Effective Date- April 10 , 2023 | |
Tenor |
MCLR |
Overnight | 7.80% |
1 Month | 7.95% |
3 Month | 8.30% |
6 Month | 8.70% |
1 Year | 8.95% |
2 Year | 9.05% |
3 Year | 9.15% |
सोर्स : एचडीएफसी बैंक साइंट
इस कमी के बाद ओवरनाइट एमसीएलआर 7.80 परसेंट रह गया है. इससे पहले यह 8.65 प्रतिशत था. इसमें 85 बेसिस पॉइंट्स की कमी की गई है. इसी के साथ एक महीने का एमसीएलआर (MCLR) भी 8.65 फीसदी से 7.95 फीसदी रह गया है. इसमें भी 70 बेसिस पॉइंट्स की कमी की गई है. इसके अलावा तीन महीने के एमसीएलआर में 40 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की गई है. अब यह 8.7 प्रतिशत से गिरकर 8.3 प्रतिशत कर दिया गया है. इसके साथ ही इस प्राइवेट बैंक ने 6 महीने का एमसीएलआर 10 बेसिस प्वॉइंट कम कर 8.7 प्रतिशत कर दिया गया है. बता दें कि आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा नीति की हाल में हुई बैठक में रेपो रेट को 6.5 फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला लिया गया था.
क्या होती है एमसीएलआर दर (MCLR Rate)
बैंकिंग शब्दावली में एमसीएलआर (MCLR) यानि मार्जिनल कॉस्ट ऑफ लेंडिंग रेट क्या होता है. आइए इसे समझें. इस रेट (MCLR) को भारतीय रिजर्व बैंक ( Reserve Bank Of India) ने आरंभ किया था. यह इतनी महत्वपूर्ण है कि इस रेट के तय हो जाने पर इससे कम रेट पर कोई भी बैंक ग्राहकों को लोन नहीं दे सकता है. अमूमन इस MCLR रेट से ज्यादा रेट पर ही बैंक लोन देता है. यह रेट (MCLR) कमर्शियल बैंकों द्वारा ग्राहकों को लोन रेट निर्धारित करने में इस्तेमाल किया जाता है. इससे साफ हो गया होगा कि इसके बढ़ने के साथ ही लोन का महंगा होना तय हो जाता है. देश में नोटबंदी के बाद से इसे (MCLR) लागू किया गया था. बैंकों से लोन रेट तय करने के लिए इस रेट की शुरुआत आरबीआई ने साल 2016 में की थी.
बैंकों को इस रेट (MCLR) की जरूरत क्यूं पड़ती है
किसी भी बैंक द्वारा ग्राहक को दिए लोन के पैसे पर भी बैंक को लागत उठानी पड़ती है. यानी बैंक का खर्चा होता है. यही नहीं लोन का पैसा वसूलने पर भी बैंक को लागत वहन करना होता है. इस प्रकार की सभी लागतों को जोड़ने के बाद एक मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड तैयार किया जाता है. बैंक इस तरह हर 100 रुपये को रखने, जारी करने, वसूलने पर उठाई जाने वाली कुल लागत को बैंक एमसीएलआर (MCLR) के रूप में पेश करता है. इसे (MCLR) प्रतिशत के रूप में पेश किया जाता है.