लैपटॉप अब जबकि आधुनिक जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुके हैं, ऐसे में दोषपूर्ण उत्पादों और खराब ऑफ्टर सेल्स सेवाओं से जुड़ी शिकायतें उपभोक्ता आयोगों के समक्ष तेजी से बढ़ रही हैं। चाहे वह बैटरी के अत्यंत गर्म होने का मसला हो, खराब हो रही स्क्रीन हो या ऐसी मरम्मत जो समस्या को और बढ़ा दे, के मामलों में अदालतों ने साफ कर दिया है कि निर्माता और विक्रेता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते। आज हम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत लागू लीगल फ्रेमवर्क और अदालतों द्वारा लैपटॉप खरीददारों के अधिकारों की व्याख्या को देखते हैं।
आखिर जिम्मेदार कौन?
कई उपभोक्ता लैपटॉप संस्थागत योजनाओं, जैसे गवर्नमेंट पार्टनरशिप के तहत खरीदते हैं। को-ऑर्डिनेटर आईटी बनाम सुजाता सी. (2019) मामले में एक शिक्षिका ने आईटी शिक्षा योजना के तहत लैपटॉप खरीदा था। लैपटॉप में खराबी आ गई, लेकिन योजना को लागू करने वाली एजेंसी ने तर्क दिया कि वह केवल समन्वयक थी और वास्तविक लेनदेन (ट्रांजैक्शन) में उसकी कोई भूमिका नहीं थी। केरल राज्य आयोग ने स्पष्ट किया कि मुआवजे की जिम्मेदारी केवल उस निर्माता पर है, जिससे उत्पाद प्रत्यक्ष रूप से खरीदा गया था। किसी समन्वयक एजेंसी पर, जिसकी कोई वित्तीय भूमिका नहीं थी, पर संयुक्त जिम्मेदारी थोपना असंवैधानिक माना गया।
अगर लैपटॉप फट जाए तो?
मनोज खेतान बनाम सोनी इंडिया प्रा. लि. (2007) का एक मामला दिलचस्प था। एक लैपटॉप चालू करते ही फट गया। राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग ने इसे केवल एकमात्र मामले की तरह ट्रीट न करते हुए सामूहिक याचिका लायक विषय माना, क्योंकि बैटरी संबंधी ऐसी समस्याएं वैश्विक स्तर पर सामने आ रही थीं। अदालत ने यह भी माना कि ऐसे उत्पाद जीवन और संपत्ति के लिए भी खतरनाक हो सकते हैं। उसने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया कि सुरक्षा से जुड़े डिफेक्ट्स की कड़ाई से जांच होकर व्यापक उपभोक्ता उपाय लागू होने चाहिए।
क्या कोई अन्य शिकायत कर सकता है?
प्रसेनजीत बिस्वास बनाम एचपी सर्विसेज (2021) मामले में जिला फोरम ने इस आधार पर शिकायत खारिज कर दी कि शिकायतकर्ता खरीदार नहीं था। लैपटॉप उसकी पत्नी के नाम पर था। राज्य आयोग ने जिला फोरम के आदेश को पलटते हुए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 2(1)(d) (अब 2019 अधिनियम की धारा 2(7)) का हवाला दिया, जो किसी सामान के उपयोगकर्ताओं को भी ‘उपभोक्ता’ की परिभाषा में शामिल करता है। अगर खरीदार की स्वीकृति हो तो उस सामान का उपयोगकर्ता भी वैध शिकायतकर्ता हो सकता है। आयोग ने आदेश दिया कि मरम्मत बिना किसी अतिरिक्त शुल्क के पूरी की जाए, अन्यथा वसूली गई राशि ब्याज सहित वापस की जाए। इसी तरह राहुल बानिक बनाम डेल इंडिया प्रा. लि. (2016) मामले को भी देखा जा सकता है। शिकायतकर्ता को वारंटी अवधि के दौरान बार-बार लैपटॉप में खराबियों का सामना करना पड़ा। हालांकि निर्माता ने दावा किया कि सिस्टम मूलतः किसी और को बेचा गया था और खरीददार ने उसे शिकायतकर्ता को सेवा बतौर इस्तेमाल करने को दिया था। त्रिपुरा राज्य आयोग ने डेल के स्वामित्व संबंधी तर्क को खारिज कर दिया।
वारंटी के तहत कवरेज न होना?
सोनी इंडिया प्रा. लि. बनाम जतिंदर मित्तल (2011) मामले में सोनी ने स्क्रीन की खराबी की मरम्मत से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि नुकसान बाहरी इम्पैक्ट की वजह से हुआ था और वारंटी में शामिल नहीं है। हालांकि आयोग ने पाया कि खराबी की सूचना खरीद के तुरंत बाद दी गई थी और यह जिम्मेदारी कंपनी की थी कि वह यह साबित करे कि नुकसान वारंटी के बाहर है। उपभोक्ता ने थर्ड पार्टी के सेवा केंद्र से लैपटॉप की मरम्मत करवाई और खर्च की प्रतिपूर्ति की मांग की। यूटी चंडीगढ़ आयोग ने उपभोक्ता के दावे को स्वीकार करते हुए मुआवजा देने का आदेश दिया।
उपभोक्ताओं के लिए क्या हैं अहम सबक?
उपभोक्ताओं को चाहिए कि वे उत्पाद में पाई गईं खराबियों का यथाशीघ्र दस्तावेजीकरण करें। निर्माता या सेवा प्रदाता के साथ अपने कम्युनिकेशन का रिकॉर्ड बनाए रखें। भले ही वारंटी की शर्तें महत्वपूर्ण होती हैं, लेकिन अदालतों ने यह स्पष्ट किया है कि अगर उत्पाद में मूलभूत दोष हो या सेवा को अनुचित रूप से नकारा जाए तो वे केवल शर्तों के फाइन प्रिंट तक सीमित नहीं रहेंगी। इसलिए अगर ऐसा लगता है कि वारंटी में उनका उत्पाद कवर नहीं होने के बावजूद समस्या गंभीर है तो उपभोक्ता को उपभोक्ता फोरम में जाने से बचना नहीं चाहिए।