नई दिल्ली -महाराष्ट्र काजू बोर्ड रकबा बढ़ाने की तैयारी कर रहा है. इसके लिए अधिक से अधिक इलाकों में काजू की खेती की जाएगी. यहां तक कि जिन क्षेत्रों में इसकी खेती घट रही है, वहां काजू के पौधों की दोबारा रोपाई कराई जाएगी. काजू बोर्ड की तैयारी है कि पौधों की रोपाई का घनत्व बढ़ाया जाए. यानी कम क्षेत्र में भी अधिक पौधे लगाए जाएं. काजू की अधिक उपज देने वाली किस्मों की रोपाई की जाएगी. इसके अलावा किसानों को काजू की ऑर्गेनिक खेती के लिए बढ़ावा दिया जाएगा. यह जानकारी काजू बोर्ड के निदेशक परशराम पाटिल ने दी.
पाटिल ने बातचीत में बताया, “प्रस्ताव है कि महाराष्ट्र में 3 साल की अवधि में 8 करोड़ रुपये की लागत से 12,000 हेक्टेयर पर हाई डेंसिटी और उच्च उपज वाली किस्मों के साथ काजू का रबका बढ़ाया जाएगा और पौधों को दोबारा रोपा जाएगा. इससे तीसरे साल में लगभग 6,000 टन और चौथे साल में 12,000 टन उपज होगी. उत्पादन में वृद्धि से आयातित कच्चे माल पर निर्भरता 25 प्रतिशत कम हो जाएगी.”
काजू की खेती बढ़ाने की तैयारी
उन्होंने कहा कि उत्पादन बढ़ाने के लिए काजू नर्सरियों को बढ़ावा देकर पौधों की संख्या बढ़ाई जाएगी, खेती की नई तकनीकों का सहारा लिया जाएगा, रकबा बढ़ाने के लिए किसानों को ट्रेनिंग दी जाएगी और किसान उत्पादक संगठनों के साथ छोटे और सीमांत किसानों का संपर्क बढ़ाया जाएगा ताकि उनकी कमाई बढ़ सके और रोजी-रोटी का इंतजाम हो सके.
महाराष्ट्र में अधिक उत्पादन
काजू के कारोबार में अग्रणी राज्य महाराष्ट्र में देश के कुल उत्पादन का एक-चौथाई हिस्सा है जहां 274 मध्यम और 320 छोटी फैक्ट्रियां हैं. महाराष्ट्र इंस्टीट्यूट फॉर ट्रांसफॉर्मेशन में कृषि के वरिष्ठ सलाहकार पाटिल ने कहा कि सरकार की योजना राज्य को एक प्रमुख निर्माता बनाने की है. काजू उगाने में टॉप स्थान पर होने के बावजूद निर्यात में सातवें स्थान पर है और कच्चे काजू का सबसे बड़ा आयातक है. उन्होंने कहा, “राज्य में लगभग 200,000 किसान काजू की खेती में लगे हुए हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के कई अवसर पैदा हो रहे हैं.”
महाराष्ट्र में काजू उत्पादन जलवायु परिवर्तन और बीमारियों से प्रभावित हुआ है. इसके कारण किसानों को लाभकारी मूल्य पाने में जूझना पड़ता है. प्रोसेसिंग के क्षेत्रों के लिए आयात किए गए काजू के कच्चे माल पर निर्भरता से अर्थव्यवस्था पर असर पड़ता है. महाराष्ट्र में प्रोसेसिंग के लिए बहुत कम बड़े प्लांट हैं, जो कुटीर स्तर पर अधिक हैं. पाटिल ने कहा कि इन प्लांटों में नई टेक्नोलॉजी नहीं आई है, न ही मशीनों का अपग्रेडेशन हुआ है. इससे उत्पादन बढ़ाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
प्रोसेसिंग प्लांट पर जोर
कोल्हापुर, सिंधुदुर्ग और रत्नागिरी जिलों में काजू प्रोसेसिंग और निर्यात क्लस्टरों को और विकसित करने की जरूरत पर जोर दिया जा रहा है. पाटिल ने मांग उठाई कि जेएसडब्ल्यू रत्नागिरी बंदरगाह पर कच्चे काजू के आयात की अनुमति दी जानी चाहिए, जिसमें काजू गिरी के निर्यात की सुविधा भी हो. उन्होंने कहा कि एपीडा को काजू निर्यात को बड़े स्तर पर बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र काजू बोर्ड काजू मूल्य अंतर योजना को लागू कर रहा है और इससे हजारों किसानों को लाभ मिला है. उन्होंने कहा कि सिंधुदुर्ग, रत्नागिरी और कोल्हापुर जिलों में प्राकृतिक और जैविक काजू की खेती की अच्छी संभावनाएं हैं.
काजू एपल का इस्तेमाल बढ़ाने की भी योजना है. पाटिल ने कहा कि काजू एपल का जूस निकाला जाएगा और उसे गोवा निर्यात किया जाएगा. फिर उससे अल्कोहल बनाया जाएगा. काजू एपल जूस का इस्तेमाल गांवों में बांटकर उससे पोषण में भी प्रयोग किया जा सकता है. काजू एपल के छिलके का उपयोग पशु चारे के रूप में कर सकते हैं. काजू एपल जूस से बेबी फीड बना सकते हैं. काजू एपल वाइन बनाकर किसानों की 20 परसेंट तक आमदनी बढ़ाई जा सकती है.