ट्रेन में लोकोमोटिव बहुत भारी मशीनरी होती है. इसका काम बहुत बड़ा होता है क्योंकि इसे ट्रेन की कई बोगी खींचनी होती है. कुछ लोग लोकोमोटिव को इंजन कहते हैं, लेकिन इंजन इसका एक हिस्सा है.
करीब 116 कारों के बराबर अकेले एक इंजन की ताकत होती है
सामान्य तौर पर एक डीजल लोकोमोटिव में 16 सिलेंडर होते हैं. एक सिलेंडर में 150 लीटर के आसपास डीजल इस्तेमाल होता है. इसकी तुलना कार से करें तो कार के इंजन में सामान्यतः 4 सिलेंडर होते हैं और एक सिलेंडर में 1 या 2 लीटर तेल इस्तेमाल होता है. ट्रेन में कुछ सिलेंडर बहुत बड़े होते हैं. ट्रेन के डीजल फ्यूल टैंक में 50 हजार लीटर तक तेल आ सकता है.वर्तमान समय में ट्रेन के इंजन में 16 सिलेंडर का इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें से एक सिलेंडर की क्षमता 10,941 सीसी की होती है. अगर 16 का गुणा 10,941 से करें तो ट्रेन के इंजन की कुल क्षमता करीब 1.75 लाख सीसी होती है. यानी अगर होंडा सिटी के इंजन को आधार बनाया जाए तो करीब 116 कारों के बराबर अकेले एक इंजन की ताकत होती है. होंडा सिटी का इंजन 1498 CC का होता है.
ट्रेन के बड़े इंजन की क्षमता को CC नहीं बल्कि लीटर में व्यक्त करते हैं. यहां 1 लीटर का मतलब है 1000CC. इसलिए, डीजल लोको के इंजन के एक सिलेंडर की क्षमता 10,941 CC यानी कि 10.94 लीटर यानी 16 सिलेंडर के पूरे इंजन की क्षमता 175 लीटर होगी. साथ ही अलग-अलग इंजन की क्षमता भी अलग-अलग हो सकती है.इंजन में सुपरचार्जर भी होते हैं जिनका वजन कई टन तक हो सकता है. इन सबका वजन जोड़ें तो यह 20 टन के आसपास हो सकता है और इसकी कीमत 10 करोड़ रुपये तक हो सकती है. ट्रेन का इंजन खुद को खींचने के साथ पूरी ट्रेन को खींचने का काम करता है. इंजन कई तरह के होते हैं लेकिन उनका ऑपरेशन डीजल या बिजली से ही होता है. यहां जानना जरूरी है कि लोकोमोटिव और इंजन दो अलग-अलग मशीनें हैं.
इंजन को ‘प्राइम मूवर’ भी कहते हैं
लोकोमोटिव को लोग इंजन भी कहते हैं, हालांकि इंजन लोकोमोटिव (डीजल) का एक हिस्सा भर है. इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव में कोई इंजन नहीं होता. डीजल लोकोमोटिव में इंजन सबसे अहम हिस्सा है जो पहियों को पावर सप्लाई करता है. इंजन को ‘प्राइम मूवर’ भी कहते हैं क्योंकि यह पूरी ट्रेन को खींचने का काम करता है. ये इंजन बहुत बड़े होते हैं, जिनमें 16 सिलेंडर्स, 32 वाल्व और 1 लाख से लेकर डेढ़ लाख सीसी तक का डिसप्लेसमेंट होता है.
कुछ बोगी के बारे में…
आम भाषा में लोग रेलवे कोच को बोगी बोलते हैं, लेकिन ऐसा होता नहीं है. लोग जिस डिब्बे में सफर करते हैं उसे कोच, कंपार्टमेंट, कैरिज या कार बोलते हैं. कोच या लोकोमोटिव के एक यूनिट को बोगी कहा जाता है जिसमें व्हिल और ससपेंशन आदि आते हैं. एक कोच में दो बोगी होती है और एक लोकोमोटिव में दो या तीन बोगी हो सकती है. एक बोगी में 4 से 6 पहिये होते हैं.
ड्राइविंग कैब
लोकोमोटिव में कॉकपिट होता है जहां लोको पायलट (ड्राइवर) और असिस्टेंट बैठते हैं. ट्रेन का पूरा कंट्रोल यही से होता है. जिस सिस्टम से पूरी ट्रेन को कंट्रोल किया जाता है उसे कंट्रोल स्टैंड कहते हैं. पहियों को इलेक्ट्रिक मोटर्स चलाते हैं, इसी से ट्रेन भी चलती है. ये मोटर लोकोमोटिव के एक्सेल से जुड़े होते हैं. एक एक्सेल से एक मोटर जुड़ा होता है. डीजल इंजन या इलेक्ट्रिक लोको में ट्रांसफॉर्मर से पहिये तक बिजली पहुंचाई जाती है. इससे लोकोमोटिव आगे की तरफ बढ़ता है.