31 अगस्त को गणेश चतुर्थी पर गणेशजी की स्थापना और पूजा के लिए दिनभर में कुल 6 शुभ मुहूर्त रहेंगे। सुबह 11.20 बजे से दोपहर 01.20 बजे तक का समय सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि इस वक्त मध्याह्न काल रहेगा, जिसमें गणेश जी का जन्म हुआ था।
दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है। वैसे भी इस बार गणेश चतुर्थी पर 300 साल बाद ग्रहों की शुभ स्थिति बन रही और लंबोदर योग भी है।
गणेश चतुर्थी का शुभ मुहूर्त
भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि प्रारंभ- 30 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 34 मिनट से शुरू
भाद्र शुक्ल चतुर्थी तिथि समाप्त- 31 अगस्त को दोपहर 3 बजकर 23 तक
शुक्ल योग – 31 अगस्त सुबह 12 बजकर 04 मिनट से रात 10 बजकर 47 मिनट तक
ब्रह्म योग – 31 अगस्त को रात 10 बजकर 47 मिनट से 1 सितंबर रात 09 बजकर 11 मिनट तक।
राहुकाल – दोपहर 12 बजकर 27 मिनट से 2 बजे तक।
मध्याह्न गणेश पूजा समय- 31 अगस्त सुबह 11 बजकर 21 से दोपहर 1 बजकर 42 मिनट तक
कैसे करें गणपति स्थापना ?
इस दिन सूर्योदय से पहले नहाकर नए कपड़े पहनें। पूजा स्थान पर पूर्व दिशा की तरफ मुंह रखकर पवित्र आसन पर बैठें और गणेश स्थापना का संकल्प लें अपने सामने चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाएं। उस पर चावल रखें। फिर तांबे के चौड़े बर्तन में चंदन या कुमकुम से स्वस्तिक बनाकर उसे चौकी पर रख दें।
इस बर्तन में स्वस्तिक पर फूलों की पंखुड़ियां बिछाएं और उन पर भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित करें। फिर संकल्प लेकर पूजा शुरू करें।
भगवान गणेश की पूजा विधि
पूजा शुरू करने से पहले ये मंत्र बोलें:
गजाननं भूतगणादिसेवितंकपित्थजम्बूफलचारु भक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
ॐ गं गणपतये नमः मंत्र बोलते हुए पूरी पूजा करें।
गणेशजी की मिट्टी की मूर्ति पर पहले जल, फिर पंचामृत की कुछ बूंदे डालें। फिर जल छिड़कें। धातु की मूर्ति हो तो अभिषेक करें।मूर्ति पर मौली चढ़ाकर वस्त्र पहनाएं। फिर जनेऊ, चंदन, चावल, अबीर, गुलाल, कुमकुम, अष्टगंध, हल्दी और मेहंदी चढ़ाएं।इत्र और हार-फूल चढ़ाएं। गुड़ और दूर्वा चढ़ाकर धूप-दीप अर्पित करें। पूजा शुरू करें।ऋतुफल (सीजनल फल), सूखे मेवे, मोदक या अन्य मिठाई का नैवेद्य लगाकर भगवान को आचमन के लिए मूर्ति के पास ही बर्तन में 5 बार जल छोड़ें।पान के पत्ते पर लौंग-इलाइची रखकर भगवान को अर्पित करें और दक्षिणा चढ़ाएं। फिर आरती करें।