धरती ने अपना हि रेकॉर्ड तोडा,1960 के बाद धऱती ने 1.47 मिलीसेकेंड पहले ही 24 घंटे का चक्र पूरा किया

नई दिल्लीः इससे पहले 2020 में धरती पर सबसे छोटा महीना देखा गया था। इस साल 19 जुलाई को धऱती ने 1.47 मिलीसेकेंड पहले ही 24 घंटे का चक्र पूरा कर लिया। 1960 के बाद ऐसा पहली बार देखा गया।

सबसे छोटे दिन के मामले में पृथ्वी ने फिर से अपना रिकॉर्ड तोड़ा है। 29 जुलाई को धरती ने अपना पूरा चक्कर 1.59 मिलीसेकेंड्स कम समय में लगा लिया। 24 घंटे में पृथ्वी को एक चक्कर पूरा करने के लिए जितना समय चाहिए ये उससे कम है। इससे पहले 2020 में धरती पर सबसे छोटा महीना देखा गया था। उस साल 19 जुलाई को धऱती ने 1.47 मिलीसेकेंड पहले ही 24 घंटे का चक्र पूरा कर लिया। 1960 के बाद ऐसा पहली बार देखा गया।

इंडिपेंडेंट की एक रिपोर्ट के अनुसार हाल के दिनों में पृथ्वी की स्पीड में पहले से इजाफा हुआ है। हालांकि इसका कोई पुख्ता कारण अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि इसकी कई वजहें हो सकती हैं। इनमें धऱती की भीतरी और बाहरी सतह पर होने वाली गतिविधियों के साथ समुद्र, लहरों और जलवायु परिवर्तन भी जिम्मेदार हो सकते हैं। वैसे अभी तक इस मामले में अध्ययन किया ही जा रहा है कि धरती में आ रहे परिवर्तन के लिए कौन की चीज जिम्मेदार है।

छोटे दिनों की हो सकती है शुरुआत

इसके अगले वर्ष यानी 2021 में पृथ्वी आम तौर पर बढ़ी हुई दर से घूमती रही और कोई रिकॉर्ड नहीं तोड़ा। इंडिपेंडेंट के अनुसार धरती ने हाल ही में अपने घूमने की रफ्तार बढ़ाई है। हालांकि, इंटरेस्टिंग इंजीनियरिंग (IE) के अनुसार 50 सालों में छोटे दिनों के नए दौर का सिलसिला अब शुरू हो सकता है।

अलग-अलग रफ्तार की वजह पता नहीं

वैज्ञानिकों के अनुसार पृथ्वी के घूमने की अलग-अलग रफ्तार का सही कारण अभी भी पता नहीं है। माना जा रहा है कि इसकी वजह महासागरों, ज्वार भाटे या जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी की आंतरिक या बाहरी परतों में बदलाव हो सकती है। कुछ शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि पृथ्वी के ध्रुवों की सतह पर गति का भी यह असर हो सकता है। इसे ‘चांडलर वॉबल’ कहा जाता है।

‘टाइम जंप’ परमाणु घड़ी, कंप्यूटर, स्मार्टफोन व संचार तंत्र के लिए खतरा

वैज्ञानिक लियोनिद जोतोव, क्रिश्चियन बिजोर्ड और निकोले सिदोरेनकोव के अनुसार यदि पृथ्वी ने तेजी से चक्कर लगाना जारी रखा तो यह निगेटिव लीप सेकंड के रूप में सामने आ सकता है। इसका असर परमाणु घड़ी, स्मार्टफोन, कंप्यूटर्स व संचार तंत्र पर पड़ सकता है।

‘सेकंड की यह छलांग’ वैज्ञानिकों व खगोलविदों के अध्ययन का विषय हो सकती है, लेकिन इसकी वजह से भारी नुकसान हो सकता है। घड़ी 23:59:59 और 23:59:60 पर जाए बगैर 00:00:00 पर रीसेट हो सकती है।  इस ‘टाइम जंप’ के कारण कंप्यूटर के प्रोग्राम व अन्य तमाम उपकरणों के डाटा नष्ट या खराब हो सकते हैं। वैज्ञानिकों को इस कारण परमाणु घड़ियों समेत तमाम समय से संबद्ध उपकरणों को पुनर्संयोजित करना पड़ेगा। यह काम थोड़ा जटिल माना जा रहा है।

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