श्री कृष्णा जन्माष्टमी- इस साल जन्माष्टमी 6 और 7 सितंबर दोनों दिन मनेगी। ज्योतिषियों का मत है कि कृष्ण जन्मोत्सव 6 की रात ही मनाना चाहिए, क्योंकि इसी रात में तिथि-नक्षत्र का वो ही संयोग बन रहा है, जैसा द्वापरयुग में बना था। द्वारिका, वृंदावन और मथुरा सहित बड़े कृष्ण मंदिरों में वैष्णव संप्रदाय के मुताबिक 7 तारीख को ये पर्व मनेगा। 7 और 8 की दरमियानी रात 12 बजे श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव होगा। ग्रंथों के अनुसार ये भगवान कृष्ण का 5250वां जन्म पर्व है।
अष्टमी तिथि 6 सितंबर को दोपहर करीब 3.30 बजे शुरू होगी और 7 सितंबर को शाम 4 बजे तक रहेगी। श्रीकृष्ण का जन्म अष्टमी तिथि की रात में हुआ था, इसलिए ज्योतिषियों और ग्रंथों का कहना है 6 को जन्माष्टमी मनाएं। 7 तारीख को सूर्योदय के वक्त अष्टमी तिथि रहेगी, इसलिए उदया तिथि की परंपरा के अनुसार अधिकतर मंदिरों में इसी दिन जन्माष्टमी मनेगी। इस लिहाज से देश के ज्यादातर हिस्सों में 7 सितंबर को ही जन्माष्टमी मनाई जाएगी।
बनारस में 6 को मनेगी जन्माष्टमी
व्रत और पर्वों की तारीख तय करने के लिए धर्म सिंधु और निर्णय सिंधु नाम के ग्रंथों की मदद ली जाती है। इन दोनों ही ग्रंथों में जन्माष्टमी के लिए कहा गया है कि जब आधी रात में अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र हो, तब कृष्ण जन्मोत्सव मनाएं। 6-7 सितंबर की रात में कृष्ण जन्म पर्व मनाएं, क्योंकि शिवरात्रि और दीपावली की तरह जन्माष्टमी भी आधी रात में मनाया जाने वाला पर्व है। बनारस में 6 सितंबर को ही जन्माष्टमी मनेगी।इस बार कृष्ण जन्मोत्सव पर अष्टमी तिथि, बुधवार और रोहिणी नक्षत्र होने से जयंती योग बन रहा है। ऐसा संयोग द्वापर युग में कृष्ण जन्म पर भी बना था। इस दिन शश, लक्ष्मी, सरल, उभयचरी और दामिनी नाम के 5 राजयोग भी रहेंगे।
6 सितंबर को जन्माष्टमी क्यों?
अष्टमी तिथि 6 को दोपहर 3.30 बजे से शुरू होगी, लेकिन अष्टमी तिथि के साथ रोहिणी नक्षत्र 6-7 की दरमियानी रात ही होगा। ये संयोग कृष्ण जन्म का माना गया है।
7 सितंबर को जन्माष्टमी क्यों?
6 सितंबर को जब सूर्योदय होगा तब सप्तमी तिथि होगी। 7 को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि होगी, इसे उदया तिथि कहते हैं। कई मामलों में ज्योतिषीय गणना में उदया तिथि का महत्व होता है। इस लिहाज से 6 को सप्तमी तिथि और 7 को अष्टमी तिथि मानी जाएगी।
ज्यादातर त्योहार दो दिन क्यों होते हैं?
हिंदू पंचांग की तिथियां अंग्रेजी कैलंडर के मुताबिक नहीं होतीं। अक्सर तिथियां दोपहर या शाम से शुरू होकर अगले दिन तक होती हैं। जिस तिथि में दिनभर व्रत के बाद पूजन का महत्व होता है, वे ज्यादातर उदया तिथि में मनाई जाती हैं। जिन तिथियों में रात की पूजा का महत्व ज्यादा होता है, उनमें उदया तिथि का महत्व नहीं देखा जाता। जैसे दीपावली में अगर अमावस्या एक दिन पहले ही शुरू हो गई हो तो अगले दिन उदया तिथि की अमावस्या की बजाय एक दिन पहले की अमावस्या पर रात में लक्ष्मी पूजन किया जाएगा।