स्पेस-बेस्ड सोलर पावर स्टेशन का कॉन्सेप्ट काफी पुराना है। 1940 के दशक में साइंस-फिक्शन राइटर आइजैक आसिमोव ने अपनी शॉर्ट स्टोरी ‘रीजन’ में इसका जिक्र किया था। अब साइंटिस्ट्स ने इसे लेकर पहल की है। पृथ्वी पर 24 घंटे सातों दिन सौर उर्जा मिल सके इसके लिए साइंटिस्ट्स ने स्पेस में सोलर पैनल भेजे।
पहली बार स्पेस से भेजी गई सोलर एनर्जी पृथ्वी पर रिसीव हुई है। साइंटिस्ट्स ने जनवरी 2023 को MAPLE नाम का स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के ऑर्बिट में छोड़ा था। इसमें सोलर पैनल लगे थे, जो स्पेस के तापमान और सोलर रेडिएशन को झेल सकें।साइंटिस्ट्स का मानना है कि स्पेस में लगाए जाने वाले सोलर पैनल पृथ्वी पर मौजूद पैनल्स के मुकाबले 8 गुना ज्यादा एनर्जी दे सकते हैं। आसान शब्दों में कहें तो स्पेस से मिलने वाली सोलर एनर्जी से पृथ्वी पर 8 गुना ज्यादा बिजली पैदा हो सकेगी।
सोलर पैनल सूरज के रेडिएशन को बिजली में बदलते
पृथ्वी पर 18वीं सदी से ही सोलर पैनल्स के जरिए सोलर एनर्जी का इस्तेमाल हो रहा है। ये सोलर पैनल्स सोलर सेल्स से बने हैं। सोलर सेल्स ऐसी डिवाइस होती है जो सूरज के रेडिएशन को बिजली में बदलती है। आज भी दुनिया की 4% बिजली सोलर पैनल्स से मिल रही है, लेकिन साइंटिस्ट्स चाहते हैं कि लोग फ्यूल-बेस्ड पावर की जगह सोलर पावर का इस्तेमाल करें।ये संभव नहीं है क्योंकि पृथ्वी पर हर समय धूप नहीं रहती है। कई देशों में ज्यादातर समय बादल छाए रहते हैं। ऐसे में 24 घंटे सातों दिन सौर ऊर्जा मिलना संभव नहीं है। इसलिए साइंटिस्ट्स ने स्पेस से पृथ्वी पर सोलर एनर्जी भेजने की कोशिशें शुरू कीं।
स्पेस में जिन जगहों पर ये सोलर पैनल भेजे गए हैं और आने वाले समय में भेजे जाएंगे, वहां बादल नहीं है। दिन और रात भी नहीं होती है। नतीजा सौर ऊर्जा बिना किसी बाधा के कलेक्ट की जा सकती है।
कैसे काम करता है MAPLE?..
MAPLE में कई माइक्रोवेव पावर ट्रांसमीटर्स लगे हुए हैं। ये फ्लैग्जिबल होते हैं और इनका वजन भी काफी कम होता है। ये सिलिकॉन से बने इलेक्ट्रॉनिक चिप के जरिए काम करते हैं। ये ट्रांसमीटर्स सोलर एनर्जी को लेजर (माइक्रोवेव) में बदल देते हैं, जिससे एनर्जी आसानी से पृथ्वी तक पहुंचाई जा सके। इन्हें मनचाही जगह पर भेजा जा सकता है, जैसे- पृथ्वी पर मौजूद एनर्जी रिसीव करने वाले स्टेशन्स। ये स्टेशन पावर को नेशनल ग्रिड में फीड करता है।
पहली बार स्पेस में वायरलेस एनर्जी ट्रांसफर देखा
MAPLE से भेजी गई एनर्जी कैलिफोर्निया के पासाडेना में स्थित कैलटेक के कैंपस में लगे रिसीवर पर डिटेक्ट की गई। साइंटिस्ट्स के मुताबिक, ये अनुमानित समय और फ्रीक्वेंसी (आवृत्ति) से रिसीव हुई।एक साइंटिस्ट ने कहा- इस दौरान हमने पहली बार स्पेस में वायरलेस एनर्जी ट्रांसफर देखा। हमने काफी हल्का स्पेसक्राफ्ट बनाया। इसने सोलर रेडिएशन को कलेक्ट किया, इसे बिजली में बदला और बिना किसी तार की मदद से इस बिजली को काफी दूर (पृथ्वी पर) भेजा।
सैटेलाइट्स भी सोलर एनर्जी पैदा करेंगे
धरती की उच्च कक्षा में बड़े-बड़े सैटेलाइट्स भेजे जाएंगे। ये सैटेलाइट्स सोलर एनर्जी पैदा करेंगे और उसे पृथ्वी की ओर भेजेंगे। ब्रिटेन के स्पेस एनर्जी इनीशिएटिव (SEI) के को-चेयरमैन मार्शियन सोल्ताऊ कहते हैं कि इस प्रोजेक्ट की क्षमता असीमित है। सैद्धांतिक रूप से यह 2050 में दुनिया की सारी ऊर्जा की सप्लाई कर सकता है।दरअसल, अंतरिक्ष में सूर्य की एनर्जी सप्लाई काफी ज्यादा है और पृथ्वी की उच्च कक्षा में बड़े सैटेलाइट्स के लिए जगह भी बहुत है। पृथ्वी की जियोस्टेशनरी ऑर्बिट (भूस्थैतिक कक्षा) के चारों ओर एक पतली पट्टी को हर साल 100 गुना से ज्यादा सोलर एनर्जी मिलती है। इतनी ऊर्जा धरती पर इंसानों द्वारा 2050 में इस्तेमाल करने का अनुमान है।