नई दिल्ली- जिस तरह गाड़ियों में टायर की दिशा बदलने के लिए स्टेयरिंग और बाइक में हैंडल होता है वैसा ट्रेन में कुछ नहीं होता. इसके बावजूद ट्रेन कैसे पटरी बदलकर घूम जाती है. ट्रेन जिस तरह से पटरी बदलती है उसे इंजीनियरिंग का एक उत्तम नमूना कहा जा सकता है. ट्रेन के पटरी बदलने की प्रक्रिया से पहले आपको कुछ आधारभूत बातों के बारे में जानना होगा.
पहली बात ये कि ट्रेन को जहां पटरी बदलनी होती है वहां 2 और ट्रैक पिछले ट्रैक के साथ जोड़ दिए जाते हैं. दूसरा यह कि ट्रेन के पहिए अंदर की ओर से पटरी को पकड़कर चलते हैं. यही 2 मुख्य बिंदु है जिन्हें समझने की जरूरत है और इन्हीं की मदद से ट्रेन पटरी बदल लेती है.
ट्रेन का पटरी बदलना
उपरोक्त 2 बातों में से पहली बात को समझने का प्रयास करते हैं. जहां 3-4 या उससे अधिक ट्रैक एक साथ होते हैं. उनमें से कुछ अचानक दूसरी दिशा की ओर बढ़ जाते हैं. काफी देर से जहां केवल अप और डाउन रूट की ही पटरी थी वहां तीसरा ट्रैक कहां से आया. यह ट्रैक 2 पटरियों के बीच से ही शुरू कर दिया जाता है.
इस तरह एक ही जगह पर कुल 4 पटरियां हो जाती हैं. अब ट्रेन को जिस दिशा उस तरफ वाली 2 पटरियों को आपस में चिपका दिया जाता है. इससे ट्रेन का पहिया दूसरी पटरी पकड़ लेता है. ध्यान रहे कि पहिया अंदर से पटरी को पकड़कर चलता है इसीलिए ऐसा हो पाता है. ट्रेन जब नई पटरी को पकड़ लेती है तो वह ट्रैक जहां जाएगा ट्रेन भी वहां चली जाएगी. ऐसा वहां किया जाता है जहां 2 लाइनें अलग-अलग दिशा में जा रही हों.
पहले मैनुअली होता था काम
जहां पटरियों की इंटरलॉकिंग की जाती है उस जगह को पाइंट कहते हैं. पहले इसके लिए एक पॉइंटमैन या ट्रैकमैन नियुक्त किया जाता था जो मैनुअली ये काम करता था. इसके लिए स्टेशन से कुछ पहले केबिन बनाए जाते थे जहां से निर्देश दिया जाता था. आज भी आपको कुछ बड़े स्टेशनों से पहले पीले रंग से रंगे केबिन दिख जाएंगे जिस केबिन के साथ कोई दिशा लिखी होगी. हालांकि, अब यह काम नई तकनीक से किया जाता है. इंटरलॉकिंग की जगह पर एक छोटी मशीन लगी होती है जो कंट्रोल रूम में बैठे व्यक्ति के इशारे पर ट्रैक को किसी एक तरफ दूसरे ट्रैक से चिपका देता है.