अंतरिक्ष में दूरी कैसे मापते हैं खगोलशास्‍त्री, यहाँ मिलेगी पूरी जानकारी

Cosmic Distance: ब्रह्मांड में मौजूद तारों, ग्रहों या आकाशगंगाओं की दूरी मापना आसान नही होता है. इनकी पृथ्वी से दूरी बहुत ज्‍यादा होती है. खगोलविज्ञानी ब्रह्मांडीय दूरी को मापने के लिए कई तरीकों का उपयोग करते हैं. खगोलीय दूरी मापने में उपयोग होने वाले सभी तरीके विज्ञान और गणित के अद्भुत संयोजन हैं. मौजूदा समय में अंतरिक्ष में दूरी मापने के लिए रडार मापन विधि का उपयोग किया जाता है. इस विधि में प्रकाश की गति 3 लाख किमी प्रति सेकेंड को आधार बनाया जाता है.

यह तकनीक सबसे सटीक मानी जाती है

रडार मापन विधि की भी अपनी सीमाएं हैं. खगोलविज्ञानी इस विधि से सौरमंडल तक की दूरी तो निर्धारित कर सकते है, लेकिन इससे ज्‍यादा दूरी के लिए यह विधि उपयोगी नही है. वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के ग्रहों की दूरी तय करने के लिए इस तकनीक का उपयोग कई बार किया है.

पृथ्वी से चंद्रमा की दूरी मापने के लिए यह विधि सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल की जाती है. इस विधि में पृथ्वी से भेजे गए सिग्‍नल उस पिंड या ग्रह पर भेजे जाते है, जिसकी दूरी मापने होती है. भेजे गए सिग्‍नल ग्रह या पिंड से टकराकर वापस लौटने पर पृथ्वी के सेंटर को मिलते हैं. वैज्ञानिक सिग्‍नल के जाने और लौटने में लगने वाले समय को दर्ज कर लेते है. इससे ग्रह या पिंड की धरती से दूरी का पता लगा लिया जाता है.

दूर के तारे या ग्रह की दूरी कैसे मापते हैं

खगोलविज्ञानी किसी बहुत दूर के तारे या ग्रह की धरती से दूरी मापने के लिए लंबन विधि या स्‍टेलर पैरालैक्‍स मैथड का इस्‍तेमाल करते हैं. दो अलग बिंदुओं से किसी वस्तु की ओर देखने पर जो कोणीय विचलन महसूस होता है, उसे लंबन कहते हैं. इन बिंदुओं को मिलाने वाली आधार रेखा उस दूर मौजूद वस्तु पर जो कोण बनाती है, उससे लंबन तय होता है. आसान शब्दों में लंबन दो अलग-अलग जगहों से देखा गया किसी तारे की स्पष्ट स्थिति में अंतर ही है, जो उसके बैकग्राउंड में मौजूद वस्तुओं के कारण महसूस होता है.

किसी दूर के तारे या ग्रह की दूरी पता करने के लिए वैज्ञानिक पृथ्वी पर दो वेधशालाओं से भी प्रेक्षण कर सकते हैं. इसमें ध्‍यान देने की बात है कि प्रेक्षण बिंदु जितने ज्यादा दूर होंगे, नतीजा उतना ही सटीक आएगा. खगोलविज्ञानी पृथ्वी के टर्निंग डायामीटर को अपना प्रेक्षण बिंदु बनाते है. इसके लिए खगोलविदों को छह महीने के अंतराल पर प्रेक्षण करना पड़ता है.

लाखों प्रकाशवर्ष दूर के तारों की दूरी मापना

कुछ तारे अपनी चमक को खास अवधि में बढ़ाते और घटाते रहते हैं. अमेरिकी खगोलविद हेनरिटा स्वान लीविट जब मैग्लेनिक क्‍लाउड का अध्ययन कर रही थीं, तब उन्होंने एक तारे में इस गुण को देखा था. उन्होंने उस तारे के अध्ययन के दौरान पाया कि उसकी चमक बढ़ने और घटने का समय से गहरा संबंध है. उन्‍होंने 1912 में प्रकाशित अपने अध्ययन में कहा कि सीफीड तारे एक निश्चित समय अंतराल में अपनी चमक में उतार चढ़ाव करते हैं.

तारों का यह व्यवहार भी वैज्ञानिकों को दूरी मापने के लिए खगोलीय मापदंड उपलब्‍ध करता है. इससे वैज्ञानिक लाखों प्रकाशवर्ष दूर मौजूद तारों की दूरी का आकलन कर पाते हैं. सीफीड तारों की चमक सूर्य से 500 से 30,000 गुना तक ज्यादा हो सकती है. इस तकनीक से लाखों प्रकाशवर्ष दूर मौजूद तारों की दूरी का आकलन किया जाता है.

तारे की चमक से दूरी मापने की विधि

निरपेक्ष कांतिमान किसी खगोलीय वस्तु के चमकीलेपन को कहते हैं. अगर किसी तारे के निरपेक्ष कांतिमान की बात हो रही हो तो यह देखा

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