में ग्लोबल वार्मिंग के उत्सर्जन में 3% से अधिक के लिए जिम्मेदार है।

गाय के मुकाबले दूध बनाने वाले टैंक काफी महंगे

इस प्रक्रिया में उपयोग लाने वाले टैंक काफी महंगे है। एक टैंक जिसमें लगभग 30 लीटर दूध को बनाया जा सकता है की कीमत 1.5 करोड़ तक हो सकती है। वहीं, एक गाय खरीदने पर, जो एक दिन में लगभग इतना दूध दे सकती है पर सिर्फ 1.5 लाख खर्च करने होंगे।

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