
परिपत्रक में यह भी कहा गया था कि अधिसूचित औद्योगिक क्षेत्र के बाहर उद्योग स्थापित करने वाले उद्योजकों के आवेदन जांचते समय नगर परिषद, नगरपालिका, महानगरपालिका, नगररचना विभाग या जिलाधिकारी द्वारा जारी वैध बांधकाम परवाना अनिवार्य रूप से देखा जाए। ग्राम पंचायत द्वारा दिया गया ना-हरकत प्रमाणपत्र वैध नहीं माना जाएगा—ऐसी अट थी।इस परिपत्रक से कृषि प्रक्रिया उद्योगों को गंभीर अड़चनों का सामना करना पड़ा। बाळासाहेब ठाकरे स्मार्ट परियोजना के अंतर्गत कृषि विभाग ने 2018 में यह शासन आदेश जारी किया था कि 20 हेक्टेयर से कम क्षेत्र वाली किसी भी सूक्ष्म, लघु और मध्यम अन्नप्रक्रिया इकाई को बिगर शेती परवानगी आवश्यक नहीं होगी। इसी आदेश के आधार पर प्रदूषण नियंत्रण मंडल से बिगर शेती सक्ती हटाने, बांधकाम परवाना प्रक्रिया में शिथिलता लाने तथा ग्राम पंचायत के ना-हरकत प्रमाणपत्र को मान्यता देने की मांग की गई थी।
विवादित परिपत्रक आखिरकार रद्द
राज्य में तेजी से उभर रहे कृषि और अन्नप्रक्रिया उद्योगों के बावजूद, प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने स्टोन क्रशर और अन्नप्रक्रिया उद्योगों पर समान शर्तें लागू कर अनावश्यक अडथळे निर्माण किए थे, जबकि शासन आदेशों में दोनों की स्पष्ट अलग व्याख्या थी।सरकार के निर्देशों के अनुसार, अब प्रदूषण नियंत्रण मंडल को पीछे हटना पड़ा है और विवादित परिपत्रक को रद्द कर दिया गया है।



