
ऐसे हुई बेलपत्र अर्पित करने की शुरुआत
धार्मिक ग्रंथों की मानें तो समुद्र मंथन के समय विष निकला था, जिसका नाम कालकूट था। शिव जी ने कालकूट विष का पान किया था। धार्मिक मान्यता के अनुसार, इस विष के असर से महादेव का कंठ नीला पड़ गया था, जिसकी वजह से इनका नाम नीलकंठ पड़ा। कालकूट के प्रभाव से भगवान शिव का मस्तिष्क अधिक गर्म हो गया। ऐसे में देवी-देवताओं ने प्रभु के मस्तिष्क को शांत करने के लिए उन पर जल अर्पित किया।
साथ ही बेलपत्र भी चढ़ाया, क्योंकि बेलपत्र की तासीर ठंडी होती है। मान्यता है कि तभी से पूजा के दौरान महादेव को बेलपत्र अर्पित करने की शुरुआत हुई। इससे साधक को प्रभु की कृपा प्राप्त होती है।
कैसे चढ़ाएं बेलपत्र
- सबसे पहले महादेव को तिलक लगाएं।
- इसके बाद बेलपत्र, फल, फूल, भांग और धतूरा चढ़ाएं।
- दीपक जलाकर आरती करें और प्रिय चीजों का भोग लगाएं।
कब तोड़ें बेलपत्र?
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, बेलपत्र को कुछ महत्वपूर्ण तिथियों पर तोड़ना वर्जित है। इनमें चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या तिथि शामिल हैं। ऐसे में पूजा के लिए इन तिथियों से एक दिन पहले बेलपत्र को तोड़कर रख लें।



