जानिए संकष्टी चतुर्थी के व्रत का महत्त्व, चन्द्रोदय समय,विधि,कथा

माघ महीने में संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। स्कंद और नारद पुराण के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर संकटा चौथ का व्रत रखने और भगवान गणेश की पूजा करने से हर तरह की परेशानियां दूर होती हैं। इसलिए इसे संकष्टी चतुर्थी भी कहते हैं। इस व्रत से सौभाग्य और सुख भी बढ़ता है। ये पर्व आज यानी 10 जनवरी को है।

संकष्ट चतुर्थी के व्रत में महिलाएं अपने बच्चों की लंबी उम्र, अच्छी सेहत और जीवन में सुख-समृद्धि की कामना से भगवान गणेश की विशेष पूजा करती हैं। विधि-विधान से इस व्रत को रखने वालों के सभी संकट खत्म हो जाते हैं, क्योंकि पौराणिक मान्यता के अनुसार संकटा चौथ के दिन ही भगवान गणेश के जीवन पर भी सबसे बड़ा संकट आया था, जिसकी कथा पुराणों में मिलती है।

पंचांग के अनुसार इस बार संकटा चौथ पर प्रीति, आयुष्मान, आनंद और बुधादित्य नाम के शुभ योग बन रहे हैं। साथ ही इस दिन मंगलवार होने से अंगारक चतुर्थी का संयोग भी बन रहा है। इनमें की गई गणेश पूजा से हर काम में सफलता मिलती है।

चंद्रोदय का समय

माघ महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी पर चंद्रमा की पूजा करने का विधान पुराणों में बताया है। इस तिथि पर चंद्रमा के दर्शन करने और अर्घ्य देने से अनजाना डर और मानसिक परेशानियां दूर होने लगती हैं। इस दिन चंद्रमा की पूजा से शरीर में पानी की कमी या उससे जुड़ी बीमारियों से भी राहत मिलने लगती है। साथ ही कई तरह के दोषों से भी मुक्ति मिलती है।

चंद्रमा आज रात 8.45 के बाद ही दिखेगा। चंद्रमा का दर्शन कर के प्रणाम करें। इसके बाद चंद्रदेव को जल चढ़ाएं। परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करते हुए भगवान गणेश का स्मरण करें। इसके बाद व्रत खोलें।

इस चतुर्थी पर भगवान गणेश को मोदक, लड्डू का भोग लगाएं और दूर्वा अर्पित करें। गणेश स्तुति, गणेश चालीसा और संकटा चौथ व्रत कथा का पाठ करना भी शुभ फलदायी होता है।

संकटा चौथ की पूजा विधि

  • सुबह नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें।
  • लाल वस्त्र धारण करके भगवान गणेश की पूजा करें।
  • भगवान गणेश की पूजा करने के लिए मां लक्ष्मी और गणेश जी की मूर्ति दोनों पूजा स्थल पर स्थापित करें।
  • गणेश मंत्र का जाप करते हुए 21 दूर्वा भगवान गणेश को अर्पित करें।

व्रत कथा

सतयुग में राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद जब उसके बर्तन कच्चे रह जा रहे थे तो उसने पुजारी को ये बात बताई। पुजारी ने बताया किसी छोटे बच्चे की बलि से ये समस्या दूर हो सकती है। इसके बाद कुम्हार ने एक बच्चे को पकड़कर भट्टी में डाल दिया। वह संकट चौथ का दिन था।

बहुत खोजने के बाद भी जब उसकी मां को बेटा नहीं मिला तो उसने गणेश जी से सच्चे मन से प्रार्थना की। वहीं, जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो भट्टी में उसके बर्तन तो पक गए लेकिन बच्चा भी सुरक्षित था। कुम्हार डर गया और राजा के सामने पूरी कहानी बताई। राजा ने बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने संकट दूर करने वाले संकट चौथ की महिमा बताई। तभी से महिलाएं अपनी संतान और परिवार के सौभाग्य और लंबी आयु के लिए ये व्रत करने लगीं।

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