नई दिल्ली- टाइरोसिनेमिया टाइप-ए। लीवर की एक दुर्लभ बीमारी हैं। एक लाख की जनसंख्या में सिर्फ एक व्यक्ति को होने की आशंका, लेकिन यदि किसी को हो जाए तो इलाज उससे भी दुर्लभ। इसकी दवा कनाडा से मंगानी पड़ती है और जिसे लेने का सालाना खर्च 2.2 करोड़ रुपये आता है, लेकिन अब इसका इलाज भारत में ही बनी दवा से हो सकेगा, जिसपर सिर्फ 2.5 लाख रुपये का सालाना खर्च आएगा
13 दुर्लभ बीमारियों की हुई पहचान
भारत में बनी यह दवा बाजार में आ चुकी है। इस तरह की कुल सात दुर्लभ बीमारियों के लिए चार दवाई भारत में बननी शुरू हो चुकी है और चार अन्य दवाएं अगले पांच-छह महीने में आ जाएगी। सरकार ने कुल 13 दुर्लभ बीमारियों की पहचान की है और उनका सस्ता इलाज सुलभ कराने का बीड़ा उठाया है।विशेषज्ञों और डाक्टरों से गहन विचार-विमर्श के बाद 13 ऐसी दुर्लभ बीमारियों की पहचान की गई, जिनके मरीजों की संख्या अन्य दुर्लभ बीमारी वाले मरीजों से अधिक पाई जाती है।
इसके बाद सरकार, रिसर्च व नियामक संगठनों और निजी कंपनियों के साथ बातचीत कर इनके इलाज के लिए सस्ती दवा बनाने पर बात शुरू हुई और एक साल के भीतर ही सात दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए सस्ती भारतीय दवा को सफलता मिली।
इन बीमारियों का ढूंढा जा रहा सस्ता इलाज
स्मॉल मालिक्यूल्स ड्रग्स से इलाज की जाने वाली सात बीमारियों के लिए सस्ती भारतीय दवा उपलब्ध कराने के बाद अब जीन थरेपी से इलाज की जाने वाली तीन दुर्लभ बीमारियों और एनजाइम थरेपी से इलाज की जाने वाली चार दुर्लभ बीमारियों का सस्ता इलाज ढूंढने पर काम चल रहा है। इनमें पेटेंट दवाओं के मामले में संबंधिक विदेशी कंपनी से भी बात की जा रही है।स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने कहा कि दुर्लभ बीमारियों के लिए सस्ती दवाई बनाकर भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह सिर्फ लाभ कमाने के लिए नहीं, बल्कि पूरी मानवता की सेवा के लिए काम करता है।
दुर्लभ बीमारियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुर्लभ बीमारियां वो होती हैं, जो एक हजार की जनसंख्या में एक से भी कम में होती है। इनमें कई बीमारियां तो लाखों लोगों में से एक को होती है। माना जाता है कि किसी भी देश की छह-आठ फीसद जनसंख्या दुर्लभ बीमारी से पीड़ित होती है। इस तरह से भारत में 8.4 से 10 करोड़ तक लोग दुर्लभ बीमारी से पीड़ित हो सकते हैं, लेकिन इसका कोई ठोस आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि 13 दुर्लभ बीमारियों के बाद अन्य दुर्लभ बीमारियों का सस्ता इलाज उपलब्ध कराने पर काम शुरू किया जाएगा।
सिकल सेल एनीमिया के स्थायी इलाज पर भी काम शुरू
सिकल सेल एनीमिया के स्थायी इलाज के लिए जीन थरेपी पर भी अनुसंधान शुरू हो गया है। डाक्टर वीके पॉल के अनुसार, आईसीएमआर सहित कई शोध संस्थान जीन थरेपी के सहारे इसके इलाज पर अनुसंधान कर रहे हैं। इसके लिए केंद्र सरकार ने 60 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध करा दी है। फिलहाल सिकल सेल एनीमिया से पीड़ित मरीजों को जिंदगी भर हाइड्रोक्सीयूरिया की दवा खानी पड़ती है। पांच साल से अधिक उम्र के मरीजों को यह दवा कैप्सूल के रूप में दी जाती है, जबकि पांच से कम उम्र के बच्चों को इसे सीरप के रूप में देना पड़ता है।
डॉक्टर पॉल ने कहा कि हाइड्रोक्सीयूरिया सीरप के 100 मिलीलीटर वाले बोतल की कीमत 70,000 रुपये से भी अधिक है। एक भारतीय कंपनी द्वारा बनाई गई इस दवा को इसी महीने मंजूरी मिल गई है, जो मार्च से बाजार में उपलब्ध होगी और इसकी 100 मिलीलीटर वाली बोतल की कीमत महज 405 रुपये के आसपास होगी।