इलेक्टोरल बॉन्ड की कानूनी वैद्यता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर तीन दिन की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 3 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. आठ साल से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. याचिकाकर्ताओं ने चिंता जताई है कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में डोनर का नाम गुप्त रखने से कालेधन की आमद को बढ़ावा मिलेगा और कॉरपोरेट घरानों को उनकी पहचान बताए बिना पैसे दान करने में मदद करने के लिए योजना बनाई गई.
साल 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम लागू की गई थी और तभी से यह विवादों में है. सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इलेक्टोरल ट्रस्ट का जिक्र किया. इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के पहले देश में पॉलीटिकल पार्टियों को फंड देने के लिए इलेक्टोरल ट्रस्ट या चुनावी ट्रस्ट स्कीम चली आ रही है. यह स्कीम यूपीए-2 सरकार में साल 2013 में लागू की गई थी.
क्या है इलेक्टोरल ट्रस्ट स्कीम?
13 जनवरी, 2013 को इलेक्टोरल ट्रस्ट स्कीम लाई गई थी. इसमें कंपनीज एक्ट 1965 के सेक्शन 25 के तहत रजिस्टर्ड कंपनी इलेक्टोरल ट्रस्ट बना सकती हैं और कोई भी कंपनी या व्यक्ति इसके जरिए राष्ट्रीय या स्थानीय राजनीतिक दलों को फंड डोनेट करते हैं. इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए इकट्ठा की गई रकम का 95 फीसदी हिस्सा हर वित्तीय वर्ष में राजनीतिक दलों को डोनेट करना जरूरी होता है और फाइनेंशियल ईयर में इलेक्टोरल ट्रस्ट रिन्यू करना होता है. साल 2013 में जब स्कीम शुरू की गई तो 3 इलेक्टोरल ट्रस्ट थे, जिनकी संख्या 2021-22 तक 18 हो गई. हालांकि, इनमें से कुछ ही ट्रस्ट हैं, जिनके जरिए हर साल फंड दिया जाता है.
इलेक्टोरल ट्रस्ट की लिस्ट-
- प्रोग्रेसिव इलेक्टोरल ट्रस्ट
- जनहित इलेक्टोरल ट्रस्ट
- जनप्रगति इलेक्टोरल ट्रस्ट
- समाज इलेक्टोरल ट्रस्ट
- ट्रीम्फ इलेक्टोरल ट्रस्ट
- स्वदेशी इलेक्टोरल ट्रस्ट
- जनता निर्वाचक इलेक्टोरल ट्रस्ट
- जनकल्याण इलेक्टोरल ट्रस्ट
- जयभारत इलेक्टोरल ट्रस्ट
- प्रूडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट (पहले सत्य इलेक्टोरल ट्रस्ट)
- जयहिंद इलेक्टोरल ट्रस्ट
- न्यू डेमोक्रेटिक इलेक्टोरल ट्रस्ट
- एबी जनरल इलेक्टोरल ट्रस्ट
- EINZIGARTIG इलेक्टोरल ट्रस्ट
- स्मॉल डोनेशन इलेक्टोरल ट्रस्ट
- इंडीपेंडेंट इलेक्टोरल ट्रस्ट
- भारतीय भूमि इलेक्टोरल ट्रस्ट
क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
अगर कोई राजनीतिक दलों को चंदा देना चाहता है तो वह इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए फंड दे सकते हैं. भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से कोई भी एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और 1 करोड़ के इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है. बॉन्ड खरीदने के बाद सिर्फ 15 दिनों के अंदर राजनीतिक दलों को डोनेट करना होता है. साल 2017 में इसका प्रस्ताव लाया गया और 2018 में स्कीम लागू कर दी गई.
इलेक्टोरल बॉन्ड और इलेक्टोरल ट्रस्ट में क्या है अतंर?
इलेक्टोरल बॉन्ड में फंड डोनेट करने वाले की पहचान और किस पार्टी को फंडिंग की गई, दोनों चीजों को गुप्त रखा जाता है. वहीं, इलेक्टोरल ट्रस्ट में कोंट्रीब्यूशन के वक्त डोनर की पहचान बताया जाना जरूरी होता है. किसी विशेष ट्रस्ट के लिए एक डोनर होता है, जिससे पता चल जाता है कि किस ने किसको फंड दिया. हालांकि, इसमें विभिन्न कॉन्ट्रीब्यूटर हों तो यह पता करना मुश्किल होगा कि किसने किसे फंड दिया. इलेक्टोरल ट्रस्ट को लेकर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि इसमें डोनर की गोपनीयता नहीं रखी जाती इसलिए लोगों नें इलेक्टोरल ट्रस्ट के जरिए भुगतान करना पसंद नहीं किया.
एसजी मेहता ने सुप्रीम कोर्ट से कहा, ‘इसमें कोई गोपनीयता नहीं थी, इसलिए किसी ने भी ट्रस्ट के माध्यम से भुगतान करना पसंद नहीं किया. आज भी, कोई नकद, चेक या आरटीजीएस द्वारा भुगतान कर सकता है और इस तरह न तो डोनर की पहचान गुप्त रहती है और न ही इलेक्टोरल ट्रस्ट की.’