Medical Inflation: एक तो रोजमर्रा की जरुरी चीजों की बढ़ती कीमतों नै वैसे ही आम लोगों पर महंगाई के बोझ को बढ़ा रखा है. उसपर से कोविड काल के बाद से अस्पताल में इलाज कराना भी महंगा हो चुका है. पिछले पांच वर्षों में कोई भी बीमारी होने पर अस्पताल में भर्ती होने के बाद इलाज पर होने वाला खर्च दोगुनी रफ्तार के साथ बढ़ा है. संक्रमण वाली बीमारियों और सांस से जुड़े विकार के इलाज के लिए इश्योरेंस क्लेम तेजी के साथ बढ़ी है. एक तरफ महंगाई दर जहां 7 फीसदी के आसपास है मेडिकल इंफ्लेशन 14 फीसदी के रफ्तार से भी ज्यादा तेजी के साथ बढ़ रही है.
5 वर्षों में डबल हो गया इलाज पर खर्च
टीओआई की एक रिपोर्ट में पॉलिसीबाजार के डेटा के हवाले से बताया गया है कि संक्रामक रोग के इलाज के लिए 2018 में औसतन मेडिकल इश्योरेंस का क्लेम 24,569 रुपये हुआ करता था जो 2022 में बढ़कर 64,135 रुपये हो चुका है. यानि 5 वर्षों में इस बीमारी के इलाज पर आने वाला खर्च 160 फीसदी महंगा हो चुका है. मुंबई जैसे महामगरों में ये खर्च 30,000 रुपये से बढ़कर 80,000 रुपये पांच वर्षों में हो चुका है.
सालाना 18 फीसदी के दर से बढ़ रहा खर्च
सांस से जुड़ी बीमारियों के इलाज के लिए औसत क्लेम 2022 में बढ़कर 94,245 रुपये हो चुका है जो 2018 में 48,452 रुपये हुआ करता था यानि 18 फीसदी के दर से सालाना इलाज महंगा हुआ है. जबकि मुंबई में ये खर्च 80,000 रुपये से बढ़कर 1.70 लाख रुपये हो चुका है.
कोरोना के बाद महंगा हुआ इलाज
कोरोना महामारी के दस्तक देने के बाद इलाज पर खर्च में बढ़ोतरी आई है खासतौर से बीमारी का ट्रीटमेंट सबसे ज्यादा महंगा हुआ है. इलाज के लिए इस्तेमाल किए जाने वाली सामग्रियों पर भी खर्च बढ़ा है. पहले कुल बिल में इन सामग्रियों का हिस्सा 3 से 4 फीसदी हुआ करता था जो अब बढ़कर 15 फीसदी हो चुकी है. मेडिकल इंफ्लेशन दूसरी महंगाई से ज्यादा तेज रफ्तार से बढ़ रही है. 7 फीसदी महंगाई दर है लेकिन मेडिकल महंगाई उससे दोगुनी रफ्तार से बढ़ रही है. हेल्थ इंश्योरेंस की मांग में तेजी के चलते भी इलाज महंगा हुआ है.