नई दिल्ली- आजादी से लेकर अब तक भारतीय करंसी नोटों के रंग-रूप और आकार में कई तरह का बदलाव हो चुका है. कुछ मूल्य के नोट बंद हो चुके हैं तो कुछ नए मूल्य के नोट चलन में आए हैं. नोटबंदी के बाद 500 और 1000 रुपये के पुराने नोटों को बंद कर दिया गया. नए नोट बाजार में आए. इनका आकार, रंग, सब अलग है. लेकिन, जो एक चीज अब भी नोटों पर पुरानी है वह है, इन पर लिखा ‘मैं धारक को…रुपये अदा करने का वचन देता हूं’ वाक्य. यह लाइन हर भारतीय करंसी नोट पर लिखी होती है. क्या कभी आपके मन में यह सवाल उठा है कि आखिर इस लाइन को क्यों लिखा जाता है.
क्या अर्थ है और क्या महत्व है?
इस वाक्य का बहुत महत्व है. यही वाक्य नोट की कीमत की पुष्टि करता है. यह वाक्य बताता है कि जो नोट आपके पास है उसके वास्तविक मूल्य की पुष्टि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का गवर्नर स्वयं कर रहा है. इसके माध्यम से गर्वनर यह गारंटी दे रहा है कि रिजर्व बैंक के नोट के मूल्य के बराबर सोना संचित रखा है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जितने रुपये का नोट छापता है उतने रुपये का सोना अपने पास रिज़र्व कर लेता है.
इस वाक्य के अलावा हर नोट पर भारतीय रिजर्व बैंक के नीचे ‘केंद्रीय सरकार द्वारा प्रत्याभूत’ और अंग्रेजी में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नीचे ‘गारंटीड बाय द सेंट्रल गवर्नमेंट’ भी लिखा होता है. यानी एक तरह से नोट के मूल्य की गारंटी केंद्र सरकार भी देती हैं. ये दोनों ही बातें नोट को सामान्य कागज से एक विशेष कागज यानी मुद्रा में बदल देती हैं
नोट छापने का जिम्मा आरबीआई का
भारत में करेंसी नोटों को छापने का काम भारतीय रिज़र्व बैंक के जिम्मे है. एक रुपये के नोट को छोड़कर सभी नोटों पर RBI के गवर्नर के हस्ताक्षर होते हैं. भारतीय रिजर्व बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम, 1934 के माध्यम से मुद्रा प्रबंधन का जिम्मा सौंपा गया है. भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम की धारा 22, रिज़र्व बैंक को नोट जारी करने का अधिकार देती है.
नोट लेने से इंकार करना अपराध
कोई व्यक्ति किसी सही नोट को लेने से इंकार करता है तो इसका सीधा यह मतलब है कि वह RBI के गवर्नर अर्थात सरकार के प्रतिनिधि की आज्ञा को नहीं मान रहा है अर्थात कानून तोड़ रहा है इसलिए उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही की जा सकती है.