वॉशिंगटन: रूस और यूक्रेन युद्ध के बीच दुनिया में एक नई विश्व व्यवस्था बनती दिख रही है। उधर, धरती से हजारों किमी दूर चांद पर यह बड़ा बदलाव पहले से ही शुरू हो गया है। करीब 50 साल पहले अपोलो और स्पुतनिक मिशन की तरह से ही दुनिया के नेता अब एक बार फिर से अंतरिक्ष में आधिपत्य स्थापित करने की होड़ में जुट गए हैं। हालांकि पहले की तुलना में इसमें एक अंतर है। 1960 से 70 के दशक में अमेरिका और सोवियत संघ के बीच संयुक्त राष्ट्र में नियम निर्धारित थे लेकिन अभी दुनिया की शीर्ष महाशक्तियां भविष्य में होने वाले अंतरिक्ष अभियानों के लिए मूलभूत सिद्धांतों पर भी सहमत नहीं हो पा रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक चांद पर बड़े पैमाने पर हीलियम 3 छिपी हुई है और इसीलिए दुनियाभर के देश इसके पीछे भाग रहे हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक 3 चम्मच हीलियम-3 धरती के 5000 टन कोयले के बराबर है।
ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका और चीन का अंतरिक्ष में अभियान खासतौर पर खतरनाक है, वह भी तब जब अंतरिक्ष उपग्रहों की भीड़ से भर गया है। एलन मस्क, जेफ बेजोस जैसे अरबपतियों से लेकर रवांडा और फिलीपीन्स तक खुद का सैटलाइट लॉन्च कर रहे हैं। इनका मकसद डिजिटली दुनिया के साथ कदम ताल करना है और व्यवसायिक अवसरों की तलाश करना है। अमेरिका और चीन का बहुत कुछ इसको लेकर दांव पर लगा है लेकिन दोनों के बीच मतभेद काफी बढ़ते जा रहे हैं। अंतरिक्ष में चीन और अमेरिका के सहयोग नहीं करने से स्पेस में हथियारों की होड़ शुरू होने का खतरा पैदा हो गया है।