देश के कुछ हिस्सों में अधिक बारिश के बाद सोयाबीन की फसलें पीली पड़ने लगी हैं. दरअसल, सोयाबीन की फसल लगने के बाद पीलापन आने के दो मुख्य कारण हैं. पहला, पोषक तत्वों की कमी और दूसरा बारिश के बाद लगने वाली बीमारी है. कई राज्यों में लगातार हो रही बूंदाबांदी और बारिश से फसलों में अलग-अलग प्रकार के कीड़े लग रहे हैं. इसके अलावा, नियमित रूप से बादल छाए रहने और धूप की कमी के कारण पोषक तत्वों की कमी हो रही है. वहीं, कई जगहों पर सोयाबीन की बुवाई पूरी हो चुकी है और फसलें 40 से 45 दिन की हो गई हैं. ऐसे में समय रहते उपाय करना जरूरी है. नहीं तो फसल उत्पादकता प्रभावित हो सकती है.
पीलेपन होने का मुख्य कारण
सोयाबीन की फसल में शुरुआती विकास में पीलापन मुख्य रूप से पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है और देर से पीलापन वायरल रोग के कारण हो सकता है. वहीं, मिट्टी में विभिन्न पोषक तत्वों की कमी के कारण सोयाबीन पीली हो जाती है. इसके अलावा सोयाबीन की फसल में पीलापन मुख्य रूप से सल्फर, जिंक और आयरन की कमी के कारण भी होता है. जब सल्फर कम होता है, तो पत्ती में हरा पदार्थ 18 प्रतिशत तक कम हो जाता है. ऐसा होने से पत्ते पीले पड़ने लगते हैं.
पीलेपन से बचाने का उपाय
सोयाबीन की पत्तियां पीली पड़ने पर घुलनशील उर्वरकों का छिड़काव करना चाहिए. वहीं, पोषक तत्वों की कमी होने पर यूरिया 20 ग्राम, सल्फर पोषक तत्वों की कमी होने पर सल्फेट युक्त उर्वरक 5 मिली, आयरन और जिंक पोषक तत्वों की कमी होने पर सूक्ष्म पोषक तत्व 2 (माइक्रोन्यूट्रिएंट ग्रेड-2) देना चाहिए. इसके अलावा विशेषज्ञों की सलाह को मानते हुए अमीनो एसिड का अधिक छिड़काव करना चाहिए.
रोगों और बीमारियों के उपाय
सोयाबीन पर पीला मोजेक, मोजेक सफेद मक्खी की वजह से फैलता है. रोग के लक्षण दिखते ही रोगग्रस्त पौधों को उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए. इसके अलावा फसलों और उसके आसपास उगे खरपतवार को नियंत्रित करना चाहिए. यदि सोयाबीन की फसल में अंतर फसल और मिश्रित फसल का प्रयोग किया जाए तो रोग का प्रकोप कम होता है. सफेद मक्खी और फल मक्खी के संक्रमण को रोकने के लिए फसल में 10 से 12 हेक्टेयर पर पीले चिपचिपे जाल (15 x 30 सेमी) भी लगाए जा सकते हैं.