हिंदू समाज में व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार बताए गए हैं. इनमें सबसे आखिरी संस्कार मृत्यु के बाद किया जाने वाला अंतिम संस्कार है. इसकी गरुड़ पुराण में एक पूरी विधि बताई गई है. इस विधि में मृतक के दाह संस्कार के बाद उसकी अस्थियों को गंगा में प्रवाहित करने का विधान भी है. इसके पीछे की शास्त्र सम्मत वजह और मान्यताओं के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं.
श्रीकृष्ण ने बताया मोक्ष का मार्ग
गंगा में अस्थि विसर्जन के महत्व को भविष्य पुराण में श्रीकृष्ण ने बताया है. राजा भागीरथ के प्रयासों से गंगा के पृथ्वी पर आगमन के समय श्रीकृष्ण गंगा स्नान का महत्व बताते हैं. इसी प्रसंग में वे गंगा से कहते हैं कि मृत व्यक्ति का शव बड़े पुण्य के प्रभाव से ही तुम्हारे अंदर आ सकता है. जितने दिनों तक उसकी एक-एक हड्डी तुम्हारे में रहती है, उतने समय तक वह वैकुंठ में वास करता है. यदि कोई अज्ञानी व्यक्ति भी तुम्हारे जल का स्पर्श करके प्राण त्यागता है तो वह भी मेरी कृपा से परम पद का अधिकारी होता है. इसके अलावा, अन्य कहीं प्राण त्यागते समय भी किसी को तुम्हारे नाम का स्मरण हो जाता है तो मैं उसे भी सालोक्य पद प्रदान करता हूं. वह ब्रह्मा की आयु जितने समय तक वहां रहता है.
सगर के 60 हजार पुत्रों को मिली थी मुक्ति
गंगा जल से मुक्ति के संबंध में राजा सगर की कथा भी धर्म शास्त्रों में प्रचलित है. जिनके 60 हजार पुत्रों की कपिल मुनि के श्राप से मौत हो गई थी. जिनकी मुक्ति के लिए ही उनके वंशज भागीरथ ने तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर अवतरित किया था. इसके बाद गंगा के स्पर्श से ही सगर के सभी पुत्रों को मुक्ति मिली थी.
गरुड़ पुराण में भगवान नारायण ने बताया महत्व
गरुड़ पुराण में पक्षीराज गरुड़ के पूछने पर भगवान विष्णु भी गंगा में अस्थि विसर्जन का महत्व बताते हैं. वे कहते हैं कि जिसकी अस्थि गंगा जल में प्रवाहित होती है, उसका ब्रह्मलोक से फिर पुर्नगमन नहीं होता. मनुष्य की अस्थि जितने समय तक गंगाजल में रहती है, उतने समय तक वह स्वर्ग लोक में रहता है. सभी प्राणियों की हत्या करने वाले की अस्थियां गंगाजी में गिरने पर वह भी दिव्य विमान पर चढ़कर देवलोक को जाता है, इसलिए माता-पिता सहित परिवार के सदस्यों की मृत्यु पर उनकी अस्थि का विसर्जन गंगा में ज़रूर करना चाहिए.