नयी दिल्ली- एग्जिट पोल और राजनीतिक तज्ञो की भविष्यवाणियों को झुठलाया भाजपा तीसरी बार हरियाणा में गुलाल उड़ गया। शुरुआत में कांग्रेस हराना कठिन था, बाद में हर राउंड की गिनती के बाद कांग्रेस पिछड़ती गई और बहुमत के आंकड़े से दूर होती गई. और देखते ही देखते भाजपा दोबारा सत्ता हासिल करने में सफल रहे हैं, लेकिन पांच मंत्री हार गए हैं. हरयाणा विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो गए. परिणाम को लेकर पूरे देश में उत्सुकता थी, क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव था जहां बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर थी. कांग्रेस इस चुनाव के नतीजे को लेकर काफी उम्मीदें थीं. लेकिन, हरियाणा के नतीजे ने सबको चौंका दिया, वहीं बीजेपी को ताकत मिली.
बीजेपी के पांच मंत्रियों की हार
हरियाणा विधानसभा चुनाव में बीजेपी के पांच मंत्री हार गए. अहम बात यह है कि पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ज्ञानचंद गुप्ता, रणजीत चौटाला को भी हार का सामना करना पड़ा। भाजपा के पूर्व मंत्री संजय सिंह नूंह विधानसभा क्षेत्र से हार गए। इस सीट से आफताब अहमद ने जीत हासिल की है. जगाधरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे बीजेपी के मंत्री कंवरपाल गुर्जर भी हार गये हैं. कांग्रेस के अकरम खान ने उन्हें हरा दिया. हिसार विधानसभा क्षेत्र से भाजपा प्रत्याशी एवं पूर्व स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कमल गुप्ता भी हार गये. उन्हें देश की सबसे अमीर महिला सावित्री जिंदल ने हराया था। उन्होंने एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था क्योंकि भाजपा ने उन्हें मैदान में नहीं उतारा था। वहीं, रणजीत चौटाला रानिया विधानसभा क्षेत्र से हार गए हैं, जबकि मंत्री सुभाष सुधा भी थानेसर विधानसभा क्षेत्र से हार गए हैं।
ज्ञानचंद गुप्ता को किसने हराया?
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष ज्ञान चंद गुप्ता को पंचकुला विधानसभा क्षेत्र से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के बेटे चंद्रमोहन जीते.
कांग्रेस के हार के कारण
- हरियाणा में ऐसा देखा गया कि कांग्रेस पर भूपेंद्र सिंह हुड्डा का कंट्रोल था. बाकी नेता बाहर नजर आए. टिकट बंटवारे में उनका दबदबा भी नजर आया.
- कांग्रेस चुनाव प्रचार में जाट की तरफ दिखती रही लेकिन ऐसे में वह नॉन जाट और बाकी बिरादरियों से दूर हो गई.
- कांग्रेस के अंदर कलह भी इस नतीजे का कारण माना जा रहा है. कुमारी सैलजा और हुड्डा के बीच दरार साफ नजर आई.
- कांग्रेस ने अग्निवीर, किसान और पहलवान के मुद्दे को जोर-शोर से उठाया लेकिन चुनाव में इसका असर होता नहीं दिखा.
- कांग्रेस की गारंटी पर भी संभवत: लोगों ने भरोसा नहीं किया क्योंकि पड़ोसी राज्य हिमाचल में कांग्रेस अपना वादा पूरा करने में नाकाम दिखी.
बीजेपी की जीत का कारण
- बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर चल रही थी लेकिन 10 साल की सत्ता विरोधी लहर को बीजेपी ने सीएम बदल कर छह महीने में दूर कर दिया.
- बीजेपी के बारे में कहा जा रहा है कि इसने ओबीसी, दलित और गैर जाट वोटरों पर काम किया.
- गठबंधन में बीजेपी को जो दल भार लग रहे थे, उनसे दूरी बनाई. लोकसभा चुनाव से पहले जेजेपी से किनारा कर लिया.
- बीजेपी ने अकेले चुनाव लड़ा, जिसका उसे फायदा मिला.
- ऐसा बताया जा रहा है कि हरियाणा में आरएसएस के ग्राउंड वर्क का भी बीजेपी को फायदा मिला है.