Rare Tree: अगर आप हरिद्वार गए हैं तो आपने ‘पंच पल्लव’ का नाम जरूर सुना होगा. हो सकता है आप में से काफी लोगों ने इस पेड़ को देखा भी हो. पंच पल्लव में 5 अलग-अलग प्रकार के पेड़ों की पत्तियां और शाखाएं एक ही जड़ और तने से जुड़ी हुई हैं. लेकिन, क्या आपने कभी किसी ऐसे पेड़ को देखा है या उसका नाम भी सुना है, जिस पर एक समय में एकसाथ 8 अलग-अलग तरह के फल पैदा होते हों? क्या वाकई में ऐसा कोई पेड़ धरती पर मौजूद है? जी हां, ऐसा पेड़ है भी और उस पर सेब से लेकर नाशपाती तक आ अलग-अलग फल पैदा होते हैं.
आठ तरह के फलों वाले इस पेड़ को फ्रूट सैलेड ट्री के नाम से पहचाना जाता है. इसके अलावा इसे साइट्रस, स्टोन फ्रूट, मल्टी-ऐपल और मल्टी-नाशी ट्री के नाम से भी पहचाना जाता है. अगर अब तक आपको लग रहा है कि ह किसी फिल्म में दिखाए गए काल्पनिक पेड़ या किसी आर्टिस्ट की बनाई पेंटिंग में नज आए ऐसे पेड़ की बात कर रहे हैं तो आप गलत हैं. ऐसा पेड़ हकीकत में है. यही नहीं, इसे तैयार करने वाले दंपति इसे कई देशों में बांट भी चुके हैं.
किसने बनाया फ्रूट सैलेड ट्री
ऑस्ट्रलियाई दंपति जेम्स और केरी वेस्ट ने 1990 मेंफ्रूट सैलेड ट्री का कॉन्सेप्ट पेश किया था. फ्रूट सैलेड ट्री में समन प्रजाति के 6 से 8 फल एकसाथ पैदा हो सकते हैं. इसमें सेब, नींबू, संतरे और केले एकसाथ एक पेड़ पर पैदा किए जा सकते हैं. पहला फ्रूट सैलेड ट्री ऑस्ट्रेलिया में ही तैया किया गया. इसके बाद जेम्स और केरी वेस्ट ने इसे कई देशों में बांटा. उन्होंने फ्रूट सैलेड ट्री की तीन अलग-अलग प्रजातियां तैया की हैं. तीनों प्रजातियों में अलग-अलग तरह के कई फल एकसाथ एक समय में पैदा होते हैं. इसके नाम से ही लोगों को समझ में आ जाता है कि ये एक ऐसा ट्री है जिस पर एकसाथ कई फल पैदा होते होंगे.
किस प्रजाति पर कौन-से फल?
मल्टी-नाशी ट्री पर एशियाई नाशपाती की कई प्रजातियों के फल एकसाथ पैदा होते हैं. वहीं, मल्टी-ऐपल ट्री पर लाल, पीले और हरे रंग के सेब पैदा होते हैं. वहीं, बेर, खुबानी, आड़ू और अमृत फल स्टोल फ्रूट ट्री पर एकसाथ पैदा होते हैं. इसके अलावा साइट्रस फ्रूट सैलेड ट्री पर संतरे, नींबू, कीनू, अंगूर और मौसम्बी एकसाथ पैदा होते हैं. इसमें ध्यान देने की बात है कि फ्रूट सैलेड ट्री पर एक ही प्रजाति के अलग-अलग फल एकसाथ पैदा हो सकते हैं.
कैसे बनता है फ्रूट सैलेड ट्री
फ्रूट सैलेड ट्री को बीज से पेड़ बनते हुए देखना शानदार अनुभव होता है. सबसे पहले पेड़ को रातभर पानी की बाल्टी में भिगोना होता है. इस पेड़ की जड़ों को जमीन में एक बड़ा गड्ढा बनाकर डुबोया जाता है. इसके बाद बांटा जाता है. जिस प्रजाति का फ्रूट सैलेड ट्री बनाना होता है, उसी तरह की खाद या जिप्सम को मिट्टी में मिलाया जाता है. पेड़ को हर छह महीने में बहुत ध्यान से फर्टिलाइज्ड किया जाता है. फिर मिट्टी में नमी बनाए रखने के लिए पेड़ को मल्च किया जाता है. फ्रूट सैलेड ट्री को पूरी तरह से पेड़ बनने और फल देने में कुछ समय लगता है. इस पेड़ पर पहला फल आने में 9 से 18 महीने का समरू भी लग सकता है.
क्या हैं इस पेड़ के फायदे?
आप अपने घर की छत या बाहर के बगीचे में भी फ्रूट सैलेड ट्री को उगा सकते हैं. इस पेड़ को लगाने के बाद आप पूरे साल ताजा फलों का आनंद ले सकते हैं. इस पेड़ को उगाने के लिए आपको ज्यादा जगह की जरूरत नहीं होती है. इसलिए आपको परेशान होने की जरूत नहीं है.
ये बहुत छोटी सी जगह में उगाया जा सकता है. वहीं, आप अपने पसंदीदा फल की खेती अपने घर के पीछे पड़ी खाली जगह में करके अतिरिक्त फायदा ले सकते हैं. वेस्ट दंपति के मुताबिक, इस पेड़ की सबसे बड़ी खामी यही है कि इस पर कई प्रजातियों के फल एक साथ नहीं उगाए जा सकते हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो फ्रूट सैलेड ट्री पर गुठली वाले फलों के साथ केले या नींबू को नहीं उगाया जा सकता है. वेस्ट दंपति फिलहाल इस दिशा में काम कर रहे हैं.