हवनकुंड- किसी पाठ, व्रत, संकल्प आदि की पूर्ति के लिए किए गए कार्य की पूर्णाहुति करते हैं तब शतमंगल नाम की अग्नि का आव्हान किया जाता है। यज्ञ, हवन आदि शुभ कार्यो में अग्नि का आव्हान किया जाता है। अग्निपुराण के अनुसार अग्नि के विभिन्न रूप होते हैं। अभीष्ट कार्यो की सिद्धि के लिए उससे संबंधित अग्नि का आव्हान किया जाता है। आप किस कार्य के लिए यज्ञ या हवन कर रहे हैं उसी से संबंधित अग्नि का आव्हान करना चाहिए ताकिकार्यो में शीघ्र सिद्धि हो सके। अग्नि के प्रकार पुराणों में अग्नि 108 प्रकार की बताई गई है किंतु उनमें पांच प्रकार की अग्नि मुख्य मानी गई हैं। ये हैं वरदा, शतमंगल, बलद, क्रोध और कामद।
पांच प्रकार की अग्नि मुख्य
- वरदा : शांति से संबंधित कार्य जैसे ग्रह शांति, मूल शांति, पारिवारिक सुख-शांति आदि कार्यो में वरदा नाम की अग्नि का आव्हान किया जाता है।
- शतमंगल : जब आप किसी यज्ञ या हवन की पूर्णाहुति कर रहे हैं। किसी पाठ, व्रत, संकल्प आदि की पूर्ति के लिए किए गए कार्य की पूर्णाहुति करते हैं तब शतमंगल नाम की अग्नि का आव्हान किया जाता है।
- बलद : बलद नाम की अग्नि का आव्हान पुष्टि कार्यो में किया जाता है। पुष्टि अर्थात संतान की प्राप्ति, धन की प्राप्ति, उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति आदि के लिए यदि आप अग्नि का आव्हान कर रहे हैं तो उस समय बलद नाम की अग्नि को आमंत्रित किया जाता है।
- क्रोध : अभिचार कर्म में क्रोध नाम की अग्नि को बुलाया जाता है। अभिचार अर्थात् मारण, उच्चाटन आदि कार्य क्रोध नाम की अग्नि की उपस्थिति में किए जाते हैं।
- कामद : वशीकरण, आकर्षण, मोहन जैस कार्यो के निमित्त किए जाने वाले यज्ञ हवन आदि में कामद नाम की अग्नि का आव्हान किया जाता है।
हवन कुंड भी विशेष अग्नि की तरह ही विभिन्न कार्यो में भिन्न-भिन्न प्रकार की धातुओं आदि से बने कुंड का उपयोग किया जाता है। शांति कार्यो में स्वर्ण, रजत या तांबे का हवन कुंड उपयोग होता है। अभिचार कार्यो में लोहे का हवन कुंड, मोहन-वशीकरण कार्यो में पीतल का हवन कुंड, उच्चाटन में मिट्टी का हवनकुंड उपयोग करना चाहिए। समस्त कार्यो में तांबे का हवन कुंड उपयोग किया जा सकता है।