नई दिल्ली- भूमि प्रबंधन की कमी का ही परिणाम है कि भूमि व संपत्ति संबंधी विवाद बढ़ रहे हैं और इसके कारण न्यायालयों पर भी इनका बोझ बढ़ता जा रहा है। मगर, इन परिस्थितियों से निपटने के लिए पहली बार केंद्र सरकार ने जो महत्वपूर्ण कदम उठाया है, वह बहुत बड़ी उपलब्धि साबित हो सकता है।
भूमि संबंधी विवाद से मिलेगा छुटकारा
दरअसल, ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग ने कृषि भूमि के खसरा-खतौनियों व राजस्व भूमि का अधिकतर रिकार्ड डिजिटल कर दिया है और अब इसे देशभर के ई-न्यायालयों से एकीकृत करने की तैयारी है, ताकि अव्वल तो भूमि संबंधी विवाद से बचा जा सके और जो पुराने विवाद हैं, उनका निस्तारण जल्द हो सके।
न्यायालयों में भूमि के सबसे अधिक विवाद
विशेषज्ञों का अनुमान है कि न्यायालयों में सिविल के जितने भी वाद हैं, उनमें 66 प्रतिशत वाद भूमि या संपत्ति के विवाद से जुड़े हैं। इनको लेकर समय-समय पर चिंता तो जताई जाती रही है, लेकिन इसके निराकरण के लिए पहली बार इतना ठोस कदम उठाया गया है।
ग्रामीण विकास मंत्रालय चला रहा कार्यक्रम
ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग द्वारा डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम (डीआइएलआरएमपी) चलाया जा रहा है। इसके तीन घटक भूमि अभिलेखों का कम्प्यूटरीकरण, रजिस्ट्री का कम्प्यूटरीकरण और भूमि अभिलेखों के साथ इसका एकीकरण है।
न्यायालयों को होगी स्पष्ट जानकारी
इस दिशा में अब तक हुई प्रगति के बारे में भूमि संसाधन विभाग के सचिव अजय तिर्की ने बताया कि ई-न्यायालयों को भूमि अभिलेख और पंजीकरण डेटा बेस से जोड़ने के लिए तीन राज्यों हरियाणा, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में न्याय विभाग के सहयोग से सफलतापूर्वक प्रायोगिक परीक्षण किया गया था। इस प्रयोग से निष्कर्ष निकला कि इस व्यवस्था को लागू करने से न्यायालय के पास भू-संदर्भित अधिकारों के अभिलेख, विरासत डेटा सहित कैडस्ट्रल मानचित्र के वास्तविक और प्रामाणिक साक्ष्य के बारे में स्पष्ट जानकारी होगी।
विवादों के दाखिले और निपटान के निर्णय में अदालत को होगी आसानी
उन्होंने कहा कि विवादों के दाखिले और निपटान के निर्णय में अदालतों के जानकारी काफी हद तक फायदेमंद होगी। अदालतें आसानी से जान सकेंगी कि किसी विशेष संपत्ति से संबंधित कोई मामला किसी न्यायालय में लंबित है या नहीं। साथ ही भूमि का सौदा करते वक्त संपत्ति के विवाद की स्थिति तुरंत स्पष्ट हो जाएगी और ऐसी भूमि के लेनदेन के जोखिम से बचा जा सकेगा।
कई राज्यों के न्यायालयों से मिली है स्वीकृति
सचिव ने बताया कि अब तक 26 राज्यों व संघ शासित राज्यों में भूमि अभिलेख एप्लीकेशन साफ्टवेयर और पंजीकरण डेटाबेस के साथ ई-कोर्ट एप्लीकेशन साफ्टवेयर के एकीकरण के लिए संबंधित उच्च न्यायालयों से स्वीकृति मिल चुकी है। उन्होंने बताया कि इस दिशा में तेजी से काम हो रहा है और इसके पूर्ण होने के बाद भूमि प्रबंधन के मामले में यह देश की बड़ी उपलब्धि साबित होगा।
त्रिपुरा, मध्यप्रदेश, राजस्थान, असम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, नगालैंड, हिमाचल प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, मणिपुर, पश्चिम बंगाल, अंडमान और निकोबार, तेलंगाना, झारखंड, दिल्ली, सिक्किम, मेघालय, पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, पुडुचेरी और आंध्रप्रदेश इन राज्यो से स्विकृति मिली हैं ।